सऊदी अरब में एक
शिया धर्मगुरु को फांसी दी गयी है। अरब देशों में अपने ही धर्म के विचारधारा के आधार
पर जितनी शत्रुता दिखती है उससे नहीं लगता कि राज्य प्रबंध में वहां मानवता के नियमों
का पालन होता है। आप जरा भारतीय अध्यात्मिक विचारधारा का महान प्रभाव देखिये। पहले तो हमारे यहां धर्म का आशय मनुष्य के आचरण
तथा कर्म के आधार पर लिया जाता है। कहीं कर्म को ही धर्म का नाम दिया जाता है। जैसे
ब्राह्मण धर्म, क्षत्रिय धर्म, वैश्य धर्म तथा सेवक या शुद्र धर्म। यही जातियां, वर्ण या व्यवसाय भी कहें
जाते हैं। इसे हम सनातन विचारधारा या धर्म की संज्ञा भी देते हैं। दरअसल भारतीय अध्यात्मिक
विचाराधारा सत्य पर आधारित है जिसके स्वरूप में
बदलाव कभी नहीं हुआ पर सनातन धर्म के बाद भी यहां बौद्ध, जैन तथा सिख धर्म की धारायें
प्रवाहित हुईं। कोई विरोध या धार्मिक द्वंद्व नहीं हुआ। इतना ही नहीं मूल भारतीय ज्ञान
तत्व हमेशा ही सभी धाराओं में प्रवाहित देखा गया है।
कभी भारत में यह
नहीं सुना गया कि यहां उत्पन्न धार्मिक विचारधाराओ के बीच संघर्ष हुआ हो। उससे भी महत्वपूर्ण
बात यह कि जिन्हें हिन्दू विचाराधारा वाला माना जाता है वह तो यहां उत्पन्न सभी धर्मों
के पवित्र स्थानों में जाने से कभी संकोच नहीं करते। यह अलग बात है कि बाहरी आक्रमणकारियों
के साथ आयी विदेशी विचाराधारायें अपने आपसी ही नहीं वरन् आंतरिक द्वंद्व भी यहां साथ
लायीं। विदेशी विचाराधारायें सर्वशक्तिमान के एक ही प्रकार के दरबार तथा एक ही किताब
में आस्था का प्रचार करती हैं। तत्वज्ञान के नाम पर उनमें कुछ है इसका आभास भी नहीं
होता। उन दोनों विचारधाराओं में जड़ता दिखती है जबकि भारतीय अध्यात्मिक विचारधारा समय
समय के साथ परिवर्तनों से मिले अनुभवों को संजोकर चलती है। इसी कारण हमारे यहां धार्मिक संघर्ष कभी नहीं देखे
गये जैसे कि विदेशों में देखे जाते हैं।
भारत में धार्मिक
विषय पर तर्क वितर्क करने का पूर्ण अधिकार है यही कारण है कि यहां कभी धर्म के नाम
पर कभी संघर्ष नहीं होते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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