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Tuesday, December 29, 2020

समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र (samadhi chenge life stile)Patanjali yog)


समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है।
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योगश्चित्तवृत्तिनिरोशः
हिन्दी में भावार्थ -चित्त की वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक जाना योग है।
तदाद्रष्टु स्वरूपऽवस्थानम्
हिन्दी में भावार्थ-उस समय अपने रूप में  स्थिति हो जाती है।
वृत्तसारूप्यतिरत्र
हिन्दी में भावार्थ-सामान्य समय में वृत्ति के सदृश स्वरूप होता है।
                        पतंजलि योग दर्शन ऐसा प्रमाणिक ग्रंथ जिसमें अंतर्साधना की महान विधियां तथा उनके अनुरूप चलने पर ऐसी सिद्धियां मिलने का वर्णन किया गया है जिनके होने का आभास भी सहज नहीं होता पर वह साधक के हित में काम करती हैं।
उपरोक्त तीनों श्लोकों अनुरूप योग का मूल आशय के साथ ही चित्त को सांसरिक विषयों से विराम होने पर होने वाले लाभ की व्याख्या की गयी है। जैसा कि सभी जानते हैं कि योग की आठ भाग हैं-यम, नियम, प्रतिहार, आसन, प्राणयाम, धारणा, ध्यान तथा समाधि। जैसा कि हम इनका क्रम देख रहे हैं कि इसका चरम समाधिपद है। यही वह स्थिति है जब चित्त सांसरिक विषयों से प्रथक होने पर आंतरिक शांति तथा आनंद में डूब जाता है।
                                  सहज लगने वाली यह स्थिति अत्यंत कठिनता हो प्राप्त होती है। इस साधक का अनुभव यह है कि समाधि की कोई अवधि नहीं होती। वह पांच मिनट की भी हो सकती है तो एक घंटे की भी। अधिक अवधि तो केवल संसार से पर रहने वाले सन्यासियों के लिये ही संभव है। ग्रहस्थ के लिये पांच दस मिनट की समाधि भी उसे आनंद के साथ नवीन ऊर्जा पैदा करने वाली होती है।  योग का मुख्य उद्देश्य भी यही है कि साधक को सांसरिक विषयों में संल्लिपता में हुए परिश्रम से विश्राम तथा संघर्ष से मिले तनाव से मुक्ति के साथ ही व्यय ऊर्जा की पुर्नप्राप्ति हो सके।  आसन तथा प्राणायाम तथा ध्यान से तन, मन के साथ ही मस्तिष्क को राहत मिलती है तो समाधि से संपूर्ण जीवन चक्र ही साधक के अनुकूल होता जाता है। सिद्धियां उसके हितार्थ सदा सजग रहती हैं, यह अलग बात है कि उसका पता चिंतन करने पर ही चलता है।
योग से भौतिक लाभ होता है पर अभौतिक भी होता है।  मस्तिष्क अनेक बार संभावित संकट तथा लाभ का संकेत देता है।  इसलिये हम अपने सासंरिक विषयों में संल्लिपता के लिये अपने समक्ष स्थित विकल्पों में अपने अनुकूल साधनों का चयन कर सकते हैं। संभव है कि अनेक लोगों को यह अंधविश्वास लगे पर साधक ने अपने बीस वर्ष साधनाकाल में जो सीखा है वह अन्य पाठकों से साझा किया जा रहा है।
लेखक दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप,ग्वालियर
फोन नंबर-9993637656, 8989475367

Friday, April 27, 2018

आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)


