इस संसार में बड़े बोल के साथ आदमी यह सोचता है कि उसकी बात हर कोई वैसे
ही मान रहा है जैसे उसने कही है। इसी भ्रम में कुछ लोग बुद्धिमान लोगों
को अपमानित करते हैं। आजकल भौतिक साधनों के बढ़ते प्रभाव से आलसी देह में
विकृत मन रखने वालों की संख्या बढ़ रही है। जिनके पास पैसा, पद और
प्रतिष्ठा है वह अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते। स्थिति यह है कि बड़े
पदों पर तुच्छ आचरण के लोगों के विराजमान होने के साथ ही कल्याण के काम
दुष्ट प्रकृति के सेवकों को मिल रहे हैं। परिणाम यह है कि नैतिक आचरण के
साथ जीने वाले बुद्धिमानों को हेय समझा जाता है।
यही कारण है कि बुद्धिमान लोग अब सार्वजनिक महत्व के कार्यों में अधिक रुचि नहीं लेते। पूरा समाज भ्रष्टाचार, बेकारी, और बीमारी की मार से चीत्कार कर रहा है। कदम कदम पर कल्याण करने वालो को जमावड़ा भी है पर किसी को कहीं से राहत नहीं मिलती।
अपकृत्य बुद्धिमतो दूरस्थोऽस्मीति नाश्वस्रेत्।
दीर्घी बुद्धिमतो बाहू याभ्यां हिंसति हिंसितः।
हिन्दी में भावार्थ-बुद्धिमान आदमी से बदतमीजी करने के बाद इस विश्वास में नहीं रहना चाहिए कि बच गये। बुद्धिमान आदमी की बाहें लंबी होती हैं और सताये जाने पर वह उन्हीं बाहों से बदला लेता है।’’
इधर अयोग्य, अक्षम और लोभी लोगों ने समाज के कल्याण की ठेकेदारी हथिया ली है। बुद्धिमान लोगों ने बदले में खामोशी ओढ़ ली है। उनके मौन को कमजोरी मानकर जिन दुष्टों ने अपमान किया है वह अर्श से फर्श पर भी गिरे दिखते हैं। अपना बदला लेने के बावजूद बुद्धिमान अपने समाज के हित के लिये सक्रिय नहीं हो पा रहे तो केवल इसलिये कि लोगों की नजरों में बुद्धि केवल पैसे, पद और प्रतिष्ठावान लोगों की बपौती है।
वैसे भी बुद्धिमान से बैर लेना कभी ठीक नहीं रहता। दुष्ट आदमी लातों से मारता है तो बुद्धिमान बातों से कष्ट देता है। जहां अज्ञानी दूसरे से बदला लेने के लिये हथियार का उपयोग करते हैं तो ज्ञानी अपने आचरण और व्यवहार से अवसर आने पर ऐसा बदला लेते है जिससे सामने वाला आदमी हक्क बक्क रह जाता है।
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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यही कारण है कि बुद्धिमान लोग अब सार्वजनिक महत्व के कार्यों में अधिक रुचि नहीं लेते। पूरा समाज भ्रष्टाचार, बेकारी, और बीमारी की मार से चीत्कार कर रहा है। कदम कदम पर कल्याण करने वालो को जमावड़ा भी है पर किसी को कहीं से राहत नहीं मिलती।
अपकृत्य बुद्धिमतो दूरस्थोऽस्मीति नाश्वस्रेत्।
दीर्घी बुद्धिमतो बाहू याभ्यां हिंसति हिंसितः।
हिन्दी में भावार्थ-बुद्धिमान आदमी से बदतमीजी करने के बाद इस विश्वास में नहीं रहना चाहिए कि बच गये। बुद्धिमान आदमी की बाहें लंबी होती हैं और सताये जाने पर वह उन्हीं बाहों से बदला लेता है।’’
इधर अयोग्य, अक्षम और लोभी लोगों ने समाज के कल्याण की ठेकेदारी हथिया ली है। बुद्धिमान लोगों ने बदले में खामोशी ओढ़ ली है। उनके मौन को कमजोरी मानकर जिन दुष्टों ने अपमान किया है वह अर्श से फर्श पर भी गिरे दिखते हैं। अपना बदला लेने के बावजूद बुद्धिमान अपने समाज के हित के लिये सक्रिय नहीं हो पा रहे तो केवल इसलिये कि लोगों की नजरों में बुद्धि केवल पैसे, पद और प्रतिष्ठावान लोगों की बपौती है।
वैसे भी बुद्धिमान से बैर लेना कभी ठीक नहीं रहता। दुष्ट आदमी लातों से मारता है तो बुद्धिमान बातों से कष्ट देता है। जहां अज्ञानी दूसरे से बदला लेने के लिये हथियार का उपयोग करते हैं तो ज्ञानी अपने आचरण और व्यवहार से अवसर आने पर ऐसा बदला लेते है जिससे सामने वाला आदमी हक्क बक्क रह जाता है।
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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