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Saturday, October 14, 2017

अन्न जल तत्व भोजन के साथ ही औषधि भी हैं-हिन्दी लेख (Wheat And water is Lunch and medicine in Illness-HindiArticle)

अन्न जल तत्व भोजन के साथ ही औषधि भी हैं-हिन्दी लेख
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                     हमारे वेद शास्त्रों में कहा गया कि अन्न जल जहां मनुष्य के लिये भोजन हैं वही औषधि भी हैं। हम जैसे योग साधक इसका यह आशय लेते हैं कि भोजन में शामिल किये जाने वाली वस्तुयें न केवल पेट की क्षुधा शांत करती हैं वरन् बीमारियों में भी उनका अलग तरीके से दवा की तरह उपयोग हो सकता है। बरसात के बाद बदलते मौसम में बीमारियों का दौर चलता है और अधिकतर का संबंध कफ से होता है।
                     हमारे योग प्रशिक्षक गरम पानी पीने की सलाह देते हैं। वैसे हम हम एक योग साधक होने के नाते सुबह गरम गुनगुना पानी पीते हैं पर जब जुकाम हो जाये तो पूरा दिन ही पीते हैं। एक बात अनुभव की कि इस समय मटके का पानी पीने से सीने में कफ स्वतः जमा हो जाता है। ध्यान नहीं करते तो यह कफ खांसी के रूप में बदल जाता है। कल ऐसा ही हमारे साथ हुआ। जोर से खांसी का दौर चला तो हमने लगातार गरम पानी पिया।  आयुर्वेद की एक दो गोली भी ली। आज खांसी नहीं उठी। अब यह तय नहीं कर पा रहे कि आखिरी यह खांसी गयी कैसे? गरम पानी से या दवाओं से-या दोनों का प्रभाव हुआ।  पर हमारा अनुभव है कि लगातार गर्म पानी पीना जुकाम का सबसे बढ़िया इलाज है। इतना ही नहीं पर्यावरण प्रदूषण से सांसों में गये विकार भी गर्म पानी से नष्ट होते हैं।
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                        हम बहुत समय से अध्यात्मिक विषय पर लिखते रहे हैं पर यह देखा है कि आजकल जब तक बीमारियों के इलाज न बताये लोग किसी को संत या साधु मानने के लिये तैयार नहीं होते। यहां तक कि अधिकतर धार्मिक चैनल  ही आयुर्वेद के चिकित्सकों तथा उनके विज्ञापन से ही चल रहे हैं। इसलिये सोचा कि हम अपने ऊपर अजमाया नुख्सा भी लोगों से बांट लें। शायद इससे हमारे अध्यात्मिक लेखक होना प्रमाणित हो जाये।
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आप व्रत रखो या नहीं दूसरे को न हतोत्साहित करो न ही उत्साहित-करवाचौथ पर बहसबीच टिप्पणी
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                        करवाचौथ को लेकर भारतीय महिलाओं पर प्रतिकूल टिप्पणी करने वाले  महान अज्ञानी हैं। अज्ञान के कारण ही मनुष्य में क्रोध और अहंकार आता है। हिन्दू दर्शन के अनुसार बिना पूछे अपना ज्ञान नहीं बघारना चाहिये। इतना ही नहीं अगर कोई किसी भी तरीके से परमात्मा के प्रति अपना भाव समर्पित कर रहा है वह अच्छा लगे या नहीं ज्ञानी को चाहिये कि वह उसे विचलित न करते हुए अपना काम करे। हमारे देश में अनेक लोगों ने विद्वता की उपाधि स्वतः धारण कर ली हैं पर उन्हें यह पता ही नहीं ज्ञान तथा उसे धारण करने वाला ज्ञानी क्या होता है इसलिये चाहे जैसी बात बघारे जाते हैं। अरे भई, अगर तुम नहीं रखना चाहते कोई व्रत तो दूसरे का उपहास तो न उड़ाओ। हमारे दर्शन के अनुसार यह दुष्ट प्रवृत्ति है।
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कृपया इस पाठ को जनवाद तथा प्रगतिशील विचाराधारा के विद्वानों के पाठों से जोड़कर न देखा जाये जिन्हें हिन्दू जीवन पद्धति की खिल्ली उड़ाने की आदत है। हम तो हिन्दू विचारधारा के लेखकों समझाना चाहते हैं कि व्रत रखें या नहीं पर न तो दूसरे को रखने या न रखने के लिये न कहें।

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