                       रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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                                 हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भले ही शुल्क लेकर कथा करते हैं पर उनका कार्यक्रम अत्यंत हृदय प्रसन्न करने वाला होता है।  अनेक प्रसिद्ध संतों को पास से देखने का अवसर मिला जिन्हें हम टीवी पर देखते थे।  हमने देखा है कि अनेक प्रसिद्ध संत बिना राजपदधारी लोगों की सहायता के बिना ही अपने आभामंडल से लोकप्रिय हैं। राजपुरुषों के साथ फोटो खिंचवाने का शौक उनको नहीं है। ऐसे ही संतों पर भारतीय अध्ययात्मिक ज्ञान का रथ स्वतः संचालित है। हमने देखा है कि अनेक कथित संत राजपुरुषों से सम्मानित होकर फूल जाते हें या चुनावी राजनीति संगठनों के साथ जुड़कर गौरवान्वित अनुभव करते हैं पर भगवतवाचक संत इससे दूर हैं। यह संत हमें ज्ञानी लगते हैं क्योंकि जानते हैं कि ‘राजा के अगाड़ी गधे के पिछाड़ी चलने के नतीजे खतरनाक हैं।’ हम उन संतो को विवादों के साथ खतरे के बीच देखते हैं जो राजपुरुषों के निकट होने का दावा करते हैं। यह प्राकृत्तिक सच्चाई है कि आपके अपने ही आपको निपटाते हें। राजपुरुषों के साथ निकटता में बड़ा खतरा है कि क्योंकि उनके हाथ में डंडा है जो अपना पराया नहीं देखता। जिनके हाथ में कानून का डंडा है जो न बाप देखता हैं न बेटा!  अगर आप राजपुरुषों के अपने नहीं है तो स्वयं को सुरक्षित समझें। यह राजपुरुष जब आपस में द्वैरथ करें तब बीच  में तो जाना ही नहीं चाहिये-चाहे यह राष्ट्रवादी हो या प्रगतिशील या वामपंथी।  अगर आप कला, पत्रकारित या धार्मिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं तो कभी राजपुरुषों को अपना मत बनाईये न समझिये क्योंकि अपने ही अपनों को निपटतों हैं-बात समझ गये न! न समझे तो कभी पूरी कहानी लिखेंगे।
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                                 एटीएम में रोकड़ यानि केश नहीं मिल रहा है-हमारा मानना है कि मुद्रा संकट बढ़ाओ ताकि उसका सम्मान बढ़े। सेवा तथा सौदा प्रदान करने वाले मुद्रा लेने में अब मनमाना चयन करने लगे हैं। एक तथा दो के सिकक्े तो लेना ही नहीं है। पांच सौ या दो हजार नोट पर छपाई का कालापान आ गया हो तो लेना नहीं है। सीधी बात कहें तो मुद्रा एक हजार व पांच सौ के नोटों के समय जो बेइज्जत हो रही थी वह दो हजार के नोट आने के बाद दोगुनी अपमानित हो रही है। अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार जब मुद्रा की कमी होगी तो उसका मान बढ़ेगा। पिछले कुछ समय समय से हम जिस तरह सौदेबाजी में पांच व दस के सिक्कोें की बेइज्जती देख रहे हैं उससे तो लगता है कि सरकार को सिक्के अब बंद कर देना चाहिये।  हमने नोटबंदी के समय देखा था कि पांच सौ तथा हजार के नोटों का प्रचलन बंद होने के बाद अपराध तथा आतंकवाद बहुत कम हो गया था। दो हजार का नोट आने के अपराध, आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार दोगुना बढ़ा है-ऐसा लोग मानते हैं। अब यह पता नहीं कि रोकड़ा संकट अचानक हुआ या योजनाबद्ध है पर होना चाहिये। शायद देश के सामाजिक संकट कुछ समय दूर रहे। अब मुद्रा की कमी कारण यह भी हो सकता है कि नोटबंदी के दौरान कालाधन भी बैंके के पास आ गया।  विशेषज्ञ जितना पहले कालाधन होने का अनुमान करते थे अब वह दुगुना होगा क्योंकि महंगाई बढ़ रही है।  यानि सरकार जितनी मुद्रा से देश चलाना चाहती थी उसका दुगुना उसे देना होगा क्योंकि उसे न तो कालाधन बनना रोका न भ्रष्टाचार। इसी कारण अब फिर वही सफेद होकर कालेपन की तरफ जा रहा है-यानि तिजोरियों में जमा हो रहा है। अगर हमारी सबात समझ आये तो गंभीर समझें वरना व्यंग्य समझकर भूल जायें।
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             आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान लगायें। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो फिर बाहर की क्रियाओं से अंदर की अनुभूति करें। जिस तरह कहा जाता है कि खाने के समय बात नहीं करना चाहिये उसी तरह जब किसी विषय, वस्तु, या व्यक्ति से संपर्क होने पर आनंद आये तब मौन हेकर उसका लाभ उठायें। जिस तरह अपनी भूख और प्यास किसी दूसरे को हम बांट नहीं सकते उसी तरह आनंद भी किसी के साथ बांटना संभव नहीं है। जब हमें आनंद मिल रहा हो तब अपनी आंख, कान,मुख  तथा नासिका तथा बुद्धि को अंदर ही केंद्रित रखें। दूसरे को देखने या उससे बोलने पर आनंद कम हो जाता है।  अंततः आंनद न बाहर मिलता है न ही उसे हम बाहर देख सकते हैं। उसकी अनुभूति तो हम अंदर ही कर सकते हैं।
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Saturday, October 14, 2017

अन्न जल तत्व भोजन के साथ ही औषधि भी हैं-हिन्दी लेख (Wheat And water is Lunch and medicine in Illness-HindiArticle)

