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Friday, April 27, 2018

आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)


                       रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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                                 हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भले ही शुल्क लेकर कथा करते हैं पर उनका कार्यक्रम अत्यंत हृदय प्रसन्न करने वाला होता है।  अनेक प्रसिद्ध संतों को पास से देखने का अवसर मिला जिन्हें हम टीवी पर देखते थे।  हमने देखा है कि अनेक प्रसिद्ध संत बिना राजपदधारी लोगों की सहायता के बिना ही अपने आभामंडल से लोकप्रिय हैं। राजपुरुषों के साथ फोटो खिंचवाने का शौक उनको नहीं है। ऐसे ही संतों पर भारतीय अध्ययात्मिक ज्ञान का रथ स्वतः संचालित है। हमने देखा है कि अनेक कथित संत राजपुरुषों से सम्मानित होकर फूल जाते हें या चुनावी राजनीति संगठनों के साथ जुड़कर गौरवान्वित अनुभव करते हैं पर भगवतवाचक संत इससे दूर हैं। यह संत हमें ज्ञानी लगते हैं क्योंकि जानते हैं कि ‘राजा के अगाड़ी गधे के पिछाड़ी चलने के नतीजे खतरनाक हैं।’ हम उन संतो को विवादों के साथ खतरे के बीच देखते हैं जो राजपुरुषों के निकट होने का दावा करते हैं। यह प्राकृत्तिक सच्चाई है कि आपके अपने ही आपको निपटाते हें। राजपुरुषों के साथ निकटता में बड़ा खतरा है कि क्योंकि उनके हाथ में डंडा है जो अपना पराया नहीं देखता। जिनके हाथ में कानून का डंडा है जो न बाप देखता हैं न बेटा!  अगर आप राजपुरुषों के अपने नहीं है तो स्वयं को सुरक्षित समझें। यह राजपुरुष जब आपस में द्वैरथ करें तब बीच  में तो जाना ही नहीं चाहिये-चाहे यह राष्ट्रवादी हो या प्रगतिशील या वामपंथी।  अगर आप कला, पत्रकारित या धार्मिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं तो कभी राजपुरुषों को अपना मत बनाईये न समझिये क्योंकि अपने ही अपनों को निपटतों हैं-बात समझ गये न! न समझे तो कभी पूरी कहानी लिखेंगे।
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                                 एटीएम में रोकड़ यानि केश नहीं मिल रहा है-हमारा मानना है कि मुद्रा संकट बढ़ाओ ताकि उसका सम्मान बढ़े। सेवा तथा सौदा प्रदान करने वाले मुद्रा लेने में अब मनमाना चयन करने लगे हैं। एक तथा दो के सिकक्े तो लेना ही नहीं है। पांच सौ या दो हजार नोट पर छपाई का कालापान आ गया हो तो लेना नहीं है। सीधी बात कहें तो मुद्रा एक हजार व पांच सौ के नोटों के समय जो बेइज्जत हो रही थी वह दो हजार के नोट आने के बाद दोगुनी अपमानित हो रही है। अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार जब मुद्रा की कमी होगी तो उसका मान बढ़ेगा। पिछले कुछ समय समय से हम जिस तरह सौदेबाजी में पांच व दस के सिक्कोें की बेइज्जती देख रहे हैं उससे तो लगता है कि सरकार को सिक्के अब बंद कर देना चाहिये।  हमने नोटबंदी के समय देखा था कि पांच सौ तथा हजार के नोटों का प्रचलन बंद होने के बाद अपराध तथा आतंकवाद बहुत कम हो गया था। दो हजार का नोट आने के अपराध, आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार दोगुना बढ़ा है-ऐसा लोग मानते हैं। अब यह पता नहीं कि रोकड़ा संकट अचानक हुआ या योजनाबद्ध है पर होना चाहिये। शायद देश के सामाजिक संकट कुछ समय दूर रहे। अब मुद्रा की कमी कारण यह भी हो सकता है कि नोटबंदी के दौरान कालाधन भी बैंके के पास आ गया।  विशेषज्ञ जितना पहले कालाधन होने का अनुमान करते थे अब वह दुगुना होगा क्योंकि महंगाई बढ़ रही है।  यानि सरकार जितनी मुद्रा से देश चलाना चाहती थी उसका दुगुना उसे देना होगा क्योंकि उसे न तो कालाधन बनना रोका न भ्रष्टाचार। इसी कारण अब फिर वही सफेद होकर कालेपन की तरफ जा रहा है-यानि तिजोरियों में जमा हो रहा है। अगर हमारी सबात समझ आये तो गंभीर समझें वरना व्यंग्य समझकर भूल जायें।
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             आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान लगायें। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो फिर बाहर की क्रियाओं से अंदर की अनुभूति करें। जिस तरह कहा जाता है कि खाने के समय बात नहीं करना चाहिये उसी तरह जब किसी विषय, वस्तु, या व्यक्ति से संपर्क होने पर आनंद आये तब मौन हेकर उसका लाभ उठायें। जिस तरह अपनी भूख और प्यास किसी दूसरे को हम बांट नहीं सकते उसी तरह आनंद भी किसी के साथ बांटना संभव नहीं है। जब हमें आनंद मिल रहा हो तब अपनी आंख, कान,मुख  तथा नासिका तथा बुद्धि को अंदर ही केंद्रित रखें। दूसरे को देखने या उससे बोलने पर आनंद कम हो जाता है।  अंततः आंनद न बाहर मिलता है न ही उसे हम बाहर देख सकते हैं। उसकी अनुभूति तो हम अंदर ही कर सकते हैं।
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Saturday, October 14, 2017

