भीरुर्यद्धपमित्यागात्स्वयमेवावसीदति।
धीरोऽप्यवीपुरुषै-संग्रामे तैर्विपुच्यते।।
हिन्दी में भावार्थ-कायर मनुष्य युद्ध के त्याग से स्वयं ही नष्ट होता है। वीर पुरुष भी अगर युद्ध में किसी कायर को ले जाये तो स्वयं भी कायरता को प्राप्त होता है।
धीरोऽप्यवीपुरुषै-संग्रामे तैर्विपुच्यते।।
हिन्दी में भावार्थ-कायर मनुष्य युद्ध के त्याग से स्वयं ही नष्ट होता है। वीर पुरुष भी अगर युद्ध में किसी कायर को ले जाये तो स्वयं भी कायरता को प्राप्त होता है।
प्रकृतिभिर्विरक्तप्रकृतिर्युधि।
सुखाभियोज्यो भवति विषयेऽप्यतिसक्तिमान्।।
हिन्दी में भावार्थ-विरक्त प्रकृति वाले राजा को उसके लोग युद्ध में ही छोड़कर चले जाते हैं और विषयों में आसक्त पुरुष को थोड़ा सुख देकर ही जीत लिया जाता है।
सुखाभियोज्यो भवति विषयेऽप्यतिसक्तिमान्।।
हिन्दी में भावार्थ-विरक्त प्रकृति वाले राजा को उसके लोग युद्ध में ही छोड़कर चले जाते हैं और विषयों में आसक्त पुरुष को थोड़ा सुख देकर ही जीत लिया जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जीवन में हर मनुष्य को संघर्ष करना पड़ता है। समय अत्यंत बलवान है अतः जब कष्ट और विरोधी सशक्त होकर आक्रमण कर रहे हों तब धीरज से काम लेकर मैदान में डटे रहना चाहिए। अपने अभियान या लक्ष्य का त्याग कर विरक्त होना कभी ठीक नहीं होता। जो मनुष्य अपने संकट और विरोधी देखकर अपने अभियान या लक्ष्य से विरक्त होकर बैठ जाता है उसके मित्र तथा सहयोग भी छोड़ जाते हैं। अतः चाहे जो भी हो मनुष्य को मैदान में डटे रहना चाहिये।
एक समय जो लक्ष्य या अभियान विरोधियों की शक्ति और संकट के गहरे होने के कारण पूरा होता नहीं दिखता वही परिस्थितियां और समय बदलते हुए पूरा भी हो सकता है। ऐसा समय भी आ सकता है कि जब विरोधी निशक्त हो जायें और संकट स्वयं ही क्षीणता को प्राप्त हो तब मनुष्य को अपने लक्ष्य और अभियान में सफलता मिल सकती है।
अपने कार्य की सिद्धि के लिये साम, दाम, दण्ड और भेद की नीति का पूरी तरह प्रयोग करना चाहिये। जहां व्यक्ति अपने से अधिक ताकतवर हो वहां उसकी यह कमजोरी देखना चाहिये कि वह किस प्रकार के सुख से जीता जा सकता है अर्थात उसे दाम का सुख देकर अपने वश में करना चाहिए।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://deepkraj.blogspot.com
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