प्रातःकाल जब तक अखबार या टीवी में जब तक समाचारों नहीं सुने तभी तक ही सुप्रभात रह सकती है। हम दूसरे को सुप्रभात कह सकते हैं पर उसके लिये हमारे अंदर जीवन के प्रति उत्साह होना चाहिये। अगर कहीं दुर्घटना, आतंक अथवा डकैती घटनाओं से सुबह ही संपर्क कायम हो गया तो फिर सुप्रभात रह ही नहीं रह सकती। बुरे समाचारों की वजह से निराशा और क्रोध जैसे विष हमारे अंदर आ ही जाते हैं। । ऐसे में किसी से सुप्रभात बोले भी तो उसका प्रभाव नहीं होता क्योंकि बुरे समाचारों की वजह से मन वैसे ही खराब हो जाता है।
टीवी पर श्रीमन्नारायण नारायण शब्दों के साथ भजन चल रहा है। कितना अच्छा अनुभव हो रहा है। किसी बुरे समाचार से संपर्क नहीं होना और भजन के स्वर से कानों में अमृत का घोल मिलने से वाकई प्रातः मन ही मन दोहरा रहे हैं सुप्रभात!
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