हमने एक लेख लिखा था वह मिल नहीं रहा पर उसका सारांश यहां लिख देते हैं। प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर देह सहित मौजूद हैं। उनका हमने एक लेख पढ़ा था जिसमें उन्होंने बताया कि जब आजादी के बाद पाकिस्तान के कबायली कश्मीर में घुस आये तो वहां के राजा ने भारत से मदद मांगी। भारतीय सेना ने कबायलियों को खदेड़ना प्रारंभ किया। जब भारतीय सेना आगे बढ़ रही तो वहां के एक नेता ने भारत के प्रधानमंत्री से कहा कि ‘बस, जहां तक भारतीय सेना आगे बढ़े गयी है इससे आगे कश्मीर में न बढ़े क्योंकि मेरी इतने ही इलाके तक चलती है। बाकी मैं नहीं संभाल पाऊंगा।’
तब भारत ने अपनी सेना को बढ़ने से रोक दिया और वही हिस्सा आज पाकिस्तान के पास है क्योंकि उसकी ठेकेदारी भारत का कश्मीरी नेता नहीं लेना चाहता था। वह लेख हमने कब पढ़ा याद नहंी पर जेहन में बना रहा। जब अंतर्जाल पर लिखना शुरु किया तो उसे हमने आधार बनाया। इसका मतलब हमने यह निकाला कि देश का विभाजन ही ठेकेदारी पर हुआ। भारत के तत्कालीन पूंजीपतियों का भी कोई बड़ा कारखाना उस समय भारत के उस हिस्से में नहीं था जो आज पाकिस्तान है। भारतीय पूंजीपतियों की उस समय तक अंग्रेजों पर पकड़ अच्छी हो गयी थी और देश के कथित समाज सेवकों के समूह भी उनसे चंदा वगैरह पाते थे। यकीनन उस समय इन्हीं पूंजीपतियों ने भी कहा होगा कि हमारा पूंजी वर्चस्व जिस इलाके तक है वही भारत में रहे बाकी तो अलग हो जाने दो। यह हमारी योगदृष्टि से उपजा निर्णय है इसलिये इसकी संभावना है। हमारे इस संदेश को पढ़कर कोई नैयर साहब से पता करे कि उन्होंने ऐसा कब लिखा था।
बहरहाल उस स्वर्गीय कश्मीरी नेता का बूढ़ा पुत्र कह रहा है कि कश्मीर भारत के बाप का नहीं जो पाकिस्तान से छीन लेगा।
आप समझे या नहंी पर हम उसी लेख के आधार पर कह रहे हैं कि कश्मीर का वह हिस्सा भारत ने ले लिया तो उसकी पारिवारिक जागीर खत्म हो जायेगी। हम भी उस बुढ़ऊ को बता देते हैं हम भी अक्सर यह पूछते हैं कि ‘सिध किसके बाप का है जो वह कहता है कि पाकिस्तान का हिस्सा है।’
अगर सिंध व बलूचिस्तान पाकिस्तान से अलग हो जाये तो पता लग जायेगा कि कश्मीर किसका है। इन दोनों प्रांतों के खून पर पाकिस्तान टिका है जिसके आधार पर वह कश्मीर को लेकर भारत से लड़ता रहता है। आखिरी बात यह कि नोटबंदी के परिणाम जब कालांतर में आयेंगे तो ऐसे कई लोग बौखलाते नज़र आयेंगे जिन्हें लगता है कि हमारी जाति, धर्म और प्रदेश बाप की जागीर हैं। नोटबंदी से हमने इसका संबंध इसलिये जोड़ा है कि पाकिस्तान अब तक भारत से अवैध रूप में गये पैसे पर ही जिंदा है और उसका भविष्य खतरे में हैं। आज एक चैनल पर पाकिस्तान के एक सेवानिवृत्त अधिकारी का सुर बदला हुआ था और उससे लगता है कि भारत की नोटबंदी के कुछ प्रभाव उन भी पड़े हैं। जिस तरह भारत के रणनीतिकार आगे बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए उस बूढ़े और चूके हुए कश्मीरी नेता को ऐसे प्रश्न उठाकर उन्हें उग्र नहीं बनाना था। उसे जल्दी ही पता लग जायेगा कि कश्मीर उसके बाप की जागीर नहीं है।
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