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Thursday, January 14, 2016

ज्ञान के कारण भारत में सहिष्णुता का भाव हमेशा रहा है(Adhyatmik Gyan ki karan Bharat mein sahishnuta ka Bhav hamesha rahaa hai)

                              सऊदी अरब में एक शिया धर्मगुरु को फांसी दी गयी है। अरब देशों में अपने ही धर्म के विचारधारा के आधार पर जितनी शत्रुता दिखती है उससे नहीं लगता कि राज्य प्रबंध में वहां मानवता के नियमों का पालन होता है। आप जरा भारतीय अध्यात्मिक विचारधारा का महान प्रभाव देखिये।  पहले तो हमारे यहां धर्म का आशय मनुष्य के आचरण तथा कर्म के आधार पर लिया जाता है। कहीं कर्म को ही धर्म का नाम दिया जाता है। जैसे ब्राह्मण धर्म, क्षत्रिय धर्म, वैश्य धर्म तथा सेवक या शुद्र धर्म। यही जातियां, वर्ण या व्यवसाय भी कहें जाते हैं। इसे हम सनातन विचारधारा या धर्म की संज्ञा भी देते हैं। दरअसल भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा सत्य पर आधारित है जिसके स्वरूप में  बदलाव कभी नहीं हुआ पर सनातन धर्म के बाद भी यहां बौद्ध, जैन तथा सिख धर्म की धारायें प्रवाहित हुईं। कोई विरोध या धार्मिक द्वंद्व नहीं हुआ। इतना ही नहीं मूल भारतीय ज्ञान तत्व हमेशा ही सभी धाराओं में प्रवाहित देखा गया है।
                             कभी भारत में यह नहीं सुना गया कि यहां उत्पन्न धार्मिक विचारधाराओ के बीच संघर्ष हुआ हो। उससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि जिन्हें हिन्दू विचाराधारा वाला माना जाता है वह तो यहां उत्पन्न सभी धर्मों के पवित्र स्थानों में जाने से कभी संकोच नहीं करते। यह अलग बात है कि बाहरी आक्रमणकारियों के साथ आयी विदेशी विचाराधारायें अपने आपसी ही नहीं वरन् आंतरिक द्वंद्व भी यहां साथ लायीं। विदेशी विचाराधारायें सर्वशक्तिमान के एक ही प्रकार के दरबार तथा एक ही किताब में आस्था का प्रचार करती हैं। तत्वज्ञान के नाम पर उनमें कुछ है इसका आभास भी नहीं होता। उन दोनों विचारधाराओं में जड़ता दिखती है जबकि भारतीय अध्यात्मिक विचारधारा समय समय के साथ परिवर्तनों से मिले अनुभवों को संजोकर चलती है।  इसी कारण हमारे यहां धार्मिक संघर्ष कभी नहीं देखे गये जैसे कि विदेशों में देखे जाते हैं।
                             भारत में धार्मिक विषय पर तर्क वितर्क करने का पूर्ण अधिकार है यही कारण है कि यहां कभी धर्म के नाम पर कभी संघर्ष नहीं होते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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9.हिन्दी सरिता पत्रिका

Friday, November 20, 2015

स्वर्ग और मोक्ष-हिन्दी कविता(Swarg aur Moksh-Hindi Kavita)


भूखा पेेट एक रोटी से भी भरे
लोभ में चाहे पकवान खाये।

दिल की चाहत अनंत
सोने के पहाड़ पर चढ़े
हीरे का ख्याल सताये।

कहें दीपकबापू समाधि में
स्वर्ग गिरता आकर चरण में
मोक्ष आ जाता शरण में
जाने वही जो लगाये।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Saturday, October 31, 2015

देश के वातावरण पर असली आपकी बात-ट्विटर और फेसबुक पर लिखे संदेश(Desh ka vatavaran par Asli Aap Ki Baat-Message on Twitter &FaceBook)

अब सत्य कहें जो कि विश्व तथा भारत में हो रही घटनाओं पर आधारित है। वह यह कि भारत में वातावरण खराब होने वाली बात यूं ही नहीं दोहराई जा रही है। इसके पीछे कोई  प्रायोजित कार्यक्रम है। हमारे देश में जब इतना भ्रष्टाचार दशकों से रहा है तो साहित्य, कला, फिल्म और अन्य क्षेत्रों में दिये जाने वाले सम्मान उससे अछूते नहीं रह सकते।  तय बात है कि यह सम्मान भी कुछ तय करके लिये और दिये गये होंगे। अब वापसी भी उसी प्रक्रिया का भाग हैं।
                                   इससे देश की विदेशों में प्रतिष्ठा गिरने वाली बात एक तरह से मसखरी ही है। जिस तरह विदेशों में वातावरण है उससे तो विदेशों में यह छवि बन रही होगी कि भारतीय अधिक चेतना वाले हैं जो अपने देश की स्थिति वैसी होने से चिंतित हो रहे हैं जैसी आज विदेशी झेल रहे हैं।
वह बातें जो फेसबुक और ट्विटर पर लिखी गयीं
सम्मान वापसी करने वालों पर चेतन भगत की टिप्पणियों पर उन्हें मसखरा कहा जा रहा है। सच तो यह है कि पूरे देश में सम्मान वापसी का मुद्दा एक मसखरी ही माना जा रहा है। इसलिये मसखरा बनकर ही टिप्पणी की जा सकती है।
देश की मुख्य समस्यायें महंगाई, बेरोजगारी और खराब प्रबंधन हैं। आम लोगों की नज़र में यही मुद्दे हैं जिन पर चर्चा होना चाहिये। मांस खाने का विरोध करना गलत है पर उसके प्रत्युत्तर में सार्वजनिक रूप से खाने का प्रदर्शन करना भी बुरा है।
 देश का वातावरण बिगड़ा नहीं बल्कि बिगड़ जाये इसके प्रयास अधिक हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि कुछ लोगों इससे लाभ है।
महंगाई, बेरोजगारी और अन्य मुद्दों पर बोलने से प्रचार नहीं मिलता इसलिये माहौल बिगड़ने की बात कहीं जा रही है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, October 11, 2015

