कुटिल बचन नहिं बोलिये, शीतल बैन ले चीन्हि
गंगा जल शीतल भया, परबत फोड़ा तीन्हि।।
गंगा जल शीतल भया, परबत फोड़ा तीन्हि।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कुटिल वचन न बोलते हुए मधुर शब्दों का चयन करना चाहिये। जिस तरह गंगा जल शीतल होकर पहाड़ भेद देता है वैसे ही शीतल वचन मनुष्य की शक्ति होते हैं जो उसे सफल बनाते हैं।
बोलै बोल विचारि के, बैठे ठौर संभारि।
कहैं कबीर ता दास को, कबहुं न आवै हारि।
कहैं कबीर ता दास को, कबहुं न आवै हारि।
संत कबीरदास जी का कहना है कि हमेशा विचार कर अपनी बात रखना चाहिये। जो विनम्रता पूर्वक बोलता है वह कभी पराजित नहीं होता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अपनी शक्ति और प्रभाव दिखाने के लिये कड़े शब्द बोलने से कोई लाभ नहीं होता। संभव है कि कटु वचन सुनने पर कोई व्यक्ति तत्काल उसका उत्तर न दे पर वह बोलने वाले के प्रति मन में वह विद्वेष तो पाल लेता है। दूसरी बात यह भी है कि हमेशा सोच विचार कर कहीं अपनी बात रखना ही अच्छा है क्योंकि बिना विचारे कही गयी बात का दुष्परिणाम भी भोगना पड़ता है।
मन हमेशा स्वच्छ रखकर दूसरों से व्यवहार करने से ही सारे काम सिद्ध होते हैं। अगर किसी व्यक्ति से काम निकालना है और उसके साथ हम चालाकी करते हैं तो वह समझ जाता है। कुटिल लोग अपने आपको कितना भी चालाक समझें पर उनकी पोल छिपी नहीं रहती। एक बात ध्यान रखें जब आपके मन में किसी के प्रति कुटिलता का भाव आता है तो दूसरा भी उससे बच नहीं सकता। ऐसे में व्यवहार कलुषित हो जाता है। अपने मन में इसलिये स्वच्छता और निर्मलता का भाव रखते हुए अपने मुंह से निकलने वाली को कोमल बनाना चाहिये।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://deepkraj.blogspot.com
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