उरी हमले में शहीदों को श्रद्धापूर्वक नमन! हमारी मांग है कि शहीदों के परिवारों को भरपूर मदद सरकार तो करे ही निजी क्षेत्र भी उनके जवान बच्चों के लिये शिक्षा तथा रोजगार की योजना पर काम करे। एक शहीद की तीन लड़कियां अभी पढ़ रही हैं। उनकी शिक्षा तथा रोजगार के लिये समाज करे तो बहुत अच्छा रहेगा। हमारे देश में अनेक धार्मिक संगठन अपने सदस्य बढ़ाने के लिये सामाजिक मदद भी करते हैं उनको चाहिये कि वह आगे बढ़कर अब राष्ट्र पर समर्पित शहीदों के परिवारों के लिये काम करें।
इधर कुछ लोग जुद्ध जुद्ध के नारे लगा रहे हैं। उन्हें सलाह है कि वह पहले कम खाओ, वह गम खाओ की नीति पर चलना सीख लें। इधर उधर भागकर मनोरंजन ढूंढने की बजाय संत रविदास का सूत्र ‘मन चंगा, कठौती में गंगा’ भी जीवन में उतारें। सीधा मतलब यह है कि अपनी जरूरत तथा व्यय कम करों क्योंकि जुद्ध के बाद जो होना है उसका खमियाजा आम आदमी को ही उठाना है। हमें हमें 1971 का युद्ध याद है उसके बाद से हमारा देश नैतिक, आर्थिक तथा वैचारिक क्षेत्र में पतन की तरफ ऐसा अग्रसर हुआ कि आज भी महंगाई, भ्रष्टाचार तथा अपराधों के जाल में इस कदर जकड़ा है कि आम जनमानस सहजता से सांस भी नहीं ले सकता। देश में भ्रष्टाचारी, अपराधी तथा कालाबाजारिये तो इस इंतजार में है कि राज्यप्रबंध अस्थिर हो और वह अपने कारनामें ज्यादा बढ़ा सकें। देश के अंदर हुए हमले गद्दारों के बिना नहीं हो सकते पर कोई पकड़ा नहीं जाता। ऐसे में सवाल है कि जुद्ध जीत भी लिये तो होना क्या है? गद्दार ज्यादा ताकतवर होकर फिर नुक्सान पहुंचायेंगे।
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