जयश्रीराम शब्द का उच्चारण भारतीय जनमानस की आत्मा है जिनको उनका नाम पसंद नहीं है वह कथित विदेशी धर्मों के राजनीतिक के विस्तार करने वाले हैं। जब हम खुश होते हैं तो ‘जयश्रीराम’ बोलते हैं, जब परेशानी हो तो आर्तभाव ‘हे राम’ कहकर बोझ हल्का करते हैं। दरअसल निरपेक्ष लोग चाहते हैं कि बस यहां भारतीय जनमानस आर्त भाव से ‘हेराम’ बोलता रहे। वह कभी दैहिक, शारीरिक तथा मानसिक रूप से मजबूत होकर ‘जयश्रीराम’ का उद्घोष न करे ताकि गरीब कल्याण का उनका व्यापार चलता रहे।
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यह भारत है जहां प्रधानमंत्री कह ही सकता है कि सैन्य विषय का राजनीतिकण न करो। नवाज शरीफ की तरह प्रतिबंध तो नहीं लगा सकता। उनके राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं को लगता है कि निरपेक्षों को इस प्रचार से चुनौती दे सकते हैं तो उन्हें रोकने के लिये उनका पासपोट तो भारत में जब्त नहीं हो सकता। अलबत्ता निरपेक्ष समूह के बुद्धिमानों की हालत देखते ही बनती है।
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ऐसा लगता है कि कश्मीर सीमा पर जमकर आतंकवादियों की सफाई हो रही है। पाकिस्तान में कोहराम न मच जाये इस वजह से वह बता नहीं रहा। तंगधार में जिस तरह सेना ने आतंकवादियों की घूसपैठ रोकी है उससे यह साफ हो रहा है कि आतंकवादियों के सफाये किये बिना वह रुकेगी नहीं।
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रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर के बयान से निरपेक्ष विचारक यह सोचकर हतप्रभ हैं कि एक न एक राष्ट्रवादी प्रतिदिन उनके पाकिस्तान प्रेम की दुखती रग पर हाथ रख ही देता है। पाकिस्तान प्रेमी निरपेक्ष विचारकों को रक्षामंत्री पार्रिकर का बयान अगर े चिढ़ाता है तो वह अच्छा जरूर लगेगा।
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तीन तलाक पर टाईम्स नाउ पर बहस चल रही है। धर्मनिरपेक्षवादियों ने यहां अपने ही वाद का मजाक बना दिया है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ केवल पूजा पद्धति के अधिकार तक ही है जो घर या दरबार की दीवारों की सीमा तक ही हो सकती है। सड़क पर तो संविधान का लिखा ही चलेगा चाहे पवित्र ग्रंथों में कुछ भी लिखा हो। दूसरी बात यह कि संविधान लोगों को पूजा पद्धति तक ही अधिकार देता है पवित्र ग्रंथों के सम्मान की बात वह नहीं करता क्योंकि यह उसके क्षेत्र का विषय नहीं है। हमारा तो यह तक मानना है कि धर्म के नाम पर घर या दरबार के बाहर जूलूसों और खानपान से अगर किसी दूसरे को तकलीफ होती है तो उसे संविधान रोकेगा चाहे भले ही पवित्र ग्रंथ में कुछ भी लिखा हो।
धर्मनिरपेक्षता में पूजा पद्धति मानने तक ही अधिकार है। इससे आगे एक देश एक कानून लागू करना ही होगा।
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