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Thursday, March 25, 2010

विदुर नीति-अपने से प्रेम करने वालों को छोड़ना मूर्खता

अकामान् कामयति यः कामयानान् परित्यजेत्।
बलवन्तं च यो द्वेष्टि तमाहुर्मुढचेतसम्।।
हिन्दी में भावार्थ-
जो अपने से प्रेम करने वाले को त्याग देता है और न प्रेम करने वालों से संपर्क जोड़ता है तथा जो बलवान् के साथ बैर बांधता है उसे मूर्ख कहा जाता है।
अनाहूतः प्रविशति अपुष्टो वहु भाषते।
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः।।
हिन्दी में भावार्थ-
मूढ़बुद्धि वाला मनुष्य बिन बुलाये ही कहीं भी चला जाता है और बिना पूछे ही बोलता है तथा अविश्वसनीय व्यक्ति पर विश्वास करता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-अपने साथ जुड़े व्यक्तियों के बारे में एकांत मिलने पर विचार अवश्य करना चाहिए अन्यथा हम अनजाने में ही मूढ़ता की स्थिति को प्राप्त हो जाते हैं। इस आत्ममंथन से ही यह स्पष्ट होता है कि कौन हमें वाकई चाहता है और कौन नहीं। अगर हम ऐसा नहीं करते तो अपने से प्रेम करने वालों को अनजाने में त्याग देते हैं और जिनका मन कलूषित है और केवल हमसे दिखावे का प्रेम करते हैं उनकी चिकनी चुपड़ी बातें सुनकर उनसे ही चिपके रहते हैं।
महात्मा विदुर की तरह नीति विशारद चाणक्य भी कहते हैं कि एकांत में बैठकर अपने मित्रों, परिवार के सदस्यों और सहयोगियों के बारे में विचार अवश्य करना चाहिये।
अनेक लोग ऐसे होते हैं जो चिकनी चुपड़ी बातें नहीं करते पर उनका प्रेम निच्छल होता है। हितैषी होने के कारण वह समय पर कटु बात भी कह देते हैं पर उसका बुरा नहीं मानना चाहिये। ऐसे लोगों से अधिक खतरनाक वह हैं जो सामने प्रशंसा करते हुए ऐसे मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते हैं जिसका परिणाम दुःखद होता है या वह किसी दुष्परिणाम देने वाला काम करते देख अपने मित्र को उससे रोकते नहीं है। आजकल तो चाटुकारिता का जमाना है और ऐसे में अपने हितैषियों को अपने साथ रखना जरूरी है पर इसके लिये यह जरूरी है कि हम अपने पास रहने वाले लोगों का विश्लेषण करते रहें।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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