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Thursday, June 4, 2015

कंपनियों के खाद्य तथा पेय पदार्थों के उपभोग पर समाज विचार करे-हिन्दी चिंत्तन लेख(eat and drink production of large compani's-hindi thought article)

        देश में मैगी के भोज्य पदार्थ को लेकर विवाद का दौर चल रहा है। हमारी दृष्टि से  एक उत्पादक संस्थान पर ही चर्चा करना पर्याप्त नहीं है। उपभोग की बदलती प्रवृत्तियों ने संगठित उत्पादक संस्थानों के भोज्य पदार्थों को उस भारतीय समाज का हिस्सा बना दिया है जो स्वास्थ्य का उच्च स्तर घरेलू भोजन में ढूंढने के सिद्धांत को तो मानता है पर विज्ञापन के प्रभाव में अज्ञानी हो जाता है। अनेक संगठित उत्पादक संस्थान खाद्य तथा पेय पदार्थों का विज्ञापन भारतीय चलचित्र क्षेत्र के अभिनेताओं से करवाते हैं।  उन्हें अपने विज्ञापनों में अभिनय करने के लिये भारी राशि देते हैं। इन्हीं विज्ञापनों के प्रसारण प्रकाशन के लिये टीवी चैनल तथा समाचार पत्रों में भी भुगतान किया जाता है। इन उत्पादक संस्थानों के विज्ञापनो के दम पर कितने लोगों की कमाई हो रही है इसका अनुमान तो नहीं है पर इतना तय है कि इसका व्यय अंततः उपभोक्ता के जेब से ही निकाला जाता है। आलू चिप्स के बारे में कहा जाता है कि एक रुपये के आलू की चिप्स के  दस रुपये लिये जाते हैं।

        हमारे देश में अनेक  भोज्य पदार्थ पहलेे ही बनाकर बाद में खाने की परंपरा रही है। चिप्स, अचार, मिठाई तथा पापड़ आदि अनेक पदार्थ हैं जिन्हें हम खाते रहे हैं। पहले घरेलू महिलायें नित नये पदार्थ बनाकर अपना समय काटने के साथ ही परिवार के लिये आनंद का वातावरण बनाती थीं। अब समय बदल गया है। कामकाजी महिलाओं को समय नहीं मिलता तो शहर की गृहस्थ महिलाओं के पास भी अब नये समस्यायें आने लगी हैं जिससे वह परंपरागत भोज्य पदार्थों के निर्माण के लिये तैयार नहीं हो पातीं। उस पर हर चीज बाज़ार में पैसा देकर उपलब्ध होने लगी है। घरेलू भोजन में बाज़ार से अधिक शुद्धता की बात करना अप्रासंगिक लगता है। इसका बृहद उत्पादक संस्थानों को भरपूर लाभ मिला है।
       भारतीय समाज में चेतना और मानसिक दृढ़ता की कमी भी दिखने लगी है। अभी मैगी के विरुद्ध अभियान चल रहा है पर कुछ समय बाद जैसे ही धीमा होगा वैसे ही फिर लोग इसका उपभोग करने लगेंगे। पेय पदार्थों में तो शौचालय स्वच्छ करने वाले द्रव्य मिले होने की बात कही जाती है। फिर भी उसका सेवल धड़ल्ले से होता है। यह अलग बात है कि निजी अस्पतालों में बीमारों की भीड़ देखकर कोई भी यह कह सकता है कि यह सब बाज़ार के खाद्य तथा पेय पदार्थों की अधिक उपभोग के कारण हो रहा है।
        ऐसे में बृहद उत्पादक संस्थानों के खाद्य तथा पेय पदार्थों के प्रतिकूल अभियान छेड़ने से अधिक समाज में इसके दोषों की जानकारी देकर उसे जाग्रत करने की आवश्कयता अधिक लगती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Friday, May 29, 2015

राजसी कर्म से पंच गुण उत्पन्न होते ही हैं-हिन्दी चिंत्तन रचना(rajsi karme se panch gun uepanna hote hi hain-hindi thought article)