अन्न जल तत्व भोजन के साथ ही औषधि भी हैं-हिन्दी लेख (Wheat And water is Lunch and medicine in Illness-HindiArticle)

अन्न जल तत्व भोजन के साथ ही औषधि भी हैं-हिन्दी लेख
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                     हमारे वेद शास्त्रों में कहा गया कि अन्न जल जहां मनुष्य के लिये भोजन हैं वही औषधि भी हैं। हम जैसे योग साधक इसका यह आशय लेते हैं कि भोजन में शामिल किये जाने वाली वस्तुयें न केवल पेट की क्षुधा शांत करती हैं वरन् बीमारियों में भी उनका अलग तरीके से दवा की तरह उपयोग हो सकता है। बरसात के बाद बदलते मौसम में बीमारियों का दौर चलता है और अधिकतर का संबंध कफ से होता है।
                     हमारे योग प्रशिक्षक गरम पानी पीने की सलाह देते हैं। वैसे हम हम एक योग साधक होने के नाते सुबह गरम गुनगुना पानी पीते हैं पर जब जुकाम हो जाये तो पूरा दिन ही पीते हैं। एक बात अनुभव की कि इस समय मटके का पानी पीने से सीने में कफ स्वतः जमा हो जाता है। ध्यान नहीं करते तो यह कफ खांसी के रूप में बदल जाता है। कल ऐसा ही हमारे साथ हुआ। जोर से खांसी का दौर चला तो हमने लगातार गरम पानी पिया।  आयुर्वेद की एक दो गोली भी ली। आज खांसी नहीं उठी। अब यह तय नहीं कर पा रहे कि आखिरी यह खांसी गयी कैसे? गरम पानी से या दवाओं से-या दोनों का प्रभाव हुआ।  पर हमारा अनुभव है कि लगातार गर्म पानी पीना जुकाम का सबसे बढ़िया इलाज है। इतना ही नहीं पर्यावरण प्रदूषण से सांसों में गये विकार भी गर्म पानी से नष्ट होते हैं।
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                        हम बहुत समय से अध्यात्मिक विषय पर लिखते रहे हैं पर यह देखा है कि आजकल जब तक बीमारियों के इलाज न बताये लोग किसी को संत या साधु मानने के लिये तैयार नहीं होते। यहां तक कि अधिकतर धार्मिक चैनल  ही आयुर्वेद के चिकित्सकों तथा उनके विज्ञापन से ही चल रहे हैं। इसलिये सोचा कि हम अपने ऊपर अजमाया नुख्सा भी लोगों से बांट लें। शायद इससे हमारे अध्यात्मिक लेखक होना प्रमाणित हो जाये।
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आप व्रत रखो या नहीं दूसरे को न हतोत्साहित करो न ही उत्साहित-करवाचौथ पर बहसबीच टिप्पणी
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                        करवाचौथ को लेकर भारतीय महिलाओं पर प्रतिकूल टिप्पणी करने वाले  महान अज्ञानी हैं। अज्ञान के कारण ही मनुष्य में क्रोध और अहंकार आता है। हिन्दू दर्शन के अनुसार बिना पूछे अपना ज्ञान नहीं बघारना चाहिये। इतना ही नहीं अगर कोई किसी भी तरीके से परमात्मा के प्रति अपना भाव समर्पित कर रहा है वह अच्छा लगे या नहीं ज्ञानी को चाहिये कि वह उसे विचलित न करते हुए अपना काम करे। हमारे देश में अनेक लोगों ने विद्वता की उपाधि स्वतः धारण कर ली हैं पर उन्हें यह पता ही नहीं ज्ञान तथा उसे धारण करने वाला ज्ञानी क्या होता है इसलिये चाहे जैसी बात बघारे जाते हैं। अरे भई, अगर तुम नहीं रखना चाहते कोई व्रत तो दूसरे का उपहास तो न उड़ाओ। हमारे दर्शन के अनुसार यह दुष्ट प्रवृत्ति है।
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कृपया इस पाठ को जनवाद तथा प्रगतिशील विचाराधारा के विद्वानों के पाठों से जोड़कर न देखा जाये जिन्हें हिन्दू जीवन पद्धति की खिल्ली उड़ाने की आदत है। हम तो हिन्दू विचारधारा के लेखकों समझाना चाहते हैं कि व्रत रखें या नहीं पर न तो दूसरे को रखने या न रखने के लिये न कहें।