अन्न जल तत्व भोजन के साथ ही औषधि भी हैं-हिन्दी लेख
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                     हमारे वेद शास्त्रों में कहा गया कि अन्न जल जहां मनुष्य के लिये भोजन हैं वही औषधि भी हैं। हम जैसे योग साधक इसका यह आशय लेते हैं कि भोजन में शामिल किये जाने वाली वस्तुयें न केवल पेट की क्षुधा शांत करती हैं वरन् बीमारियों में भी उनका अलग तरीके से दवा की तरह उपयोग हो सकता है। बरसात के बाद बदलते मौसम में बीमारियों का दौर चलता है और अधिकतर का संबंध कफ से होता है।
                     हमारे योग प्रशिक्षक गरम पानी पीने की सलाह देते हैं। वैसे हम हम एक योग साधक होने के नाते सुबह गरम गुनगुना पानी पीते हैं पर जब जुकाम हो जाये तो पूरा दिन ही पीते हैं। एक बात अनुभव की कि इस समय मटके का पानी पीने से सीने में कफ स्वतः जमा हो जाता है। ध्यान नहीं करते तो यह कफ खांसी के रूप में बदल जाता है। कल ऐसा ही हमारे साथ हुआ। जोर से खांसी का दौर चला तो हमने लगातार गरम पानी पिया।  आयुर्वेद की एक दो गोली भी ली। आज खांसी नहीं उठी। अब यह तय नहीं कर पा रहे कि आखिरी यह खांसी गयी कैसे? गरम पानी से या दवाओं से-या दोनों का प्रभाव हुआ।  पर हमारा अनुभव है कि लगातार गर्म पानी पीना जुकाम का सबसे बढ़िया इलाज है। इतना ही नहीं पर्यावरण प्रदूषण से सांसों में गये विकार भी गर्म पानी से नष्ट होते हैं।
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                        हम बहुत समय से अध्यात्मिक विषय पर लिखते रहे हैं पर यह देखा है कि आजकल जब तक बीमारियों के इलाज न बताये लोग किसी को संत या साधु मानने के लिये तैयार नहीं होते। यहां तक कि अधिकतर धार्मिक चैनल  ही आयुर्वेद के चिकित्सकों तथा उनके विज्ञापन से ही चल रहे हैं। इसलिये सोचा कि हम अपने ऊपर अजमाया नुख्सा भी लोगों से बांट लें। शायद इससे हमारे अध्यात्मिक लेखक होना प्रमाणित हो जाये।
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आप व्रत रखो या नहीं दूसरे को न हतोत्साहित करो न ही उत्साहित-करवाचौथ पर बहसबीच टिप्पणी
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                        करवाचौथ को लेकर भारतीय महिलाओं पर प्रतिकूल टिप्पणी करने वाले  महान अज्ञानी हैं। अज्ञान के कारण ही मनुष्य में क्रोध और अहंकार आता है। हिन्दू दर्शन के अनुसार बिना पूछे अपना ज्ञान नहीं बघारना चाहिये। इतना ही नहीं अगर कोई किसी भी तरीके से परमात्मा के प्रति अपना भाव समर्पित कर रहा है वह अच्छा लगे या नहीं ज्ञानी को चाहिये कि वह उसे विचलित न करते हुए अपना काम करे। हमारे देश में अनेक लोगों ने विद्वता की उपाधि स्वतः धारण कर ली हैं पर उन्हें यह पता ही नहीं ज्ञान तथा उसे धारण करने वाला ज्ञानी क्या होता है इसलिये चाहे जैसी बात बघारे जाते हैं। अरे भई, अगर तुम नहीं रखना चाहते कोई व्रत तो दूसरे का उपहास तो न उड़ाओ। हमारे दर्शन के अनुसार यह दुष्ट प्रवृत्ति है।
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कृपया इस पाठ को जनवाद तथा प्रगतिशील विचाराधारा के विद्वानों के पाठों से जोड़कर न देखा जाये जिन्हें हिन्दू जीवन पद्धति की खिल्ली उड़ाने की आदत है। हम तो हिन्दू विचारधारा के लेखकों समझाना चाहते हैं कि व्रत रखें या नहीं पर न तो दूसरे को रखने या न रखने के लिये न कहें।

Wednesday, August 2, 2017

योग साधक ही अपने कार्य में निरंतरता रख सकते हैं-हिन्दी लेख (A Yoga Sadahk has been Good workd=er)

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                             मोदी जी योगसाधक हैं-यह बात हमारे जैसे सामान्य योग साधकों के लिये आकर्षण का विषय स्वाभाविक रूप से रहती है। हमने देखा है कि योगसाधकों के चिंत्तन, मन तथा अनुसंधान का तरीका एक जैसा ही रहता है क्योंकि वह हर विषय के प्राकृत्तिक तथा सैद्धांतिक आधारों का अध्ययन कर ही निष्कर्ष निकालते हैं।  जिसने आष्टांग योग का अध्ययन कर लिया तो उसे किसी प्रकार के अध्ययन की आवश्यकता भी नहीं होती। बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी की मनस्थिति का ज्ञान उनके इर्दगिर्द लोगों को भी नहीं हो सकता-विरोधियों की तो बात ही छोड़िये।  संदर्भ कश्मीर का है।  कश्मीर की मुख्यमंत्राणी कहती हैं कि प्रशासनिक कार्यवाही से अलगाववादियों को नहीं साधा जा सकता-इसका अर्थ यह है कि केद्रीय एजेसियों ने अलगाववादियों के विरुद्ध जो मोर्चा खोला है वह उससे नाखुश हैं।  संभव है कि मोदी जी के अनेक समर्थक भी ऐसा ही सोचते हों पर सच यह है कि कश्मीर का मसल अब लंबा खिंचने वाला है क्योंकि मोदी जी ने शत्रुओं की जड़ों पर हमला किया है।  हम देख रहे हैं कि किसी भी समाज में पैसे के लिये आदमी किसी भी हद तक चला जाता है मिले तो एक कदम से भी लाचार होता है।
                               भले ही मोदीजी ने घोषित नही किया कि वह कश्मीर के बारे में क्या सोचते हैं पर हमारा मानना है कि उन्होंने तय कर लिया है कि पैसे के दम पर कश्मीर को बंधक बनाने वालों का चक्रव्यूह तोड़े बिना वह मानेंगे ही नहीं।  वहां की मुख्यमंत्राणी को मोदी जी अभी हटाने का प्रयास नहीं करेंगे चाहे वह कितने भी बुरे बयान देती रहे।  आखिरी बात यह कि मोदी जी ने कहा था कि तीन साल तक विकास के लिये काम करता रहूंगा बाद में चुनाव से दो साल पहले राजनीति करूंगा।  इतना ही नहीं उन्होंने सेवानिवृत राष्टपति प्रणवमुखर्जी को अपना पितृतुल्य बताते हुए बताया कि उन्होंने नये नये प्रधानमंत्री होने पर उनकी मदद की। अनेक महत्वपूर्ण अवसरों पर उन्होंने ही हिम्मत बंधाई।  
                             हमें लगता है कि मोदी जी देश के अन्य प्रधानमंत्रियों से कहीं अधिक प्रभावशाली सिद्ध होंगे। आरंभिक दिनों में वह केवल अध्ययन ही करते दिखे थे। एक योग साधक बिना किसी अध्ययन या चिंतन के कोई भी काम नहीं करता। अनेक बार मोदी जी ऐसी बात कह जाते हैं जो केवल सहज योग के अभ्यासी ही कह सकते हैं।  सबसे बड़ी बात है कि अपने कार्य में निरंतरता बनाये रखना केवल योग साधकों के लिये ही संभव है और यही बात हमें मोदी जी में दिखती है।

