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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


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Sunday, October 28, 2007

शब्द जो बारूद बन गए

हमने कुछ कहा
उन्होने कुछ और सुना
समझा कुछ और
लोगों को कुछ और बताने लगे
शहर में हो रही थी चर्चा
हमारे कहे की
जो शब्द हमने कहे ही नहीं
लोग हमें बताने लगे
दिल से उनकी भलाई के लिए
बोले गए शब्द ही हमें
शहर में बदनाम कराने लगे
हम जलते रहे उस आग में
जिसे लोग हमारी चिगारी
से लगी जताने लगे
हम सोचते हैं लोगों से
कोई शब्द बोलने से तो अच्छा है
खामोशी ओढ़ लें
ऐसे कीमती शब्द उन्हें देने से क्या फ़ायदा
जो बारूद बनाकर हमें ही उडाने लगे

Tuesday, June 19, 2007

बुध्दिजीवी और भाषा

NARAD:Hindi Blog Aggregator
चन्द किताबें पढ़कर
पहुंच जाते हैं ज्ञानियों की महफ़िल में
करते हैं अपने ज्ञान का प्रदर्शन
बहुत लंबी होती है बहस
बुध्दी के तरकश में जितने
सरल और कठिन शब्द होते हैं
तीर की तरह चलाते हैं
जब निष्कर्ष निकालने का
समय होता है
तब तय करते हैं कि
अभी और बहस करेंगे
जारी रखेंगें चिन्तन

बुध्दी अपनी हो या पराई
करते हैं बुध्दिजीवी जैसा प्रदर्शन
अपने खोखले अर्थों वाले
निरर्थक शब्दों को किसी तरह सजाते हैं
सब लोगों को भ्रम जाल में फंसाते हैं
कभी नहीं करते आत्ममंथन

कुछ किताबों से चुन लिए वाक्य
लोगों से सुनकर गढ़ लिए
कुछ अपने और कुछ उधार के कथन
उस पर ही बरसों तक
चलता है उनका प्रहसन

शायद इसीलिये कहीं कुछ नया
बनता नज़र नहीं आता
ज़माना उनके जाल
से नहीं निकल पाता है
क्योंकि कोई नहीं कर रहा मनन
फिर भी उम्मीद है
कहीं नयी धारा बहेगी
फूलों के तरह नये शब्द खिलेंगे
कुछ नये कथन बनेंगे
खिलेगा अपनी भाषा का चमन
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Monday, June 18, 2007

क्योंकि लोकतंत्र है!

NARAD:Hindi Blog Aggregator
उसने पूछा तुम 'चिल्लाते क्यों हो'
जवाब मिला' क्योंकि लोकतंत्र है'

उसने पूछा 'अपशब्द क्यों कह रहे हो'
जवाब मिला 'क्योंकि लोकतंत्र है'

उनसे पूछा 'डंडा लेकर क्यों घुमते हो
जवाब मिला 'क्योंकि लोकतंत्र है'

उसने पूछा 'आख़िर लोकतंत्र
का क्या मतलब
चीखना-चिल्लाना,अपशब्द कहना,
और डंडे घुमाना '
जवाब आया 'क्योंकि लोकतंत्र है'

थक-हारकर उसने प्रश्न पूछना छोड़ दिया
फिर भी वहाँ से आवाज आती रही
'क्योंकि लोकतंत्र है
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Thursday, May 24, 2007

आओ कुछ क्षणिक मुस्कराएँ

NARAD:Hindi Blog Aggregator

तैय्रारी
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बिकता नहीं माल
उधार पर बेचने की तैयारी है
मूल के साथ
ब्याज वसूलने की बारी है
दोस्तो दूर ही रहना इस
उधार माल से
यह एक बीमारी है
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यकीन
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इस बाजार में
ज़ज्बातों की कोई
क़दर नहीं भैया
हर माल है एक रुपैया
यकीन मिले तुम्हारी किस्मत
धोखा भी हो सकता है
क्योंकि यहां
बाप बड़ा न भैया
सबसे बड़ा रुपैया
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पहचान
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सांप से ज्यादा जहरीला कौन
सिंह से ज्यादा खतरनाक कौन
बिना फन और नुकीले पंजों के
आदमी उनसे भी ज्यादा है
विषैला और भयानक
करता है खेल
रहता है मौन
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ठेका
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इधर पर्यावरण की रक्षा
की बात करते हैं
उधर देते हैं वन कटाई का ठेका
पहले विनाश कर लें
फिर देंगे विकास का ठेका
तुम बिना सांस लिए मर जाओ
तुम्हारी आने वाली पीढ़ियों के
जिंदा रहने का है उनका ठेका
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Saturday, May 19, 2007

शब्द और अर्थ का धंधा

NARAD:Hindi Blog Aggregatorशब्दों की जादूगरी
बातों की बाजीगरी
उनका कोइ धर्म -ईमान नहीं है
कमाने की है कारीगरी
सुन शब्द सारथी की बात
उठाईगीरों का भी कोई नियम होता है
माँ को ठ्गेंगे नहीं
भाई-बहिन को लुटें गे नहीं
पर करते हैं जो शब्दों से धधा
उनका किसी से रिश्ता नहीं होता
बात कायदों की करेंगे
काम होंगे सब बेकायदा
क़समें खाएंगे ईमान की
बैईमानी के बिना जिनको
खाना हज़म नहीं होता
तुम जिसके बन्दे हो उसी पर ही
अपनी नज़र रखना
किसी ओर से उसका पता न पूछना
तुम बंदगी करते रहो
जब उसके दिल में होगा
आएगा तुम्हारे दर
किसी की बनाई तस्वीर पर
तुम दिल न लगाना
तस्वीरें तो यहां बिकती हैं
पर वह तो तुम्हारे दिल में रहता है
पर तुम अपने धर्म में रहना
जो बेचते हैं शब्द और अर्थ
उनका धर्म कमाना होता है
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