Wednesday, August 2, 2017

योग साधक ही अपने कार्य में निरंतरता रख सकते हैं-हिन्दी लेख (A Yoga Sadahk has been Good workd=er)

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                             मोदी जी योगसाधक हैं-यह बात हमारे जैसे सामान्य योग साधकों के लिये आकर्षण का विषय स्वाभाविक रूप से रहती है। हमने देखा है कि योगसाधकों के चिंत्तन, मन तथा अनुसंधान का तरीका एक जैसा ही रहता है क्योंकि वह हर विषय के प्राकृत्तिक तथा सैद्धांतिक आधारों का अध्ययन कर ही निष्कर्ष निकालते हैं।  जिसने आष्टांग योग का अध्ययन कर लिया तो उसे किसी प्रकार के अध्ययन की आवश्यकता भी नहीं होती। बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी की मनस्थिति का ज्ञान उनके इर्दगिर्द लोगों को भी नहीं हो सकता-विरोधियों की तो बात ही छोड़िये।  संदर्भ कश्मीर का है।  कश्मीर की मुख्यमंत्राणी कहती हैं कि प्रशासनिक कार्यवाही से अलगाववादियों को नहीं साधा जा सकता-इसका अर्थ यह है कि केद्रीय एजेसियों ने अलगाववादियों के विरुद्ध जो मोर्चा खोला है वह उससे नाखुश हैं।  संभव है कि मोदी जी के अनेक समर्थक भी ऐसा ही सोचते हों पर सच यह है कि कश्मीर का मसल अब लंबा खिंचने वाला है क्योंकि मोदी जी ने शत्रुओं की जड़ों पर हमला किया है।  हम देख रहे हैं कि किसी भी समाज में पैसे के लिये आदमी किसी भी हद तक चला जाता है मिले तो एक कदम से भी लाचार होता है।
                               भले ही मोदीजी ने घोषित नही किया कि वह कश्मीर के बारे में क्या सोचते हैं पर हमारा मानना है कि उन्होंने तय कर लिया है कि पैसे के दम पर कश्मीर को बंधक बनाने वालों का चक्रव्यूह तोड़े बिना वह मानेंगे ही नहीं।  वहां की मुख्यमंत्राणी को मोदी जी अभी हटाने का प्रयास नहीं करेंगे चाहे वह कितने भी बुरे बयान देती रहे।  आखिरी बात यह कि मोदी जी ने कहा था कि तीन साल तक विकास के लिये काम करता रहूंगा बाद में चुनाव से दो साल पहले राजनीति करूंगा।  इतना ही नहीं उन्होंने सेवानिवृत राष्टपति प्रणवमुखर्जी को अपना पितृतुल्य बताते हुए बताया कि उन्होंने नये नये प्रधानमंत्री होने पर उनकी मदद की। अनेक महत्वपूर्ण अवसरों पर उन्होंने ही हिम्मत बंधाई।  
                             हमें लगता है कि मोदी जी देश के अन्य प्रधानमंत्रियों से कहीं अधिक प्रभावशाली सिद्ध होंगे। आरंभिक दिनों में वह केवल अध्ययन ही करते दिखे थे। एक योग साधक बिना किसी अध्ययन या चिंतन के कोई भी काम नहीं करता। अनेक बार मोदी जी ऐसी बात कह जाते हैं जो केवल सहज योग के अभ्यासी ही कह सकते हैं।  सबसे बड़ी बात है कि अपने कार्य में निरंतरता बनाये रखना केवल योग साधकों के लिये ही संभव है और यही बात हमें मोदी जी में दिखती है।