     अध्यात्मिक दर्शन का संबंध आंतरिक मनस्थिति से है। उसके ज्ञान से  व्यक्ति सात्विक भाव धारण करता है या फिर इस संसार में विषयों से सीमित संबंध रखते हुए योग भाव को प्राप्त होता है।  एक बात तय रही कि दैहिक विषयों से राजसी भाव से ही  राजसी कर्म के साथ संपर्क रखा जा सकता है। ज्ञान होने पर व्यक्ति अधिक सावधानी से राजसी कर्म करता है और न होने पर वह उसके लिये परेशानी का कारण भी बन जाता हैं।  हम देख यह रहे है कि लोग अपने साथ उपाधि तो सात्विक की लगाते हैं पर मूलतः राजसी प्रवृत्ति के होते हैं। ज्ञान की बातें आक्रामक ढंग से इस तरह करेंगे कि वह उन्हीं के पास है पर उनमें धारणा शक्ति नाममात्र की भी नहीं होती और राजसी सुख में लिप्त रहते हैं। राजसी कर्म और उसमें लिप्त लोगों में लोभ, क्रोध, मोह, अहंकार की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती है अतः उनसे सात्विक व्यवहार करने और विचार रखने की आशा करना ही अज्ञान का प्रमाण है। सात्विकता के साथ राजसी कर्म करने वालों की संख्या नगण्य ही रहती है।
            धर्म, अर्थ, समाज सेवा, पत्रकारिता और कला क्षेत्र में धवल वस्त्र पहनकर अनेक लोग सेवा का दावा करते हैं। उनके हृदय में शासक की तरह का भाव रहता है। स्वयंभू सेवकों की भाषा में अहंकार प्रत्यक्ष परिलक्षित होता है। प्रचार में विज्ञापन देकर वह नायकत्व की छवि बना लेते हैं।  शुल्क लेकर प्रचार प्रबंधक जनमानस में उन्हें पूज्यनीय बना देते हैं। कुछ चेतनावान लोग इससे आश्चर्यचकित रहते हैं पर ज्ञान के अभ्यासियों पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता। राजसी कर्म में लोग फल की आशा से ही लिप्त होते हैं-उनमें पद, प्रतिष्ठा पैसा और प्रणाम पाने का मोह रहता ही है। हमारे तत्वज्ञान के अनुसार यही सत्य है।
सामान्य जन उच्च राजसी कर्म और पद पर स्थित शिखर पुरुषों से सदैव परोपकार की आशा करते हैं पर उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं होता कि इस संसार में सभी मनुष्य अपने और परिवार के हित के बाद ही अन्य बात सोचते हैं। परोपकार की प्रवृत्ति सात्विक तत्व से उत्पन्न होती है और वह केवल अध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली मनुष्यों में संभव है। सात्विक लोगों में बहुत कम लोग ही राजसी कर्म में अपनी दैहिक आवश्यकता से अधिक संपर्क रखने का प्रयास करते हें। उन्हें पता है कि व्यापक सक्रियता काम, क्रोध, मोह लोभ तथा अहंकार के पंचगुण वाले  मार्ग पर ले जाती है। ऐसे ज्ञान के अभ्यासी कभी भी राजसी पुरुषों की क्रियाओं पर प्रतिकूल टिप्पणियां भी नहीं करते क्योंकि उनको इसका पता है कि अंततः सभी की देह त्रिगुणमयी माया के अनुसार ही संचालित होती है। उनके लिये अच्छा या बुरा कुछ नहीं होता इसलिये काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार को वह राजसी कर्म से उत्पन्न गुण ही मानते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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Friday, May 15, 2015

भारत और चीन के बीच अध्यात्म तत्व मैत्री का आधार बन सकता है-हिन्दी चिंत्तन लेख(india and china relation:adhyatma poind between both country-hindi article)


