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Saturday, September 3, 2016

पाखंडियों की ही आस्था आहत होती है-हिन्दी चिंत्तन लेख (Pakhandiyon ki Aastha-Hindi Thought Article)

            धर्म तथा आस्था पर आघात की आड़ में जिस तरह देश में उपद्रव होने लगे हैं और कथित विद्वान भी उनका समर्थन करते हैं वह चिंताजनक है।  खासतौर से धार्मिक पुस्तकों के अपमान पर विवाद उठाकर जिस तरह कुछ लोग अपने को भक्त साबित करते हैं वह सरासर पाखंडी हैं।  हमारा मानना है कि भगवान तथा धार्मिक पुस्तकों का अपमान तो हो ही नहीं सकता क्योंकि वह मौन रूप से उसी अस्तित्व में रहेंगी जैसे सदियों से रही हैं। प्रतिष्ठत प्रस्तर या धातु की प्रतिमायें तथा धार्मिक ग्रंथों में वर्णित शब्द कभी न सम्मानित होते हैं न अपमानित।  जो कहते हैं कि हमारी आस्था आहत हो रही है वह सरासर झूठे हैं। जिनकी आस्था सच्ची है वह कभी अपने इष्ट तथा ज्ञान के शब्दों को अपमानित होता अनुभव नहीं कर सकते। गुरु ग्रंथ के अंशों वाली एक किताब थी पर संपूर्ण ग्रंथ नहीं था।  दो वर्ष पहले अमृतसर गये थे।  वहां एक सुबह नहाधोकर बिना कुछ खाये हम स्वर्णमंदिर गये और फिर वहां बाहर दुकान से चार खंडों वाला गुरूग्रंथ साहिब खरीदा।  उसे पैकेट में श्रद्धा से लेकर धर्मशाला आये।  इस दौरान ऐसे जाहिर नहीं होने दिया कि हमारे पास गुरुग्रंथ साहिब है।  उस समय लग रहा था कि चाहे हमारी कितनी श्रद्धा हो पर कोई व्यक्ति ग्रंथ के अपमान का बहाना कर लड़ न बैठे। धर्मशाला में एक टेबल रखी थी जिसे साफ कर हमने उस पर एक बैग में अलग रख दिया। हमारे साथ जीवन संगिनी के अलावा एक अन्य परिवार भी था। यह परिवार कहीं बाहर था। हमने अपनी जीवन संगिनी से कहा कि-घर पहुंचने तक किसी को मत बताना कि हमारे पास गुरुग्रंथ साहिब है। इस देश में आस्था पर जो पाखंड है उसके चलते कोई भी भिड़ सकता है।
             रेल में भी हमने उस बैग को इस तरह रखा कि किसी का पैर उस पर न पड़े। घर आकर श्रद्धा से उसके लिये एक आले में एक जगह बनायी। हम अपने घरों में एक गुरुजारा ( गुरु का आला) जरूर बनाते हैं ताकि वहां पूजा पाठ कर सकें। आज भी जब उससे  लिखते हैं तो नहाधोकर बिना खाये उसका पाठ करते हैं। उसे पढ़ते हैं तो आनंद आता है। यही श्रीमद्भागवत गीता के अध्ययन के समय भी हम करते हैं। अपनी आस्था से ही धार्मिक ग्रंथों का
                        सम्मान करते हैं।  जब पंजाब में गुरुग्रंथ साहिब के अपमान पर विवाद चल रहा था तब हमने लिखा था कि जो लोग मानते हैं कि इस पवित्र ग्रंथ का अपमान हुआ है वह सरासर पाखंडी हैं। गुरुग्रंथ साहिब का अध्ययन करने वाले उसके शब्दों को स्वर्णतुल्य मानते हैं जिनकी चमक कभी कम हो ही नहीं सकती।  ऐसे लोगों के कारण हम जैसे श्रद्धालू भी इसलिये भयभीत रहते हैं कि कहीं उन्हें अश्रद्धावान न घोषित कर दिया जाये।  यही कारण है कि कहीं अगर कोई धार्मिक पुस्तक लेकर निकलते हैं तो किसी को बताते ही नहीं कि हमारे पास क्या है? हमारा मानना है कि राजकीय नियमों में आस्था की रक्षा की आड़ में पाखंडियों को बचाने का काम नहीं होना चाहिये।
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पाखंडियों की ही आस्था आहत होती है-हिन्दी चिंत्तन लेख

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