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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


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Saturday, April 30, 2016

देव बनने से डर लगता है-हिन्दी क्षणिकायें #Dev banane se Dar lagta hai-HindiShortPoem)

लोगों में सुनने की
ताकत नहीं बची
सच कहने में डर लगता है।

तय करना कठिन है
गिरते को बचाये
या अपने हाल पर छोड़ें
देव बनने से डर लगता है।
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गनीमत है
मानवता के साथ
प्यासे भी जिंदा है
वरना बोतलों में
पूरा पानी भर जाता।

सौदागरों के बाज़ार में
दाम चढ़ जाते आकाश पर
दान अगर मर जाता।
--------

कोई वादा करता है
पूरा करेगा
बिल्कुल पक्का समझना।

मजबूरी अगर होगी
तो पूरा नहीं भी करेगा।
बिल्कुल पक्का समझना।
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हमारे शब्द
उनका दिल नहीं छू पायेंगे
यह सोच कुछ कहा नहीं।

तसल्ली होती है
जुबानी जंग से बचे
हमारा मौन भी बहा नहीं।
----------
दिल की तार
अंतरिक्ष में जुड़ी होती
हम अपनी बात कह देते।

कागज कालम का
समय रहा नहीं
होठ टांकते शब्द
सामने पर्दे पर 
हम यूं ही कविता कह देते।
----------

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Thursday, April 14, 2016

दौलतमंदों की हुकुमत में-हिन्दी क्षणिकायें (Hindi Short Poem)

ठेले पर सामान के
दाम से जूझते हैं
मॉल में खरीददारी पर
गूंगे बहरों की तरह टूटते हैं।
माया के खेल में
कहीं लूटे
कहीं लूटते हैं।
----------

हमने तो वफा निभाई
अपना समझकर
वह कीमत पूछने लगे।
क्या मोल बताते
अपने जज़्बातों का
जो नहीं जानते पराये सगे।
------------
राजा अंगुल में
प्रजा चंगुल में
सिर पर विराजे पीर।
तब ताकतवर
हो जाते अमीर,
सस्ता लगता उन्हें
गरीब का ज़मीर।
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सोने चांदी की चाहत ने
इंसानों की
अक्ल छीन ली है।

धरती पर बिखरा
पेट भरने का सामान
पर कमअक्लोंने दर्द की
फसल बीन ली है।
--------------
दौलतमंदों की हुकुमत में
बेबस लोग
गरीब हो जाते हैं।
खातों में लिखा जाता
जब परिश्रम का भाव
फूटे नसीब हो जाते हैं।
--------------

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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Sunday, March 13, 2016

शोर मचाकर झूठ भी सच बनाते-दीपकबापूवाणी (Shor Machakar Jhooth Bhi sach banate-DeepakBapuWani)

इंसान की पहचान अब मिले कहां, मुखौटे के पीछे नीयत छिपी यहां।
‘दीपकबापू’ दिल को  समझा लिया, वफा के बिना जीना सीख यहां।।
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शोर मचाकर झूठ भी सच बनाते, घृणा फैलाकर जहान में अमन लाते।
‘दीपकबापू’ लिया भलाई का ठेका, गरीबउद्धार के नाम खूब धन पाते।।
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जलाकर शांति के घर जो हंसते, घृणा की आग में वह भी फंसते।
‘दीपकबापू’ विध्वंस में मजा ढूंढते, कभी हाथ से बने गड्ढे मे धंसते।।
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दिल तोड़ते ऐसे शब्द वह बोलें, हमदर्दी के नाटक में घृणा घोलें।
‘दीपकबापू’ चले उल्टी अक्ल पर, तरक्की में तबाही की राह खोलें।।
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करें खुद जख्म ज़माने का दिया बतायें, चलने में लाचार पथज्ञान बतायें।
‘दीपकबापू’ पाई बोलने की आजादी, चीख कर अपने स्वर में दम लायें।।
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बहुत है समाज से धोखा करने वाले, वफा बंद कर लगा दिये ताले।
लगा रहे मुख से भलाई के नारे, घूमते ‘दीपकबापू’ पीछे चाकू डाले।।
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मुख से बोलकर अपनी शक्ति गंवायें, जंग में जाकर वही मुंह की खायें।
मुक्के का प्रहार सदा सफल नहीं, ‘दीपकबापू’ कभी मौन से भी सतायें।।
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भद्रभाषा में अपशब्दों की करें तलाश, जोश से करें विनम्रता का नाश।
‘दीपकबापू’ सस्ते में वाणी बेचने वाले, शब्द से खेलें समझकर ताश।।
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कर्म से इतिहास की धारा नहीं मोड़ते, वही अपना नाम वीरता से जोड़ते।
‘दीपकबापू’ मुक्काछाप क्रांतिकारी हैं, नारे लगाकर कागजी पत्थर तोड़ते।।
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तंग दिमाग में अपनी सोच नहीं होती, अड़ियल विचार में लोच नहीं होती।
‘दीपकबापू’ चलायें दर्द का व्यापार, वहां लगायें तेल जहां मोच नहीं होती।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Sunday, February 28, 2016

