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Thursday, September 27, 2012

अथर्ववेद से संदेश-ओम (ॐ )शब्द स्वर्ण समान (atharved sesandesh-om shabd as as gold of swana saman)


        श्रीमद्भागवत गीता में ओम (ॐ ) शब्द को परमात्मा का पर्याय माना गया है। अनेक ऋषियों, मुनियों और संतों ने माना है कि ओम शब्द का निरंतर वाणी और मन से उच्चारण करने पर हृदय में पवित्र विचार आते हैं।  बुद्धि और मन शुद्ध होकर सकारात्मक कार्यों के लिये प्रवृत्त होता हैं।  ओम शब्द के वाणी से उच्चारण करने पर शरीर के सारे अंगों पर ऐसा प्रभाव होता है कि अंतर्मन में अद्भुत प्रकाश दीप प्रज्जवलित हो उठता है। उनके विचार तथा व्यवहार में यह प्रकाश विसर्जित दूसरे लोगों को भी प्रसन्नता देता हैं जिन लोगों को संस्कृत के श्लोक मन ही मन दोहराने में परेशानी होती है वह चाहें तो केवल ओम शब्द का जाप करें।
अथर्ववेद में कहा गया है कि
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त्रयः सुपर्णास्त्रिवृता यदायत्रेकाक्षस्मभि-संभूय शका शका।
प्रत्यौहन्मृत्युमृतेन सत्कमन्तर्दधान्त दुरितानी विश्वा।।
        हिन्दी में भावार्थ-जब समर्थ तीन सुवर्ण तिहरे होकर एक अक्षर में सब प्रकार मिल रहे हैं। वे अमृत के साथ सब अनिष्टों को मिटाकर मृत्यु को दूर करते हैं।
     योगासन के दौरान या बाद में ओम शब्द का उच्चारण करने से शरीर में एक अद्भुत रोमांच का अनुभव होता है। ओम शब्द के उच्चारण से वाणी, विचार और व्यवहार में जो स्वर्णिम परिवर्तन आता है उसकी अनुभूति इसका नियमित जाप करने पर ही पता चल सकती है। प्रयोगों से यह बात सिद्ध हो जाती है कि ओम शब्द का निरंतर जाप करने वालों के अंदर गुणात्मक रूप से परिवर्तन आते हैं जो उसके जीवन को उज्जवल पक्ष की तरफ ले जाते हैं।  यह प्रमाण विदेशी अनुसंधानकर्ताओं ने ही प्रस्तुत किया है।  अतः जिन लोगों को अपने जीवन, विचार तथा व्यवहार को प्रकाशमय बनाना है उन्हें ओम शब्द का दीपक अपने मन में स्थापित करना चाहिए।
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh

संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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