जिस तरह के आसार लग रहे हैं उससे तो लगता है कि पाकिस्तान अगले वर्ष के अंत ही अपना अस्तित्व बचा ले तो बहुत बड़ी बात होगी। देश के कुछ विद्वानों को यह गलतफहमी है कि भारत के रणनीतिकारों ने बिना सोचे समझे बलूचिस्तान का मुद्दा उठाया है। यह मुद्दा उठने के बात वैश्विक स्तर की प्रतिक्रियायें देखकर तो यह लगता है कि पाकिस्तान पर अमेरिका ही नहीं बल्कि सभी देश वक्र दृष्टि रखते हैं। बलूचाी नेता स्पष्ट रूप से पंजाबी सेना और शासकों पर बरस रहे हैं। विश्व में यह बात पहली बार प्रचार पटल पर आयी है कि पाकिस्तान एक देश नहीं वरन् एक धर्म के ही भाषा विशेष लोगों से नियंत्रित देश हैं जिसमें दूसरी जातियों और संस्कृतियों को जबरन अपने झंडे के नीचे दिखाया जाता है। पाकिस्तान ने जितना कश्मीर में भारत को परेशान किया है उससे सौ गुना भारत बलूचिस्तान में करने वाला है। भारतीय रणनीतिकारों ने सन् 1947 में हुए अप्राकृतिक विभाजन के विरुद्ध ऐसा अभियान प्रारंभ किया है जो पूरे विश्व को प्रभावित करेगा। अमेरिका कभी भी बलूचिस्तान पर भारत के रुख का विरोध नहीं करेगा क्योंकि अपने शत्रू चीन के विरुद्ध उसे रोकने के लिये यह उसे सुविधा प्रदान करेगा।
अंतर्जाल के शब्द सैनिकों को सलाह है कि ट्विटर पर रुझान में पाकिस्तान लिखकर वहां के रुझान देखें और भारत विरोधियों पर जमकर प्रहार करें। उन्हें समझायें कि अपने मीडिया प्रचार में आकर परमाणु बम को मसखरी न समझेें। प्रहार रोमन लिपि में करें ताकि उनके समझ में आये। इतना भी समझा दें कि जब भारतीय सेना इस्लामाबाद पहुंच गयी तो पता लगा कि उनके पास तो परमाणु बम था ही नहीं। भारत तब ऐसे ही जवाब देता फिरेगा जैसे आज इराक पर आक्रमण के बाद रासायनिक बम न मिलने पर अमेरिका देता फिर रहा है। भारत को अपने अनेक हथियारों का परीक्षण करना है और पाकिस्तान के मक्कार नेता और अहंकारी सेना यही अवसर देने जा रहे हैं। अभी भी अवसर है भारत जो कहे मान लो वरना सीरिया मिस्र और इराक के अनेक शहर बिना परमाणु बम के तबाह हो चुके हैं और कराची, लाहौर तथा इस्लामाबाद का हश्र भी वैसा ही हो सकता है।
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