प्राणायाम से बड़ा कोई तप नहीं है-मनुस्मृति के आधार पर चिंत्तन लेख(Pranayam se bada koyee Tap nahin-A Hindu Thought article Based on ManuSmriti-Great Knowledge In ManuSmriti)

            
                                    अध्यात्मिक ज्ञान व योग साधकों को यह भ्रम नहीं रखना चाहिये कि मनुस्मृति का विरोध कोई दूसरी धार्मिक विचाराधारा के लोग कर रहे हैं। न ही यह सोचना चाहिये कि समूचे दलित वर्ग के  समस्त सदस्य इसके विरोधी हैं। वरन् भारतीय समाज में कथित उच्च वर्ग के ही वह लोग जिनका काम ही देश के लोगों को भ्रमित, भयभीत तथा भ्रष्ट कर अपना हित साधने में है, वही इसका विरोध करते हैं। हम यहां उनके प्रतिकूल टिप्पणियां नहीं लिख रहे वरन्् मानव समाज का बौद्धिक शोषण की वर्षों पुरानी परंपरा की तरफ इशारा कर रहे हैं।  ऐसे अनेक पेशेवर बुद्धिमान है जो यह कहते हुए नहीं चूकते कि योग साधना से कुछ नहीं होता। अनेक धार्मिक कर्मकांडी व्यवसायी द्रव्य यज्ञ के माध्यम से अपने हित साधते हैं-ऐसे लोग कभी ओम शब्द की महिमा बखान नहीं कर सकते जिससे मन, वाणी तथा विचार में शुद्धता आती है। वह प्राणायाम के तप होने की बात स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि इससे मनुष्य के हृदय से आर्त भाव निकल जाने पर उसमें जो आत्मविश्वास आता है उससे वह द्रव्य यज्ञ करने का इच्छुक नहीं रहता। मानसिक दृष्टि से कमजोर लोग ही पेशेवर बुद्धिमानों को शिकार बनते हैं इसलिये वह प्राचीन ग्रंथों का विरोध करते हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है कि

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एकाक्षरं परं ब्रह्म प्राणायामः परे तपः।
सावित्र्यास्तु परं नास्ति मौनासत्यं विशिष्टयते।
                                    हिन्दी में भावार्थ- औंकार (ओम) ही परमात्मा की प्राप्ति का सर्वोत्कृष्ट साधन है। प्राणायाम से बड़ा कोई तप तथा गायत्री मंत्र से बड़ा कोई मंत्र नहीं है। मौन रहने की अपेक्षा सत्य बोलना श्रेष्ठ है।
                                    मुख्य बात यह है कि मनुष्य की बुद्धि अन्य जीवों से अधिक सामर्थ्यवान होती है पर अधिक बुद्धिमान इसी का हरण करने के लिये समाज में भ्रम, भय व भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करते हैं ताकि लोग उनकी शरण में आकर उद्धार की राह का पता पूछें। ऐसे लोग न केवल मनुस्मृति का विरोध करते हैं वरन् श्रीमद्भागवत गीता के संदेशों को भी अर्थहीन बताते हैं।  एक बात तय रही कि अधिक बुद्धिमान समाज के ज्ञानी लोगों को पसंद नहीं करते क्योंकि वह उनकी चालाकियों को चुनौती देते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