Wednesday, July 5, 2017

पनामालीक के नायक शरीफ और शीजिनपिंग जानबूझकर भारत से तनाव बढ़ा रहे हैं (PanamaLeak tenshion for pakistan and chinta-HindiEditorial)


                                                 इस समय भारतीय सीमा पर पाकिस्तान तथा चीन दोनों ही तनाव बढ़ा रहे हैं। चीन तो खुल्लमखुल्ला भारत को युद्ध की धमकी दे रहा है।  हमें लगता है कि पाकिस्तान तथा चीन की आंतरिक राजनीति में पनामालीक के बाद एक अस्थिरता का दौर चल रहा है।  कहीं न कहीं दोनों राज्य प्रमुख अपने अंदर ही राजनीतिक दबाव अनुभव कर रहे हैं इसलिये भारत से विवाद की आड़ में बचना चाहते हैं।      
                                          चीन की  बौखलाहट देखकर लग रहा है वहां कोई राजनीतिक अंर्तद्वंद्व चल रहा है। वहां के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग का नाम पनामलीक में आया था।  भारत में तो पनामलीक से जुड़े राज प्रचार माध्यमों ने दबा दिये पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, रूस के राष्ट्रपति पुतिन तथा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नाम देश में चर्चित है। रूस में पुतिन को चुनौती देने वाला कोई नहीं है पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर अभी तलवार लटक रही है।  ऐसा लगता है कि शीजिनपिंग की पकड़ चीन पर वैसी नही है जैसे पुतिन की है शायद इसलिये वह अपनी पार्टी के सदस्यों से आतंकित हो सकता है। शीजिनपिंग इतना डरा हुआ है कि उसने सर्वोच्च सेनापति का पद भी अपने पास रख लिया है।  पाकिस्तान के कुछ विद्वान अपनी सेना पर ही आरोप लगा रहे  हैं कि वह शरीफ से लोगों का ध्यान हटाने के लिये भारत से तनाव बढ़ाने की नौटंकी करती है। शी जिनपिंग भी शायद यही कर रहा है।  शीजिनपिंग एक महान भ्रष्ट नेता है और इस बात की पूरी संभावना है कि वहां उसकी पार्टी में बहुत अधिक विरोध मौजूद हा। यह विरोधी शायद इतनी संख्या में हैं कि उन्हें मिटाना संभव नहीं है इसलिये उनका ध्यान विदेशी शत्रु की तरफ खींचा जा रहा है।  पुतिन भी अमेरिका से ऐसे ही प्रयास में व्यस्त है।
             शीजिंनपिंग तथा नवाजशरीफ दोनों ही पनामलीक के नायक हैं। जिस बैंक के यह ग्राहक हैं उसमें भारतीय  भी हैं पर उनके नाम प्रचार माध्यमों ने छिपा दिये हैं पर शायद इन दोनों को इस बात का विश्वास है कि भारत से तनाव बढ़ायेंगे तो वहां के मित्र उनकी सहायता करेंगे इसलिये निडरता से सीमा पर आग बरसा रहे हैं। हमें दोनों से किसी बड़े युद्ध की संभावना नहीं दिखती क्योंकि नवाज शरीफ और शीजिनपिंग अपने देशों में शीशे के महल में रहते हैं इसलिये अपनी सेना को किसी पर गोली बरसाने का हुक्म नहीं दे सकते। 

Sunday, April 16, 2017

इन कंपनियों के बुतों में दम नहीं है कि तीसरा विश्वयुद्ध लड़ सकें (not Polibiliti of Third World war)

