सार शब्द निज जानि के, जिन कीन्ही परतीति।
काग कुमत तजि हंर ह्नै, चले सु भौजल जीति।।
काग कुमत तजि हंर ह्नै, चले सु भौजल जीति।।
संत कबीरदास के मतानुसार शब्द का ज्ञान होने पर जिसने अपना व्यवहार निष्कपट बनाने के साथ जीवन में परमात्मा के प्रति श्रद्धा और विश्वास भाव हृदय में धारण कर लिया वह वैसे ही कुमति को त्याग देता है जैसे कि हंस ने प्राप्त की और उसका उद्धार हो गया।
जंत्र मंत्र सब झूठ है, मति भरमो जग कोय।
सार शब्द जानै बिना, कागा हंस न होय।।
सार शब्द जानै बिना, कागा हंस न होय।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी का कहना है कि इस ंसंसार में जंत्र मंत्र सब झूठ है और इनसे बुद्धि भ्रमित हो जाती है। जब तक शब्द का ज्ञान न हो तब तक कोई मनुष्य वैसे ही ज्ञानी नहीं बन सकता जैसे कि कौआ कभी हंस नहीं बन सकता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे देश में तंत्र मंत्र को लेकर अनेक लोग भ्रमित होते हैं। अनेक लोग तो पशु बलि देकर अपना काम सिद्ध करना चाहते हैं। बहुत बड़ी संख्या में कथित श्रद्धालु सांसरिक कामों की सिद्धि के लिये तांत्रिकों और कथित सिद्धों के दरवाजे पर हाजिरी देते हैं। यही कारण है कि अनेक ढोंगी लोगों ने तंत्र मंत्र को अपना व्यवसाय बना लिया है। अनेक लोग तो ऐसे हैं जो गढ़े खजाने की खोज का काम भी करते हैं। जितना हमारे देश का अध्यात्मिक ज्ञान समृद्ध है उतना ही तंत्र मंत्र के वहमों का अंधेरा भी यहीं दिखाई देता है।
दरअसल सृष्टि का नियम है कुछ काम तो समय आने पर स्वयमेव सिद्ध होते हैं पर उनके पूर्ण होने की तीव्रतर इच्छा अनेक लोगों को इन तंत्र मंत्रों के चक्कर में डाल देती है। यह तंत्र मंत्र उस अध्यात्मिक ज्ञान का भाग नहंी है जो जीवन का मार्ग प्रशस्त करने के लिये ऐसी बुद्धि प्रदान करता है जिससे मनुष्य अपना काम सिद्ध करने में स्वयं ही सक्षम हो जाता है। ऐसे तांत्रिक या कथित सिद्ध भले ही अपने आपको धार्मिक व्यक्ति बताते हों पर यह कृत्य धर्म का हिस्सा नहीं है। यह विचार करते हुए उनसे दूर ही रहना अच्छा है। इससे अच्छा तो यह है कि भगवान का नाम स्मरण करते रहें जिससे मन में शांति और धीरज बना रहता है और जीवन संसार के काम तो समय आपने पर ही स्वयं ही सिद्ध होते हैं।
-----------------------संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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