Saturday, February 6, 2016

भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में भेदभाव की दृष्टि रखना अज्ञान का प्रमाण.हिन्दी चिंत्तन लेख (HIndiReligion Messge Based on ShriMadBhagwatGeeta)

भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में भेदभाव की दृष्टि रखना अज्ञान का प्रमाण.हिन्दी चिंत्तन लेख
..............................                   
              जब धर्म के विषय पर बहस हो और कोई संत वेशधारी उत्तेजित होकर बोलने लगे तो समझ लेना चाहिये कि वह घनघोर अज्ञान के अंधेरे में जीवन व्यतीत कर रहा है। शनिशिंगणापुर विषय पर प्रचार माध्यमों में जमकर बहस चलायी जा रही है। तय बात है कि यह  टीव चैनलों में विज्ञापनों का समय पास करने के लिये हो रहा है। इस बहस में अनेक कथित संत अपनी बात कहने आ रहे है। कथित संत शब्द हमने इसलिये लिखा है क्योंकि वह सन्यासी की वेशभूषा में होते हैं और उसकी गीता में जो ज्ञानी  व्याख्या है वह उसके ठीक विपरीत उनका आचरण होता है। अनेक बार उनकी वाणी से क्रोध से भरे शब्द निकलते हैं जैसे कि किसी के तर्क से उनका सब कुछ छिना जा रहा है। इनमें अनेक अधिक से अधिक कैमरा अपनी तरफ केंद्रिता होता देखने की ऐसी लालच होती है जिससे उनकी वाणी दिग्भ्रमित हो जाती है।
  धर्म की रक्षा में जीवन दाव पर लगाने वाले  यह कथित सन्त सन्यासी कभी अपनी वाणी से स्थिरप्रज्ञ नहीं दिखते जो कि श्रीमद्भागवतगीता के अनुसार ज्ञानी होने का प्रमाण है। भारतीय धर्म की पहचान उसके अध्यात्मिक ज्ञान से है जबकि कथित संत सन्यास कर्मकांडों के प्रचार को ही धार्मिकता का आधार मानते हैं।  श्रीगीता के अनुसार द्रव्यमय यज्ञ की अपेक्षा ज्ञानयज्ञ बताया गया है जबकि धर्म के कथित पेशेवर प्रचारक कर्मकांडों से स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताते हैं कि उनको दान दक्षिणा मिल सके। श्रीमद्भागवत गीता में भक्त तथा भक्ति के तीन प्रकार बताये गये हैं इसलिये ज्ञान साधक समाज में भिन्नता को उसी दृष्टि से देखते हैं।  किसी भक्त की भक्ति के प्रकार पर प्रतिकूल टिप्पणी करना ज्ञानसाधक वर्जित समझते हैं।  महत्वपूर्ण बात यह कि श्रीगीता में यह स्पष्ट किया गया है कि जो भी मनुष्य साधना करेगा वह सुखी रहेगा। जातिए भाषा अथवा लिंग के आधार पर  भिन्नता देखना भक्ति के विषय में अस्वीकार कर दिया गया है।  ऐसे में कर्मकांड से जुड़ी किसी परंपरा में मनुष्य में किसी आधार पर भिन्नता देखी जाती है तो तय बात है कि वह श्रीमद्भागवतगीता में वर्णित समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है। ऐसे में अगर कोई सन्यासी या संत शनि शिंगणापुर में नारी प्रवेश का विरोध करता है तो उसके ज्ञान पर प्रश्न जरूर उठेंगे। वैसे संत वेदों व शास्त्रों की बात कर रहे हैं पर उन्हें यह ध्यान रखना चाहिये कि मथुरा मेें जन्मेए वृंदावन में पले फिर द्वारका में जाकर बसे महामना भगवान श्रीकृष्ण ने सारा ज्ञान समेटकर श्रीमद्भागवत गीता में रख दिया था। अगर संत भेदरहित दृष्टि से बोलकर अपना महत्व प्रमाणित करना चाहते हैं तो उन्हें यह याद रखना चाहिये कि इस देश में कर्मयोगियों की संख्या उनसे ज्यादा है जो उनकी बात को काट सकते हैं।