      भारतीय प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी की चीन यात्रा के दौरान राजनीतिक विषयों पर चर्चा huee पर जिस तरह इसमें अध्यात्मिक तथा धार्मिक तत्व के दर्शन हुए वह नये परिवर्तन का संकेत हैं।  आमतौर से वामपंथी विचाराधारा के चीनी नेता धर्म जैसे विषय पर सार्वजनिक रूप से मुखर नहीं होते न ही अपने देश से बाहर के लोग प्रेरित करते। जिस तरह नरेंद्र मोदी ने वहां जाकर बौद्धिवृक्ष का पौद्या उपहार के रूप में सौंपा और प्रत्युपहार में उन्हें बुद्ध की स्वर्णिम प्रतिमा सौंपी गयी वह वैश्विक राजनीतिक में एक नया रूप है।
             चीनी नेताओं ने जिस तरह शियान के बौद्ध मंदिर में फोटो खिंचवाये उससे यह लगता है कि अभी तत्काल नहीं तो भविष्य में चीनी जनता के हृदय में भारत के प्रति परिवर्तन अवश्य आयेगा। अभी तक विश्लेषकों की जानकारी सही माने तो वहां पाकिस्तान केा मित्र तथा भारत को विरोधी ही माना जाता है।  हमारा मानना है कि जब तक चीनी प्रचार माध्यम जब तक भारत के प्रति वहां के जनमानस में सद्भाव नहंी स्थापित करते तब दोनों के बीच राजनीतिक साझेदारी जरूर बने पर संास्कृतिक तथा सांस्कारिक संपर्क स्थाई नहंी बन सकते।
वैसे हमें लगता है कि चीनी रणनीतिकार भारत के प्रति कृत्रिम सद्भाव दिखा रहे हैं क्योंकि वह धार्मिक विचाराधारा को अपनी राजकीय सिद्धांत बनाने वाले पाकिस्तान के प्रति उनकी बढ़ती निकटता भारत के लिये खतरा ही है। बौद्ध और भारतीय धर्म समान सिद्धांतों पर आधारित हैं। भारत में जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर तो भगवान बौद्ध के न केवल समकालीन वरन् समकक्ष ही माने जाते हैं।  दोनों ही अहिंसा सिद्धांत के प्रवर्तक रहे हैं।  एक आम भारतीय के लिये भगवान महावीर तथा बुद्ध में समान श्रद्धा है। ऐसे में अध्यात्मिक चिंत्तकों के लिये चीन का धार्मिक तत्व के प्रति झुकाव दिखना रुचिकर है। पाकिस्तान की राजकीय विचाराधारा चीन तथा भारत दोनों के लिये समान चुनौती है जिसमें धर्म के आधार पर आतंकवाद निर्यात किया जाता है। ऐसे में चीन का उससे मेल संशय का परिचायक है।  साथ ही यह विचार भी आता है कि कहीं चीन का राजनीति में धार्मिक तत्व का मेल कहीं इस समय भारत से तात्तकालिक औपचारिकता निभाने भर तो सीमित नहीं है।
    एक बात तय है कि भारत और चीन की निकटता में अध्यात्म तत्व ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सांसरिक विंषयों से बने संपर्क अधिक समय तक नहीं टिके रहते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Tuesday, May 5, 2015

भजन के साथ सुप्रभात good morning with bhajan


           प्रातःकाल जब तक अखबार या टीवी में जब तक समाचारों नहीं सुने तभी तक ही सुप्रभात रह सकती है। हम  दूसरे को सुप्रभात कह सकते हैं पर उसके लिये हमारे अंदर जीवन के प्रति उत्साह होना चाहिये।  अगर कहीं दुर्घटना, आतंक अथवा डकैती घटनाओं से सुबह ही संपर्क कायम हो गया तो फिर सुप्रभात रह ही नहीं रह सकती। बुरे समाचारों की वजह से निराशा और क्रोध जैसे विष हमारे अंदर आ ही जाते हैं। । ऐसे में किसी से सुप्रभात बोले भी तो उसका प्रभाव नहीं होता क्योंकि बुरे समाचारों की वजह से मन वैसे ही खराब हो जाता है।
         टीवी पर श्रीमन्नारायण नारायण शब्दों के साथ भजन चल रहा है। कितना अच्छा अनुभव हो रहा है। किसी बुरे समाचार से संपर्क नहीं होना और भजन के स्वर से कानों में अमृत का घोल मिलने से वाकई प्रातः मन ही मन दोहरा रहे हैं सुप्रभात!