Wednesday, July 5, 2017

पनामालीक के नायक शरीफ और शीजिनपिंग जानबूझकर भारत से तनाव बढ़ा रहे हैं (PanamaLeak tenshion for pakistan and chinta-HindiEditorial)


                                                 इस समय भारतीय सीमा पर पाकिस्तान तथा चीन दोनों ही तनाव बढ़ा रहे हैं। चीन तो खुल्लमखुल्ला भारत को युद्ध की धमकी दे रहा है।  हमें लगता है कि पाकिस्तान तथा चीन की आंतरिक राजनीति में पनामालीक के बाद एक अस्थिरता का दौर चल रहा है।  कहीं न कहीं दोनों राज्य प्रमुख अपने अंदर ही राजनीतिक दबाव अनुभव कर रहे हैं इसलिये भारत से विवाद की आड़ में बचना चाहते हैं।      
                                          चीन की  बौखलाहट देखकर लग रहा है वहां कोई राजनीतिक अंर्तद्वंद्व चल रहा है। वहां के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग का नाम पनामलीक में आया था।  भारत में तो पनामलीक से जुड़े राज प्रचार माध्यमों ने दबा दिये पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, रूस के राष्ट्रपति पुतिन तथा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नाम देश में चर्चित है। रूस में पुतिन को चुनौती देने वाला कोई नहीं है पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर अभी तलवार लटक रही है।  ऐसा लगता है कि शीजिनपिंग की पकड़ चीन पर वैसी नही है जैसे पुतिन की है शायद इसलिये वह अपनी पार्टी के सदस्यों से आतंकित हो सकता है। शीजिनपिंग इतना डरा हुआ है कि उसने सर्वोच्च सेनापति का पद भी अपने पास रख लिया है।  पाकिस्तान के कुछ विद्वान अपनी सेना पर ही आरोप लगा रहे  हैं कि वह शरीफ से लोगों का ध्यान हटाने के लिये भारत से तनाव बढ़ाने की नौटंकी करती है। शी जिनपिंग भी शायद यही कर रहा है।  शीजिनपिंग एक महान भ्रष्ट नेता है और इस बात की पूरी संभावना है कि वहां उसकी पार्टी में बहुत अधिक विरोध मौजूद हा। यह विरोधी शायद इतनी संख्या में हैं कि उन्हें मिटाना संभव नहीं है इसलिये उनका ध्यान विदेशी शत्रु की तरफ खींचा जा रहा है।  पुतिन भी अमेरिका से ऐसे ही प्रयास में व्यस्त है।
             शीजिंनपिंग तथा नवाजशरीफ दोनों ही पनामलीक के नायक हैं। जिस बैंक के यह ग्राहक हैं उसमें भारतीय  भी हैं पर उनके नाम प्रचार माध्यमों ने छिपा दिये हैं पर शायद इन दोनों को इस बात का विश्वास है कि भारत से तनाव बढ़ायेंगे तो वहां के मित्र उनकी सहायता करेंगे इसलिये निडरता से सीमा पर आग बरसा रहे हैं। हमें दोनों से किसी बड़े युद्ध की संभावना नहीं दिखती क्योंकि नवाज शरीफ और शीजिनपिंग अपने देशों में शीशे के महल में रहते हैं इसलिये अपनी सेना को किसी पर गोली बरसाने का हुक्म नहीं दे सकते। 