                  जब धर्म के विषय पर बहस हो और कोई संत वेशधारी उत्तेजित होकर बोलने लगे तो समझ लेना चाहिये कि वह घनघोर अज्ञान के अंधेरे में जीवन व्यतीत कर रहा है। शनिशिंगणापुर विषय पर प्रचार माध्यमों में जमकर बहस चलायी जा रही है। तय बात है कि यह  टीव चैनलों में विज्ञापनों का समय पास करने के लिये हो रहा है। इस बहस में अनेक कथित संत अपनी बात कहने आ रहे है। कथित संत शब्द हमने इसलिये लिखा है क्योंकि वह सन्यासी की वेशभूषा में होते हैं और उसकी गीता में जो ज्ञानी  व्याख्या है वह उसके ठीक विपरीत उनका आचरण होता है। अनेक बार उनकी वाणी से क्रोध से भरे शब्द निकलते हैं जैसे कि किसी के तर्क से उनका सब कुछ छिना जा रहा है। इनमें अनेक अधिक से अधिक कैमरा अपनी तरफ केंद्रिता होता देखने की ऐसी लालच होती है जिससे उनकी वाणी दिग्भ्रमित हो जाती है।
                   
धर्म की रक्षा में जीवन दाव पर लगाने वाले  यह कथित सन्त सन्यासी कभी अपनी वाणी से स्थिरप्रज्ञ नहीं दिखते जो कि श्रीमद्भागवतगीता के अनुसार ज्ञानी होने का प्रमाण है। भारतीय धर्म की पहचान उसके अध्यात्मिक ज्ञान से है जबकि कथित संत सन्यास कर्मकांडों के प्रचार को ही धार्मिकता का आधार मानते हैं।  श्रीगीता के अनुसार द्रव्यमय यज्ञ की अपेक्षा ज्ञानयज्ञ बताया गया है जबकि धर्म के कथित पेशेवर प्रचारक कर्मकांडों से स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताते हैं कि उनको दान दक्षिणा मिल सके। श्रीमद्भागवत गीता में भक्त तथा भक्ति के तीन प्रकार बताये गये हैं इसलिये ज्ञान साधक समाज में भिन्नता को उसी दृष्टि से देखते हैं।  किसी भक्त की भक्ति के प्रकार पर प्रतिकूल टिप्पणी करना ज्ञानसाधक वर्जित समझते हैं।  महत्वपूर्ण बात यह कि श्रीगीता में यह स्पष्ट किया गया है कि जो भी मनुष्य साधना करेगा वह सुखी रहेगा। जातिए भाषा अथवा लिंग के आधार पर  भिन्नता देखना भक्ति के विषय में अस्वीकार कर दिया गया है।  ऐसे में कर्मकांड से जुड़ी किसी परंपरा में मनुष्य में किसी आधार पर भिन्नता देखी जाती है तो तय बात है कि वह श्रीमद्भागवतगीता में वर्णित समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है। ऐसे में अगर कोई सन्यासी या संत शनि शिंगणापुर में नारी प्रवेश का विरोध करता है तो उसके ज्ञान पर प्रश्न जरूर उठेंगे। वैसे संत वेदों व शास्त्रों की बात कर रहे हैं पर उन्हें यह ध्यान रखना चाहिये कि मथुरा मेें जन्मेए वृंदावन में पले फिर द्वारका में जाकर बसे महामना भगवान श्रीकृष्ण ने सारा ज्ञान समेटकर श्रीमद्भागवत गीता में रख दिया था। अगर संत भेदरहित दृष्टि से बोलकर अपना महत्व प्रमाणित करना चाहते हैं तो उन्हें यह याद रखना चाहिये कि इस देश में कर्मयोगियों की संख्या उनसे ज्यादा है जो उनकी बात को काट सकते हैं।

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