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Tuesday, November 29, 2011

तुलसीदास के दोहे-मधुर वाणी पर सोच समझकर विचार करना चाहिए (tulsi sahitya-madhur vano par sochkar vichar karen)

           आजकल बाज़ार का प्रभाव धर्म तथा समाज के विषयों में बहुत अधिक हो गया है। उपभोग संस्कृति ने लोगों के अंदर अध्यात्म ज्ञान के प्रति विरक्ति पैदा की है जिसके कारण उनके पास सामान्य व्यवहारिक ज्ञान भी नहीं रहा है। लोगों के अंदर पैसा पाने का मोह इतना अधिक हो गया है कि दूसरों की बातों में आकर अपना कमाया भी सब कुछ गंवा बैठते हैं। हमने ऐसे अनेक समाचार सुने और देखे होंगे कि लोगों को अतिशीघ्र अपने धन का दोगुना या चार गुना देकर उनसे भारी रकम की ठगी की गयी। अनेक कंपनियों ने तो शहर में एक नहंी बल्कि चार पांच सौ लोगों को चूना सामूहिक रूप से चूना लगा लिया। यह समाज में अपराध बढ़ने की प्रवृत्ति का परिचायक है पर साथ ही आम जनमानस में बौद्धिक सोच के अभाव का प्रमाण भी है। इस तरह की घटनायें चिंताजनक हैं। दो चार व्यक्ति हों तो ठीक पर यहां तो हजारों के हजारों एक साथ ठगे जाते हैं।
          ठगी करने वाले लोग अपनी मीठी बातों के साथ ही आकर्षण प्रलोभन भी देते हैं। कहीं तो आरंभ में ही उपहार भी दे दिया जाता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर इतने सारे लोग कैसे जाल में फंस जाते हैं। इसमें फंसने वाले लोग ग्रामीण या अशिक्षित पृष्ठभूमि वाले नहीं वरन् पढ़े लिखे और नौकरीशुदा लोग ही होते हैं। इस तरह आधुनिक शिक्षा को लेकर भी संशय पैदा होता है।
महाकवि तुलसी दास जी कहते हैं कि
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‘तुलसी’ खल बानी मधुर, मुनि समुझिअं हियं हेरि।
राम राज बाधक भई, मूढ़ मंथरा चेरि।।
‘‘कभी किसी की मधुर वाणी सुनकर उस पर मोहित नहीं होना चाहिए। दासी मंथरा ने कैकयी को मधुर वाणी में समझाकार भगवान श्री राम के राज्याभिषेक में बाधा डाली थी।’’
         कभी कभी तो ऐसा लगता है कि हमारे देश के ग्रामीण तथा अशिक्षित लोग कथित आधुनिक समाज से अधिक चतुर हैं। वह भी ठगे अवश्य जाते हैं पर सामूहिक रूप से उनको कोई चूना नहीं लगा सकता। ऐसे में यह सवाल उठता है कि भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान से परे रहकर आधुनिक समाज कहीं बौद्धिक क्षमता खो तो नहीं बैठा है?
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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