                                          अमेरिका ने अफगानिस्तान में क्या बम गिराया उससे सन्नाटा भारत में छा गया है। अरे भई, यह अमेरिका नये नये हथियार बनाता है और फि र ऐसी जगहों पर प्रयोग करता है जहां से प्रतिरोध की कोई संभावना नहीं है। अमेरिका कभी उत्तर कोरिया पर हमला नहीं करेगा क्योंकि वहां से प्रतिकार की संभावना है।  यह तो अमेरिका भी कह रहा है कि उसने बमों की मां प्रयोग के लिये अफगानिस्तान में गिरायी है। भारत के लोग ऐसे सहम गये हैं जैसे कि कहीं अमेरिका नाराज होकर हम पर हमला न कर दे। अमेरिका अपने दुश्मनों से कोई लड़ायी नहीं जीता। उसने हमेशा ही अपने ऐसे लोगों को निपटाया है जो उसके कभी मित्र थे-हिटलर, सद्दाम हुसैन, कद्दाफी और लादेन कभी अमेरिका के गोदी में बैठे थे। इनको भी अकेले नहीं निपटाया वरन् मित्र देश उसके साथ रहे। अकेले लड़कर वियतनाम में अमेरिका बुरी तरह से हार चुका है।  लगभग यही स्थिति चीन की भी है उसे भी वियतनाम युद्ध में मुंह  की खानी पड़ी थी।  भारतीय नेता चतुर हैं वह अमेरिका से मित्रता तो करते हैं पर उसकी गोदी में नहीं बैठते। फिर भारत की सैन्य क्षमता अमेरिका से थोड़ी ही कम होगी। बहरहाल इस बम को एक विज्ञापन ही समझो। उसने बीस हजार करोड़ खर्च कर 36 आतंकी मारे-इस दावे को कोई प्रमाण नहीं है। अब इस बम को बेचने की करेगा। 
                        ट्रम्प ने चुनावों में कहा था कि अमेरिका उनके लिये पहले हैं और वह दूसरे देशों की मदद में अपना समय और पैसा बर्बाद नहीं करेंगे।  कुछ लोग कहते हैं कि दुनियां भर में इंसानी मुखौटे राज्य कर रहे हैं पर उनकी डोर खुफिया एजेंसी के हाथ में होती है।  ट्रम्प ने भी देख लिया कि राजकाज से सीधे जनता का भला तो हो नहीं सकता इसलिये अपनी राष्ट्रवादी छवि बचाये रखने के लिये खुफिया एजेंसियों की मात मान लो। वैसे हमें यह विज्ञापन अच्छा लगा। सुनने में आ रहा है कि भारत का भी एक लड़का इसमें मरा है पर इसकी पुष्टि नहीं हुई है। हम सोच रहे थे कि इस विज्ञापन से कहीं न कहीं भारतीय लोगों को भी प्रसन्न करने की कोशिश जरूर होगी। सच क्या है? यह तो हमें पता नहीं  पर इतना तय है कि इससे कोई बड़ा युद्ध नहीं भड़केगा।  तीसरे विश्व युद्ध की संभावनाये तो बिल्कुल नहीं है।

                        सीरिया में अमेरिकी हमले के बाद भी तीसरे विश्वयुद्ध की संभावना नगण्य है। अन्मयस्क आलसी ट्रम्प और विलासी पुतिन अन्यत्र जगहों पर परंपरागत रूप से लड़ते रहेंगे पर एक दूसरे पर हमला नहीं करेंगे। वैसे भी तीसरा युद्ध भारत के बिना हो नहीं सकता। अगर यह दोनों देश टकराते हैं तो भारत मुंह फेर कर बैठ सकता है। दूसरे विश्व युद्ध में भारत की मौजूदगी दोनों तरफ थी। जापान की तरफ सुभाषचंद बोस थे तो ब्रिटेन की तरफ अहिंसक आंदोलन के नेता जिन्होंने उसे इस शर्त पर समर्थन दिया कि वह आजादी प्रदान कर देगा। बाद में छांट बांटकर आजादी मिली-उसके बाद देश के अंदर ही भारी हिंसा हुई जिसमें विश्वयुद्ध से ज्यादा लोग हताहत हुए। चीन भी इस विश्वयुद्ध में नहीं आयेगा-जुबानी जमाखर्च कर वह अपनी जान बचायेगा। असली वजह यह भी नहीं है। दरअसल जिस तरह हमें विदेशी चैनलों में टाई और सूटबूट पहनने वाले नेता और विशेषज्ञ हम देख रहे हैं उससे नहीं लगता कि कोई बड़ा संकट आयेगा। यह विदेशी नेता अपना स्तर बचाये रखने के लिये निरीह देशों पर बमबारी करते रहेंगे जहां से प्रतिरोध की आशंका कतई न हो। विशेषज्ञ अपना टीआरपी बचाते रहेंगे। 

Sunday, November 27, 2016

उसे जल्दी पता लग जायेगा कि कश्मीर उसके बाप की भी जागीर नहीं है-हिन्दी लेख (It wil Clear front Him That kashmir is Not Proparty his Fathar-Hindi Article)


