हर मनुष्य को स्वाभिमान से जीवन व्यतीत करना चाहिए। इसका अर्थ भी यह कदापि नहीं है कि विनम्रता का त्याग करें। हमेशा इस अकड़ में गरदन ऊपर कर न चलें कि आपको किसी की जरूरत नहीं है। समय के अनुसार अपने व्यवहार में परिवर्तन लाते रहना चाहिए। न इतना विनम्र होना चाहिए कि लोग कायर समझने लगें न इतनी उग्रता दिखायें कि लोग अहंकारी समझें। जहां से मदद और कृपा की आशा हो वहां तो विनम्रता दिखाना चाहिए जहां से न हो वहां भी सरल व्यवहार रखकर यह साबित करें कि आप में निरंकार का भाव है।
इस संसार में अपने पद, पैसे और प्रतिष्ठा के मद में रहने वाले लोग बहुत मिल जाते हैं और जब उनका पतन होता है उनकी उसी समाज हंसी भी उड़ती है जिससे वह अपने वैभव से पीड़ित किये रहते हैं। जीवन अनेक रंगों से भरा है। कभी दुःख है तो कभी सुख, कभी हृास है तो कभी परिहास, कभी सौंदर्य का बोध होता है तो कभी वीभत्स रूप सामने आता है। ऐसे में मनुष्य को अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। इसके साथ ही वाणी में सदैव मिठास रखते हुए लोगों के साथ प्रेमपूर्वक वार्तालाप करने से अपनी स्वयं की छवि बनती है।
संत कबीरदास जी कहते हैं कि
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ऊंचा पानी न टिकै, नीचै ही ठहराय।
नीचा होय सा भरि पियै, ऊंच पियासा जाए।
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ऊंचा पानी न टिकै, नीचै ही ठहराय।
नीचा होय सा भरि पियै, ऊंच पियासा जाए।
‘‘पानी कभी ऊंचाई पर नहीं टिकता वह नीचे की तरफ बहता है। उसी तरह जिस व्यक्ति को पानी पीना होता है उसे गरदन नीचे करनी पड़ती है। जो अकड़ कर गरदन ऊंची रखता है उसे पानी भी नसीब नहीं होता।’’
हम जब भी पानी पीते हैं तो गरदन झुकाना पड़ती है। चाहे ग्लास में पियें या सीधे नल से मगर अपनी गर्दन झुकानी पड़ती है। हालांकि कुछ लोग कह सकते हैं कि गरदन अकड़ कर बोतल से भी पानी पिया जा सकता है तो उनको यह भी बता दें कि स्वास्थ्य वैज्ञानिक इस तरह सीधे पानी पीने से देह को हानि पहुंचने की आशंकायें अब जताने लगे हैं। उनका कहना है कि सीधे गले में पानी न डालते हुए मुख के माध्यम से अंदर पानी पीना चाहिए। इससे एक बात पता लगती है कि हमारा अध्यात्मिक दर्शन भी विज्ञान से परिपूर्ण है।
हम जब भी पानी पीते हैं तो गरदन झुकाना पड़ती है। चाहे ग्लास में पियें या सीधे नल से मगर अपनी गर्दन झुकानी पड़ती है। हालांकि कुछ लोग कह सकते हैं कि गरदन अकड़ कर बोतल से भी पानी पिया जा सकता है तो उनको यह भी बता दें कि स्वास्थ्य वैज्ञानिक इस तरह सीधे पानी पीने से देह को हानि पहुंचने की आशंकायें अब जताने लगे हैं। उनका कहना है कि सीधे गले में पानी न डालते हुए मुख के माध्यम से अंदर पानी पीना चाहिए। इससे एक बात पता लगती है कि हमारा अध्यात्मिक दर्शन भी विज्ञान से परिपूर्ण है।
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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