Sunday, November 27, 2016

उसे जल्दी पता लग जायेगा कि कश्मीर उसके बाप की भी जागीर नहीं है-हिन्दी लेख (It wil Clear front Him That kashmir is Not Proparty his Fathar-Hindi Article)


हमने एक लेख लिखा था वह मिल नहीं रहा पर उसका सारांश यहां लिख देते हैं। प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर देह सहित मौजूद हैं। उनका हमने एक लेख पढ़ा था जिसमें उन्होंने बताया कि जब आजादी के बाद पाकिस्तान के कबायली कश्मीर में घुस आये तो वहां के राजा ने भारत से मदद मांगी। भारतीय सेना ने कबायलियों को खदेड़ना प्रारंभ किया। जब भारतीय सेना आगे बढ़ रही तो वहां के एक नेता ने भारत के प्रधानमंत्री से कहा कि ‘बस, जहां तक भारतीय सेना आगे बढ़े गयी है इससे आगे कश्मीर में न बढ़े क्योंकि मेरी इतने ही इलाके तक चलती है। बाकी मैं नहीं संभाल पाऊंगा।’
तब भारत ने अपनी सेना को बढ़ने से रोक दिया और वही हिस्सा आज पाकिस्तान के पास है क्योंकि उसकी ठेकेदारी भारत का कश्मीरी नेता नहीं लेना चाहता था। वह लेख हमने कब पढ़ा याद नहंी पर जेहन में बना रहा। जब अंतर्जाल पर लिखना शुरु किया तो उसे हमने आधार बनाया। इसका मतलब हमने यह निकाला कि देश का विभाजन ही ठेकेदारी पर हुआ। भारत के तत्कालीन पूंजीपतियों का भी कोई बड़ा कारखाना उस समय भारत के उस हिस्से में नहीं था जो आज पाकिस्तान है। भारतीय पूंजीपतियों की उस समय तक अंग्रेजों पर पकड़ अच्छी हो गयी थी और देश के कथित समाज सेवकों के समूह भी उनसे चंदा वगैरह पाते थे। यकीनन उस समय इन्हीं पूंजीपतियों ने भी कहा होगा कि हमारा पूंजी वर्चस्व जिस इलाके तक है वही भारत में रहे बाकी तो अलग हो जाने दो। यह हमारी योगदृष्टि से उपजा निर्णय है इसलिये इसकी संभावना है। हमारे इस संदेश को पढ़कर कोई नैयर साहब से पता करे कि उन्होंने ऐसा कब लिखा था।
बहरहाल उस स्वर्गीय कश्मीरी नेता का बूढ़ा पुत्र कह रहा है कि कश्मीर भारत के बाप का नहीं जो पाकिस्तान से छीन लेगा।
आप समझे या नहंी पर हम उसी लेख के आधार पर कह रहे हैं कि कश्मीर का वह हिस्सा भारत ने ले लिया तो उसकी पारिवारिक जागीर खत्म हो जायेगी। हम भी उस बुढ़ऊ को बता देते हैं हम भी अक्सर यह पूछते हैं कि ‘सिध किसके बाप का है जो वह कहता है कि पाकिस्तान का हिस्सा है।’
अगर सिंध व बलूचिस्तान पाकिस्तान से अलग हो जाये तो पता लग जायेगा कि कश्मीर किसका है। इन दोनों प्रांतों के खून पर पाकिस्तान टिका है जिसके आधार पर वह कश्मीर को लेकर भारत से लड़ता रहता है। आखिरी बात यह कि नोटबंदी के परिणाम जब कालांतर में आयेंगे तो ऐसे कई लोग बौखलाते नज़र आयेंगे जिन्हें लगता है कि हमारी जाति, धर्म और प्रदेश बाप की जागीर हैं। नोटबंदी से हमने इसका संबंध इसलिये जोड़ा है कि पाकिस्तान अब तक भारत से अवैध रूप में गये पैसे पर ही जिंदा है और उसका भविष्य खतरे में हैं। आज एक चैनल पर पाकिस्तान के एक सेवानिवृत्त अधिकारी का सुर बदला हुआ था और उससे लगता है कि भारत की नोटबंदी के कुछ प्रभाव उन भी पड़े हैं। जिस तरह भारत के रणनीतिकार आगे बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए उस बूढ़े और चूके हुए कश्मीरी नेता को ऐसे प्रश्न उठाकर उन्हें उग्र नहीं बनाना था। उसे जल्दी ही पता लग जायेगा कि कश्मीर उसके बाप की जागीर नहीं है।


