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Sunday, February 28, 2016

प्राणायाम से बड़ा कोई तप नहीं है-मनुस्मृति के आधार पर चिंत्तन लेख(Pranayam se bada koyee Tap nahin-A Hindu Thought article Based on ManuSmriti-Great Knowledge In ManuSmriti)

            
                                    अध्यात्मिक ज्ञान व योग साधकों को यह भ्रम नहीं रखना चाहिये कि मनुस्मृति का विरोध कोई दूसरी धार्मिक विचाराधारा के लोग कर रहे हैं। न ही यह सोचना चाहिये कि समूचे दलित वर्ग के  समस्त सदस्य इसके विरोधी हैं। वरन् भारतीय समाज में कथित उच्च वर्ग के ही वह लोग जिनका काम ही देश के लोगों को भ्रमित, भयभीत तथा भ्रष्ट कर अपना हित साधने में है, वही इसका विरोध करते हैं। हम यहां उनके प्रतिकूल टिप्पणियां नहीं लिख रहे वरन्् मानव समाज का बौद्धिक शोषण की वर्षों पुरानी परंपरा की तरफ इशारा कर रहे हैं।  ऐसे अनेक पेशेवर बुद्धिमान है जो यह कहते हुए नहीं चूकते कि योग साधना से कुछ नहीं होता। अनेक धार्मिक कर्मकांडी व्यवसायी द्रव्य यज्ञ के माध्यम से अपने हित साधते हैं-ऐसे लोग कभी ओम शब्द की महिमा बखान नहीं कर सकते जिससे मन, वाणी तथा विचार में शुद्धता आती है। वह प्राणायाम के तप होने की बात स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि इससे मनुष्य के हृदय से आर्त भाव निकल जाने पर उसमें जो आत्मविश्वास आता है उससे वह द्रव्य यज्ञ करने का इच्छुक नहीं रहता। मानसिक दृष्टि से कमजोर लोग ही पेशेवर बुद्धिमानों को शिकार बनते हैं इसलिये वह प्राचीन ग्रंथों का विरोध करते हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है कि

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एकाक्षरं परं ब्रह्म प्राणायामः परे तपः।
सावित्र्यास्तु परं नास्ति मौनासत्यं विशिष्टयते।
                                    हिन्दी में भावार्थ- औंकार (ओम) ही परमात्मा की प्राप्ति का सर्वोत्कृष्ट साधन है। प्राणायाम से बड़ा कोई तप तथा गायत्री मंत्र से बड़ा कोई मंत्र नहीं है। मौन रहने की अपेक्षा सत्य बोलना श्रेष्ठ है।
                                    मुख्य बात यह है कि मनुष्य की बुद्धि अन्य जीवों से अधिक सामर्थ्यवान होती है पर अधिक बुद्धिमान इसी का हरण करने के लिये समाज में भ्रम, भय व भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करते हैं ताकि लोग उनकी शरण में आकर उद्धार की राह का पता पूछें। ऐसे लोग न केवल मनुस्मृति का विरोध करते हैं वरन् श्रीमद्भागवत गीता के संदेशों को भी अर्थहीन बताते हैं।  एक बात तय रही कि अधिक बुद्धिमान समाज के ज्ञानी लोगों को पसंद नहीं करते क्योंकि वह उनकी चालाकियों को चुनौती देते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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