ब्लॉग लेखकों को ज्ञानपीठ सम्मान देना प्रारंभ करें-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन लेख(Give Gyanpith Award to Blog Writter-Hindi Satire Thought Artcel)

                 प्रतिदिन कोई न कोई सम्मानीय अपना सम्मान पुराने सामान की तरह बाहर फैंक रहा है। इससे तो यही लगता है जितने साहित्यक सम्मान देश में बांटे गये हैं उससे तो अगले दस वर्ष तक टीवी चैनलों पर रोज सम्मान वापसी की प्रमुख खबर रहने वाली है।  खासतौर से विशिष्ट रविवार की सामग्री केवल सम्मान वापसी रहने वाली है।  हमारी सलाह है कि अब ज्ञानपीठ तथा अन्य सम्मान सभी भाषाओं के ब्लॉग लेखकों को ही दिया जाना चाहिये जो कभी भी यह वापस नहीं करेंगे और करेंगे तो खबर भी नहीं बनेगी।  अंतर्जाल पर भारत की क्षेत्रीय भाषाओं के ब्लॉग लेखक सक्रिय है।  वह कैसा लिखते हैं यह तो पता नहीं पर यही स्थिति पुराने सम्मानीय लेखकों की भी है। इनमें से अनेक तो ऐसे हैं जिन्हें अपनी भाषा के लोग भी तब जान पाये जब उन्हें सम्मानित किया गया।
                                   हमारी यह सलाह है कि जिस तरह यह लोग अब फनी-इसका मतलब न पूछिये हमें पता नहीं-हो रहे हैं तो उसका मुकाबला भी उनके फन से होना चाहिये।  ब्लॉग भी अब एक किताब की तरह हैं। एक बार सम्मान प्रदान करने वाली संस्था के प्रबंधक भी फनी होकर ब्लॉग लेखकों को ज्ञानीपीठ से सम्मानित कर दें। यही प्रतिक्रियात्मक प्रयास इन पुराने सम्माानीयों के जख्म पर नमक छिड़कने की तरह होगा। एक अध्यात्मिक ज्ञान साधक की दृष्टि से हमारा मानना है कि राजसी कर्म में जस से तस जैसा व्यवहार करना ही चाहिये।  कम से कम हिन्दी में अनेक ऐसे ब्लॉग लेखक हैं जिन्हें हम बहुत काबिल मानते हैं। उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान इसलिये भी मिलना चाहिये क्योंकि अंतर्जाल पर हिन्दी उन्हीं की वजह से जमी है। सबसे बड़ी बात यह पुराने सम्मानीय उन्हें दोयम दर्जे का मानते हैं और जब उन्हें ज्ञानपीठ तथा अन्य सम्मान मिलने लगे तो सारी हेकड़ी निकल जायेगी।
                                   हमारा ज्ञानपीठ के लिये कोई दावा नहीं है, यह बात साफ कर देते हैं क्योंकि हमें नहीं लगता कि फन इतना भी स्तरहीन नहीं होना चाहिये कि भन-इसका मतलब भी नहीं पूछिये- लगने लगे। अगर बात जमे तो  गहन चिंत्तन करें नहीं तो व्यंग्य समझकर आगे बढ़ जायें।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Thursday, September 24, 2015

दीपकबापू वाणी (Deepak Bapu Wani)Sum Hindi Poem


लज्जा नारी का आभूषण थीअब अल्पवस्त्र पहचान हो गयी।
कहें दीपकबापू अबला छाप खत्मविज्ञापन की जान हो गयी।।

वैभवस्वामी होते क्षीण बुद्धिझुके सिर से अपना मान जाने।
दीपकबापू पैसे पद में डूबेमोलतोल की कला ही ज्ञान जाने।।
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कोई खुश होता है पुतला जलाकर, कोई पत्थर फैंककर मारे।
दीपकबापूअधर्मी पर फिदा, लगते हैं दुनियां के लोग सारे।।
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रोटी न होती भूख भी न होती, भलाई का अवसर कहां मिलता।
दीपकबापू सब त्याग कर जीते, राजाओं को घर कहां मिलता।।
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श्रम और बुद्धि का संगम, संसार में अर्थ सिद्धि का यही मंत्र।
दीपकबापूसब खायें खुश रहें, समाज बनता धर्म का तंत्र।।
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कर्ज लेना हमेशा सस्ता लगे, चुकाना पड़ता महंगा ब्याज।
दीपकबापू नमक से ही सब्जी सजायें, त्यागें महंगा प्याज।।
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वातानुकूलित यंत्र न ही ईंधन का चौपाया, फिर भी अपनी मौज है।
 कहें दीपकबापू दौलत के पीछे, अक्ल के अंधों की बेचैन फौज है।
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जितना नचाये माया  तू नाच, फिर मोर की तरह उदास न होना।
दीपकबापूदौलत का ढेर लगा, फिर पहरेदारी में चैन न खोना।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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