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Wednesday, November 11, 2015

हिन्दू राजा अध्यात्मिक प्रेरक होने के कारण ज्यादा लोकप्रिय(Hindu King Most Popular His Spirutual Inspration Hindu Raja Adhyatmik prerak Hone ke kaaran Jyada Lokpriya)


                                   कर्नाटक के टीपू सुल्तान की जयंती मनाने पर विवाद चल रहा है।  प्रश्न यह है कि हमारे देश में अभी इतिहास के राजपुरुषों से चिपक कर क्यों चला जा रहा है। हमारे देश की जनता राजपुरुषों से अधिक अध्यात्मिक ज्ञानी पुरुषों को याद रखती है।  राजाओं को लेकर ज्यादा आकर्षण भारतीयों में नहीं देखा जाता।  राजाओं का कार्यक्षेत्र केवल सांसरिक विषयों तक ही सीमित रहता है।  अच्छे राजा को इतिहास में दर्ज किया जाता है पर उसे अध्यात्मिक प्रतीक नहीं माना जाता।
                                   हमारे यहां आज भी विक्रमादित्य, चंद्रगुप्त तथा अशोक को याद किया जाता है पर अकबर सहित अनेक बादशाह उन जैसी लोकप्रियता नहीं प्राप्त कर सके। इसका कारण यह है कि हिन्दू राजा कहीं न कहीं अध्यात्मिक रूप से भी प्र्रेरक बने जबकि मुगल बादशाहों में यह विषय नहीं दिखाई दिया।  प्रस्तुत है इस विषय पर किये गये ट्विटर।
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                                   हम यहां साफ कर दें कि राम कृष्ण और हनुमान को इस देश के हृदय में जननायक हो सकते हैं टीपु सुल्तान जैसे कई आये और गये।
                                   टीपू सुल्तान जैसे कई राजा आये और गये भारतीय जनमानस में आज भी राम, कृष्ण और हनुमान ही हृदय नायक हैं और रहेंगे। क्या टीपू सुल्तान जैसे राजाओं को इसलिये याद किया जाता है ताकि भारतीय जनमानस से राम, कृष्ण व हनुमान जी का नाम मिटाया जा सके जो सफल नहीं हो सकता।  टीपू सुल्तान भारतीय पहचान का प्रतीक नहीं माना जा सकता है क्योंकि उसकी कोई अध्यात्मिक छवि नहीं है और भारत की विश्व में पहचान उसके प्राचीन महानायकों की वजह से ही है।
                                   समस्त महानुभावों को दीपावली पर हार्दिक बधाई तथा शुभकामनायें। हमेशा ही सभी के  जीवन में प्रसन्नता तथा उत्साह का भाव रहे यही हमारी कामना है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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