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आलस्योपहता विद्या परहस्तगताः धनम्।
अल्पबीजं हतं क्षेत्रं हतं सैन्यमनायकम्।।
हिंदी में भावार्थ-आलस्य विद्या का नष्ट करता है। दूसरे के अधिकार में गया धन वापस नहीं आता। कम बीज वाला खेत नष्ट हो जाता है। बिना नायक के सेना हार जाती है।
अभ्यासाद्धार्यत विद्या कुलं शीलेन धार्यते।
गुणेन ज्ञायते त्वार्य कोपो नेत्रेण गम्यते।।
हिंदी में भावार्थ-अभ्यास करने से विद्या प्राप्त की जा सकती है। उत्तम गुण, कर्म तथा अच्छे स्वभाव से परिवार और अपना नाम रौशन होता है। श्रेष्ठ मनुष्य की पहचान उसके गुणों से है और उसका क्रोध नेत्रों से प्रकट हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। जब आदमी को पर्याप्त मात्रा में भौतिक पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं तब भगवान भजन में आलस्य करता है और तब उसे सत्संग और ज्ञान चर्चा विष के समान प्रतीत होती हैं। फिर यही भौतिक पदार्थ जब उसे बोर करते हैं तब खालीपन का अहसास होता है। सच बात तो यह है कि हम भक्ति या साधना कर कोई भगवान पर अहसान नहीं करते बल्कि इससे एकरसता से बचते हैं। मनोविज्ञान कहता है कि आदमी के मन के उतार चढ़ाव ही मनुष्य को सुख दुःख की अनुभूति कराते हैं और एक ही जगह एक ही तरीके से काम करते हुए आदमी में ऊब पैदा होती है इसलिये वह बदलाव चाहता है। वह न होने पर उसके अंदर तनाव पैदा होता है।
योगसाधना, प्राणायम तथा ध्यान साधना करने से ऐसे ही परिवर्तनों की अनुभूति अपने अंदर आती है जिससे जीवन सुखमय हो जाता है। लोग भक्ति, योगसाधना, प्राणायम और ध्यान करने में आलस्य करते हैं। कई लोग कहते हैं कि हमें समय नहीं मिलता जबकि वास्तविकता यह है कि वह निरर्थक वार्तालापों और व्यसनों में अपना समय बरबाद करते हैं। इस तरह की समय की बर्बादी भी एक आलस्य है और जितना हो सके बचाना चाहिये। याद रखें कि आदमी की पहचान उसके गुण और व्यवहार होता है और उसमें तभी शुद्धता संभव है जब वह उसके अंदर हो।
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