हमने एक लेख लिखा था वह मिल नहीं रहा पर उसका सारांश यहां लिख देते हैं। प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर देह सहित मौजूद हैं। उनका हमने एक लेख पढ़ा था जिसमें उन्होंने बताया कि जब आजादी के बाद पाकिस्तान के कबायली कश्मीर में घुस आये तो वहां के राजा ने भारत से मदद मांगी। भारतीय सेना ने कबायलियों को खदेड़ना प्रारंभ किया। जब भारतीय सेना आगे बढ़ रही तो वहां के एक नेता ने भारत के प्रधानमंत्री से कहा कि ‘बस, जहां तक भारतीय सेना आगे बढ़े गयी है इससे आगे कश्मीर में न बढ़े क्योंकि मेरी इतने ही इलाके तक चलती है। बाकी मैं नहीं संभाल पाऊंगा।’
तब भारत ने अपनी सेना को बढ़ने से रोक दिया और वही हिस्सा आज पाकिस्तान के पास है क्योंकि उसकी ठेकेदारी भारत का कश्मीरी नेता नहीं लेना चाहता था। वह लेख हमने कब पढ़ा याद नहंी पर जेहन में बना रहा। जब अंतर्जाल पर लिखना शुरु किया तो उसे हमने आधार बनाया। इसका मतलब हमने यह निकाला कि देश का विभाजन ही ठेकेदारी पर हुआ। भारत के तत्कालीन पूंजीपतियों का भी कोई बड़ा कारखाना उस समय भारत के उस हिस्से में नहीं था जो आज पाकिस्तान है। भारतीय पूंजीपतियों की उस समय तक अंग्रेजों पर पकड़ अच्छी हो गयी थी और देश के कथित समाज सेवकों के समूह भी उनसे चंदा वगैरह पाते थे। यकीनन उस समय इन्हीं पूंजीपतियों ने भी कहा होगा कि हमारा पूंजी वर्चस्व जिस इलाके तक है वही भारत में रहे बाकी तो अलग हो जाने दो। यह हमारी योगदृष्टि से उपजा निर्णय है इसलिये इसकी संभावना है। हमारे इस संदेश को पढ़कर कोई नैयर साहब से पता करे कि उन्होंने ऐसा कब लिखा था।
बहरहाल उस स्वर्गीय कश्मीरी नेता का बूढ़ा पुत्र कह रहा है कि कश्मीर भारत के बाप का नहीं जो पाकिस्तान से छीन लेगा।
आप समझे या नहंी पर हम उसी लेख के आधार पर कह रहे हैं कि कश्मीर का वह हिस्सा भारत ने ले लिया तो उसकी पारिवारिक जागीर खत्म हो जायेगी। हम भी उस बुढ़ऊ को बता देते हैं हम भी अक्सर यह पूछते हैं कि ‘सिध किसके बाप का है जो वह कहता है कि पाकिस्तान का हिस्सा है।’
अगर सिंध व बलूचिस्तान पाकिस्तान से अलग हो जाये तो पता लग जायेगा कि कश्मीर किसका है। इन दोनों प्रांतों के खून पर पाकिस्तान टिका है जिसके आधार पर वह कश्मीर को लेकर भारत से लड़ता रहता है। आखिरी बात यह कि नोटबंदी के परिणाम जब कालांतर में आयेंगे तो ऐसे कई लोग बौखलाते नज़र आयेंगे जिन्हें लगता है कि हमारी जाति, धर्म और प्रदेश बाप की जागीर हैं। नोटबंदी से हमने इसका संबंध इसलिये जोड़ा है कि पाकिस्तान अब तक भारत से अवैध रूप में गये पैसे पर ही जिंदा है और उसका भविष्य खतरे में हैं। आज एक चैनल पर पाकिस्तान के एक सेवानिवृत्त अधिकारी का सुर बदला हुआ था और उससे लगता है कि भारत की नोटबंदी के कुछ प्रभाव उन भी पड़े हैं। जिस तरह भारत के रणनीतिकार आगे बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए उस बूढ़े और चूके हुए कश्मीरी नेता को ऐसे प्रश्न उठाकर उन्हें उग्र नहीं बनाना था। उसे जल्दी ही पता लग जायेगा कि कश्मीर उसके बाप की जागीर नहीं है।


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Sunday, October 30, 2016

तनाव के वातावरण में हॉकी में पाक पर जीतना भी संतोषजनक-हिन्दी लेख (Victory in Hoicky over Pakistan Gave Great Saticfication in Tenson-Hindi Article)

