रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भले ही शुल्क लेकर कथा करते हैं पर उनका कार्यक्रम अत्यंत हृदय प्रसन्न करने वाला होता है। अनेक प्रसिद्ध संतों को पास से देखने का अवसर मिला जिन्हें हम टीवी पर देखते थे। हमने देखा है कि अनेक प्रसिद्ध संत बिना राजपदधारी लोगों की सहायता के बिना ही अपने आभामंडल से लोकप्रिय हैं। राजपुरुषों के साथ फोटो खिंचवाने का शौक उनको नहीं है। ऐसे ही संतों पर भारतीय अध्ययात्मिक ज्ञान का रथ स्वतः संचालित है। हमने देखा है कि अनेक कथित संत राजपुरुषों से सम्मानित होकर फूल जाते हें या चुनावी राजनीति संगठनों के साथ जुड़कर गौरवान्वित अनुभव करते हैं पर भगवतवाचक संत इससे दूर हैं। यह संत हमें ज्ञानी लगते हैं क्योंकि जानते हैं कि ‘राजा के अगाड़ी गधे के पिछाड़ी चलने के नतीजे खतरनाक हैं।’ हम उन संतो को विवादों के साथ खतरे के बीच देखते हैं जो राजपुरुषों के निकट होने का दावा करते हैं। यह प्राकृत्तिक सच्चाई है कि आपके अपने ही आपको निपटाते हें। राजपुरुषों के साथ निकटता में बड़ा खतरा है कि क्योंकि उनके हाथ में डंडा है जो अपना पराया नहीं देखता। जिनके हाथ में कानून का डंडा है जो न बाप देखता हैं न बेटा! अगर आप राजपुरुषों के अपने नहीं है तो स्वयं को सुरक्षित समझें। यह राजपुरुष जब आपस में द्वैरथ करें तब बीच में तो जाना ही नहीं चाहिये-चाहे यह राष्ट्रवादी हो या प्रगतिशील या वामपंथी। अगर आप कला, पत्रकारित या धार्मिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं तो कभी राजपुरुषों को अपना मत बनाईये न समझिये क्योंकि अपने ही अपनों को निपटतों हैं-बात समझ गये न! न समझे तो कभी पूरी कहानी लिखेंगे।
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एटीएम में रोकड़ यानि केश नहीं मिल रहा है-हमारा मानना है कि मुद्रा संकट बढ़ाओ ताकि उसका सम्मान बढ़े। सेवा तथा सौदा प्रदान करने वाले मुद्रा लेने में अब मनमाना चयन करने लगे हैं। एक तथा दो के सिकक्े तो लेना ही नहीं है। पांच सौ या दो हजार नोट पर छपाई का कालापान आ गया हो तो लेना नहीं है। सीधी बात कहें तो मुद्रा एक हजार व पांच सौ के नोटों के समय जो बेइज्जत हो रही थी वह दो हजार के नोट आने के बाद दोगुनी अपमानित हो रही है। अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार जब मुद्रा की कमी होगी तो उसका मान बढ़ेगा। पिछले कुछ समय समय से हम जिस तरह सौदेबाजी में पांच व दस के सिक्कोें की बेइज्जती देख रहे हैं उससे तो लगता है कि सरकार को सिक्के अब बंद कर देना चाहिये। हमने नोटबंदी के समय देखा था कि पांच सौ तथा हजार के नोटों का प्रचलन बंद होने के बाद अपराध तथा आतंकवाद बहुत कम हो गया था। दो हजार का नोट आने के अपराध, आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार दोगुना बढ़ा है-ऐसा लोग मानते हैं। अब यह पता नहीं कि रोकड़ा संकट अचानक हुआ या योजनाबद्ध है पर होना चाहिये। शायद देश के सामाजिक संकट कुछ समय दूर रहे। अब मुद्रा की कमी कारण यह भी हो सकता है कि नोटबंदी के दौरान कालाधन भी बैंके के पास आ गया। विशेषज्ञ जितना पहले कालाधन होने का अनुमान करते थे अब वह दुगुना होगा क्योंकि महंगाई बढ़ रही है। यानि सरकार जितनी मुद्रा से देश चलाना चाहती थी उसका दुगुना उसे देना होगा क्योंकि उसे न तो कालाधन बनना रोका न भ्रष्टाचार। इसी कारण अब फिर वही सफेद होकर कालेपन की तरफ जा रहा है-यानि तिजोरियों में जमा हो रहा है। अगर हमारी सबात समझ आये तो गंभीर समझें वरना व्यंग्य समझकर भूल जायें।
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आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान लगायें। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो फिर बाहर की क्रियाओं से अंदर की अनुभूति करें। जिस तरह कहा जाता है कि खाने के समय बात नहीं करना चाहिये उसी तरह जब किसी विषय, वस्तु, या व्यक्ति से संपर्क होने पर आनंद आये तब मौन हेकर उसका लाभ उठायें। जिस तरह अपनी भूख और प्यास किसी दूसरे को हम बांट नहीं सकते उसी तरह आनंद भी किसी के साथ बांटना संभव नहीं है। जब हमें आनंद मिल रहा हो तब अपनी आंख, कान,मुख तथा नासिका तथा बुद्धि को अंदर ही केंद्रित रखें। दूसरे को देखने या उससे बोलने पर आनंद कम हो जाता है। अंततः आंनद न बाहर मिलता है न ही उसे हम बाहर देख सकते हैं। उसकी अनुभूति तो हम अंदर ही कर सकते हैं।
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