Wednesday, July 28, 2010

रहीम के दोहे-किसी के कहने से मर्यादा कम नहीं हो जाती (maryada-rahim ke dohe)

आजकल हर कोई प्रशंसा का भूखा है। मुश्किल यह है कि लोग आजकल केवल धनिकों तथा उच्च पदस्थ लोगों की झूठी प्रशंसा करने के इस कदर हावी हैं कि निष्काम भाव से कार्यरत लोगों को फालतू का आदमी समझा जाता है। सज्जन आदमी की बजाय धन तथा स्वार्थ पूर्ति के लिये दुष्ट की ही प्रशंसा करते हैं। यही कारण है कि समाज में उच्छ्रंखल प्रवृत्ति के लोग मर्यादाऐं तोड़ते हुए वाहवाही बटोरते हैं। हालांकि इसके बाद में न केवल उनको बल्कि समाज को भी दुष्परिणाम भोगने पड़ते हैं। इसलिये न तो तो उच्छ्रंखलता स्वयं बरतनी चाहिए न किसी को प्रोत्साहित करना चाहिए।
जो बड़ेन को लघु कहें, नहिं रहीम घटि जाहिं
गिरधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नाहिं
कविवर रहीम कहते हैं कि बड़े लोगों को कोई छोटा कहता है तो वह छोटे नहीं हो जाते। भगवान श्री कृष्ण जिन्होंने गिरधर पर्वत उठाया उनको कुछ लोग मुरलीधर भी कहते हैं पर इससे उनकी मर्यादा कम नहीं हो जाती।
जो मरजाद चली सदा, सोई तो ठहराय
जो जल उमगै पारतें, कहे रहीम बहि जाय
कविवर रहीम कहते हैं कि जो सदा से मर्यादा चली आती है, वही स्थिर रहती है। जो पानी नदी के तट को पार करके जाता है वह बेकार हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-कई लोगों को तब बहुत पीड़ा होती है जब कोई उनको छोटा या महत्वहीन बताता है। सच बात तो यह है कि आजकल हर कोई एक-दूसरे को छोटा बताकर अपना महत्व साबित करना चाहता है। ऐसे में कोई व्यक्ति अगर हमको छोटा कहता है या आलोचना करता है तो उसे सहज भाव से ग्रहण करना चाहिए। अपने मन में यह सोचना चाहिए कि जो हम और हमारा कार्य है वह अपने आप हमारा महत्व साबित कर देगा। भौतिक साधनों की उपलब्धता आदमी को बड़ा नही बनाती और उनका अभाव छोटा नहीं बनाती। आजकल के युग में जिसके पास भौतिक साधनों का भंडार है लोग उसे बड़ा कहते है और जिसके पास नहीं है उसे छोटा कहते है। जबकि वास्तविकता यह है कि जो अपने चरित्र में दृढ़ रहते हुए मर्यादित जीवन व्यतीत करता है वही व्यक्ति बड़ा है। इसलिये अगर हम इस कसौटी पर अपने को खरा अनुभव करते हैं तो फिर लोगों की आलोचना को अनसुना कर देना चाहिए।
वैसे भी आजकल लोग आत्मप्रशंसा में ही अपनी प्रसन्नता समझते हैं और दूसरे के गुण देखने का न तो उनके पास समय और न ही इच्छा। इसलिये अच्छा काम करने के बाद यह अपेक्षा तो कतई नहीं करना चाहिये कि स्वार्थी, लालची और अहंकार लोग उसकी प्रशंसा करेंगे। कोई भी परोपकार और परमार्थ का काम अपने दिल की तसल्ली के लिये ही करना श्रेयस्कर है क्योंकि इससे ही हमारी आत्मा प्रसन्न होती है। अपने कर्तव्य और धर्म का एकाग्रता के साथ निर्वाह निष्काम भाव से करना ही श्रेयस्कर क्योंकि दूसरे से प्रशंसा या तो चाटुकारिता करने पर मिलती है यह उसके स्वार्थ पूरा करने पर।
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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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