             
                               चलो अच्छा ही हुआ कि आज दीपावली के दिन भारत ने एशिया हॉकी कप के फायनल में पाकिस्तान को 3-2 से हराकर खिताब जीत लिया।  भारतीय प्रचार माध्यम अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिये खेलों को सनसनीपूर्ण बना देते हैं इसलिये दर्शकों के भावुक होने की पूरी संभावना रहती है-खासतौर से जब देशभक्ति और हिन्दू पर्व का संयुक्त विषय हो-ऐसे में हारने पर कुछ लोग तनाव ज्यादा अनुभव करते हैं।  बहरहाल वह मैच हमने देखा। जैसा कि हम जानते हैं कि अब हॉकी का मैच 15-15 मिनट के चार भागों में खेला जाता है। भारतीय हॉकी टीम की यह रणनीति बन गयी है या उसकी स्वाभाविक प्रकृत्ति है कि वह पहले और चौथे भाग में बहुत ज्यादा आक्रामक खेलती है पर दूसरे व तीसरे भाग में उसका प्रदर्शन थोड़ा कमजोर रहता है।
           इस मैच में भी भारत ने पहले ही भाग में 2-1 से बढ़त बना ली थी पर तीसरे भाग में पाकिस्तान ने एक गोल कर बराबरी की।  चौथे भाग में हमारा यकीन था कि पाकिस्तान पर भारत की तरफ से गोला जरूर होगा।  हारने जीतने की चिंता नहीं थी पर हम सोच रहे थे कि अन्य भावुक भारतीय अगर यह स्कोर देखेंगे तो चिंता में पढ़ जायेंगे।  तीसरा गोल होने के बाद हमें भी लग रहा था कि जैसे तैसे समय पास हो तो ठीक है। बहरहाल भारत यह मैच जीत गया। यह कामयाबी पाकिस्तान के विरुद्ध है इसलिये ज्यादा महत्वपूर्ण है वरना तो  वैश्विक स्तर पर भारतीय टीम को अपना प्रभाव दिखाने के लिये अभी बहुत मेहनत करनी है।
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                               हमारे अंदर भी पशु और पक्षियों के प्रति भारी संवेदनायें हैं पर दिखावा नहीं करते। इधर कुछ लोग पटाखे चलने से जानवरों पर संकट देख रहे हैं। अगर हिन्दूवादी पूछ रहे हैं कि उनके पर्वो पर ही सवाल क्यों उठते हैं तो इसका जवाब तो मिलना ही चाहिये। दिवाली पर पशुप्रेम दो प्रकार के लोगों को ही जागा है। एक वह जो निरपेक्ष हैं दूसरे जो कुत्ते पालते हैं जिनको इन पटाखों के शोर से बहुत परेशान होती है और उससे बचने के लिये वह स्वामी के शयनकक्ष तक बिना अनुमति के घुस जाते हैं। केवल हिन्दू पर्व पर विलाप करने वाले पशुप्रेमियों को हमारी यह राय है कि वह अपने पालतु बिल्ली और कुत्तों को शयन कक्ष में जाकर बिठा दें उन्हेें पटाखों के शोर से परेशानी नहीं होगी। हमारे पास एक टॉमी नामक कुत्ता-यह शब्द लिखते हुए पीड़ा होती है-तेरह साल रहा है उसे हम इसी तरह ही दिवाली और दशहरा पर इसी तरह बचाते हैं।  आज पशुप्रेमियों का अभियान देकर उसकी याद आ रही है और मन भावुक हो रहा है। काश! वह होता तो आज उसे हम इसी तरह अपने शयनकक्ष के पलंग के नीचे दुबका देते।
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                       दीपावली पर चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान तो चल रहा है पर बाज़ार में जिस तरह भीड़ लगी है तो दुकानदार से यह पूछना भी मुश्किल है कि यह चीनी है या देसी। फिर कोई पहचान भी नहीं है।  इस बात की संभावना है कि कई दिनों से चीनी सामान के बहिष्कार की बात चलती रही है तो जिन व्यापारियों ने सामान खरीदा हो वह बाहर की पैकिंग भी बदल कर सामान बेच सकते हैं।  अतः पूरी तरह यह प्रयास सफल नहीं हो सकता कि चीनी सामान बिके ही नहीं। वैसे भी हम आर्थिक दृष्टि से छोटे व्यापारियों की देशभक्ति पर सवाल नहीं उठायें तो अच्छा है पहले बड़े मगरमच्छों से सभी सवाल करें जो भारी मात्रा में सामान मंगवा रहे है।

Thursday, October 13, 2016

हिन्दू विरोधी नहीं चाहते कि विजयी घोष ‘जयश्रीराम’ घोष भारत में गूंजे-हिन्दी लेख (AntiHindu has been Disturb "JayShriRam* Slogan-Hindi Article)


