समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Saturday, September 15, 2012

विदुर नीति-देवता हमेशा पहरेदारी नहीं करते (vidur neeti-devta hamesha paharedari nahin karte)

                  श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि यह संसार मेरे संकल्प के आधार पर ही स्थित है।  इस संदेश के आधार पर अगर चिंत्तन और मनन करें तो यह अनुभव होगा कि हमारा निजी संसार भी हमारे संकल्प के आधार पर ही निर्मित होता है।  अनेक लोग अपने अपने ढंग से अपने इष्ट की आराधना कर यह मानते हैं कि वही सारा काम करेंगें। इतना ही नहीं नियमित रूप से आराधना करने के बावजूद वह हृदय में सांसरिक कार्यों में कपट, लोभ तथा अहंकार धारण किये रहते हैं।  इस कारण अपने कार्यों में बाधा तथा परिणाम में अनिष्ट प्रकट होने का भय उनके मन मस्तिष्क में रहता  है।  स्पष्टतः विचारों के साथ ही संकल्प  की शुद्धि अगर  हमारे स्वयं के मन में नहीं है तो फिर अपने इष्ट से यह आशा नहीं करना चाहिए कि उसकी आराधना करने से ही यह संसार अपने लिये अनुकूल सदैव रहेगा।
                  विदुर नीति में कहा गया है कि
                   -----------------
       न देवा दण्डमादाय रक्षनित प्शुपालवत्।
यं तु रंक्षितुंमिच्छन्ति बुद्धया संदिभर्जन्तिम्।।
       हिन्दी में भावार्थ-देवता लोग चरवाहों की तरह डण्डा पहरा नहीं देते। जिस भक्त मनुष्य की रक्षा करना हो  उसकी  बुद्धि में उत्तम तत्व स्थापित करते हैं।
यथा तथा हि पुरुष कल्याणे कुचते मनः।
तथा तथास्य सर्वाथीः सिद्धयन्ते नात्र संशयः।।
                हिन्दी में भावार्थ-जब कोई व्यक्ति अपने हृदय में कल्याणकारी विचार धारण करता है वैसे ही उसके सामने परिणाम भी सामने आते हैं। इसमें केाई संदेह नहीं करना चाहिए।
          वैसे एक बात तय है कि अपने किसी भी इष्ट की हृदय से आराधना करने पर अंततः विचार और संकल्प शुद्ध होते हैं पर इसके लिये यह जरूरी है कि हम अपने इष्ट से काम में सुखद परिणाम की बजाय अपनी बुद्धि को शुद्ध करने की याचना करें।  पवित्र बुद्धि से विचार और संकल्प स्वतः शुद्ध होते हैं।  तब मनुष्य अहंकार और तनाव से मुक्त होकर अपने सांसरिक कार्यो के सहजता से पूर्ण कर अपने अनुकूल परिणाम प्राप्त कर सकता है।      
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh

संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की धर्म संदेश पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की अमृत संदेश-पत्रिका
6.दीपक भारतदीप की हिन्दी एक्सप्रेस-पत्रिका
7.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका



No comments:

विशिष्ट पत्रिकायें