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Thursday, April 14, 2016

दौलतमंदों की हुकुमत में-हिन्दी क्षणिकायें (Hindi Short Poem)

ठेले पर सामान के
दाम से जूझते हैं
मॉल में खरीददारी पर
गूंगे बहरों की तरह टूटते हैं।
माया के खेल में
कहीं लूटे
कहीं लूटते हैं।
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हमने तो वफा निभाई
अपना समझकर
वह कीमत पूछने लगे।
क्या मोल बताते
अपने जज़्बातों का
जो नहीं जानते पराये सगे।
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राजा अंगुल में
प्रजा चंगुल में
सिर पर विराजे पीर।
तब ताकतवर
हो जाते अमीर,
सस्ता लगता उन्हें
गरीब का ज़मीर।
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सोने चांदी की चाहत ने
इंसानों की
अक्ल छीन ली है।

धरती पर बिखरा
पेट भरने का सामान
पर कमअक्लोंने दर्द की
फसल बीन ली है।
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दौलतमंदों की हुकुमत में
बेबस लोग
गरीब हो जाते हैं।
खातों में लिखा जाता
जब परिश्रम का भाव
फूटे नसीब हो जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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