                            जयश्रीराम शब्द का उच्चारण  भारतीय जनमानस की आत्मा है जिनको उनका नाम पसंद नहीं है वह कथित विदेशी धर्मों के राजनीतिक के विस्तार करने वाले हैं। जब हम खुश होते हैं तो ‘जयश्रीराम’ बोलते हैं, जब परेशानी हो तो आर्तभाव ‘हे राम’ कहकर बोझ हल्का करते हैं। दरअसल निरपेक्ष लोग चाहते हैं कि बस यहां भारतीय जनमानस आर्त भाव से ‘हेराम’ बोलता रहे। वह कभी दैहिक, शारीरिक तथा मानसिक रूप से मजबूत होकर ‘जयश्रीराम’ का उद्घोष न करे ताकि गरीब कल्याण का उनका व्यापार चलता रहे।
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                           यह भारत है जहां प्रधानमंत्री कह ही सकता है कि सैन्य विषय का राजनीतिकण न करो। नवाज शरीफ की तरह प्रतिबंध तो नहीं लगा सकता। उनके राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं को लगता है कि निरपेक्षों को इस प्रचार से चुनौती दे सकते हैं तो उन्हें रोकने के लिये उनका पासपोट तो भारत में जब्त नहीं हो सकता। अलबत्ता निरपेक्ष समूह के बुद्धिमानों की हालत देखते ही बनती है।
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             ऐसा लगता है कि कश्मीर सीमा पर जमकर आतंकवादियों की सफाई हो रही है। पाकिस्तान में कोहराम न मच जाये इस वजह से वह बता नहीं रहा। तंगधार में जिस तरह सेना ने आतंकवादियों की घूसपैठ रोकी है उससे यह साफ हो रहा है कि आतंकवादियों के सफाये किये बिना वह रुकेगी नहीं।
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                               रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर के बयान से निरपेक्ष विचारक यह सोचकर हतप्रभ हैं कि एक न एक राष्ट्रवादी प्रतिदिन उनके पाकिस्तान प्रेम की दुखती रग पर  हाथ रख ही देता है। पाकिस्तान प्रेमी निरपेक्ष विचारकों को रक्षामंत्री पार्रिकर का बयान अगर े चिढ़ाता है तो वह अच्छा जरूर लगेगा।
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                                    तीन तलाक पर टाईम्स नाउ पर बहस चल रही है। धर्मनिरपेक्षवादियों ने यहां अपने ही वाद का मजाक बना दिया है।  धर्मनिरपेक्षता का अर्थ केवल पूजा पद्धति के अधिकार तक ही है जो घर या दरबार की दीवारों की सीमा तक ही हो सकती है। सड़क पर तो संविधान का लिखा ही चलेगा चाहे पवित्र ग्रंथों में कुछ भी लिखा हो।  दूसरी बात यह कि संविधान लोगों को पूजा पद्धति तक ही अधिकार देता है पवित्र ग्रंथों के सम्मान की बात वह नहीं करता क्योंकि यह उसके क्षेत्र का विषय नहीं है। हमारा तो यह तक मानना है कि धर्म के नाम पर घर या दरबार  के बाहर जूलूसों और खानपान से अगर किसी दूसरे को तकलीफ होती है तो उसे संविधान रोकेगा चाहे भले ही पवित्र ग्रंथ में कुछ भी लिखा हो।
धर्मनिरपेक्षता में पूजा पद्धति मानने तक ही अधिकार है।  इससे आगे एक देश एक कानून लागू करना ही होगा।
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Sunday, September 25, 2016

पाकिस्तान का टूटना तय है-हिन्दी लेख (Pakistan destroyd by Pakistan-Hindi Artcile)

                                          जिस तरह के आसार लग रहे हैं उससे तो लगता है कि पाकिस्तान अगले वर्ष के अंत ही अपना अस्तित्व बचा ले तो बहुत बड़ी बात होगी। देश के कुछ विद्वानों को यह गलतफहमी है कि भारत के रणनीतिकारों ने बिना सोचे समझे बलूचिस्तान का मुद्दा उठाया है। यह मुद्दा उठने के बात वैश्विक स्तर की प्रतिक्रियायें देखकर तो यह लगता है कि पाकिस्तान पर अमेरिका ही नहीं बल्कि सभी देश वक्र दृष्टि रखते हैं। बलूचाी नेता स्पष्ट रूप से पंजाबी सेना और शासकों पर बरस रहे हैं।  विश्व में यह बात पहली बार प्रचार पटल पर आयी है कि पाकिस्तान एक देश नहीं वरन् एक धर्म के ही भाषा विशेष लोगों से नियंत्रित देश हैं जिसमें दूसरी जातियों और संस्कृतियों को जबरन अपने झंडे के नीचे दिखाया जाता है। पाकिस्तान ने जितना कश्मीर में भारत को परेशान किया है उससे सौ गुना भारत बलूचिस्तान में करने वाला है। भारतीय रणनीतिकारों ने सन् 1947 में हुए अप्राकृतिक विभाजन के विरुद्ध ऐसा अभियान प्रारंभ किया है जो पूरे विश्व को प्रभावित करेगा। अमेरिका कभी भी बलूचिस्तान पर भारत के रुख का विरोध नहीं  करेगा क्योंकि अपने शत्रू चीन के विरुद्ध उसे रोकने के लिये यह उसे सुविधा प्रदान करेगा।
                                 अंतर्जाल के शब्द सैनिकों को सलाह है कि ट्विटर पर रुझान में पाकिस्तान लिखकर वहां के रुझान देखें और भारत विरोधियों पर जमकर प्रहार करें। उन्हें समझायें कि अपने मीडिया प्रचार में आकर परमाणु बम को मसखरी न समझेें। प्रहार रोमन लिपि में करें ताकि उनके समझ में आये। इतना भी समझा दें कि जब भारतीय सेना इस्लामाबाद पहुंच गयी तो पता लगा कि उनके पास तो परमाणु बम था ही नहीं। भारत तब ऐसे ही जवाब देता फिरेगा जैसे आज इराक पर आक्रमण के बाद रासायनिक बम न मिलने पर अमेरिका देता फिर रहा है। भारत को अपने अनेक हथियारों का परीक्षण करना है और पाकिस्तान के मक्कार नेता और अहंकारी सेना यही अवसर देने जा रहे हैं। अभी भी अवसर है भारत जो कहे मान लो वरना सीरिया मिस्र और इराक के अनेक शहर बिना परमाणु बम के तबाह हो चुके हैं और कराची, लाहौर तथा इस्लामाबाद का हश्र भी वैसा ही हो सकता है।

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