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Sunday, March 13, 2016

शोर मचाकर झूठ भी सच बनाते-दीपकबापूवाणी (Shor Machakar Jhooth Bhi sach banate-DeepakBapuWani)

इंसान की पहचान अब मिले कहां, मुखौटे के पीछे नीयत छिपी यहां।
‘दीपकबापू’ दिल को  समझा लिया, वफा के बिना जीना सीख यहां।।
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शोर मचाकर झूठ भी सच बनाते, घृणा फैलाकर जहान में अमन लाते।
‘दीपकबापू’ लिया भलाई का ठेका, गरीबउद्धार के नाम खूब धन पाते।।
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जलाकर शांति के घर जो हंसते, घृणा की आग में वह भी फंसते।
‘दीपकबापू’ विध्वंस में मजा ढूंढते, कभी हाथ से बने गड्ढे मे धंसते।।
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दिल तोड़ते ऐसे शब्द वह बोलें, हमदर्दी के नाटक में घृणा घोलें।
‘दीपकबापू’ चले उल्टी अक्ल पर, तरक्की में तबाही की राह खोलें।।
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करें खुद जख्म ज़माने का दिया बतायें, चलने में लाचार पथज्ञान बतायें।
‘दीपकबापू’ पाई बोलने की आजादी, चीख कर अपने स्वर में दम लायें।।
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बहुत है समाज से धोखा करने वाले, वफा बंद कर लगा दिये ताले।
लगा रहे मुख से भलाई के नारे, घूमते ‘दीपकबापू’ पीछे चाकू डाले।।
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मुख से बोलकर अपनी शक्ति गंवायें, जंग में जाकर वही मुंह की खायें।
मुक्के का प्रहार सदा सफल नहीं, ‘दीपकबापू’ कभी मौन से भी सतायें।।
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भद्रभाषा में अपशब्दों की करें तलाश, जोश से करें विनम्रता का नाश।
‘दीपकबापू’ सस्ते में वाणी बेचने वाले, शब्द से खेलें समझकर ताश।।
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कर्म से इतिहास की धारा नहीं मोड़ते, वही अपना नाम वीरता से जोड़ते।
‘दीपकबापू’ मुक्काछाप क्रांतिकारी हैं, नारे लगाकर कागजी पत्थर तोड़ते।।
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तंग दिमाग में अपनी सोच नहीं होती, अड़ियल विचार में लोच नहीं होती।
‘दीपकबापू’ चलायें दर्द का व्यापार, वहां लगायें तेल जहां मोच नहीं होती।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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