एकोऽहमस्मीत्यात्मानं यत्तवं कल्याण मन्यसे।
नित्यं स्थितस्ते हृद्येष पुण्यपापेक्षिता मुनिः।।
हिन्दी में भावार्थ-यदि कोई मनुष्य यह सोचकर झूठा साक्ष्य दे रहा है कि वह अकेला है और उसे कोई नहीं देख रहा तो वह गलती पर है क्योंकि पाप और पुण्य को देखने वाला परमात्मा सभी के हृदय में रहता है।
नित्यं स्थितस्ते हृद्येष पुण्यपापेक्षिता मुनिः।।
हिन्दी में भावार्थ-यदि कोई मनुष्य यह सोचकर झूठा साक्ष्य दे रहा है कि वह अकेला है और उसे कोई नहीं देख रहा तो वह गलती पर है क्योंकि पाप और पुण्य को देखने वाला परमात्मा सभी के हृदय में रहता है।
अवाविशरास्समस्यन्धे कित्वषी नरकं व्रजेत्।
च प्रश्नवितर्थ ब्रूयात्पृष्ठः सनधर्मनिश्चये।।
हिन्दी में भावार्थ-धर्म के विषय पर पूछे जाने पर उसका उत्तर झूठा देने वाला भयानक अंधेरे से भरे नरक में गिरता है।
च प्रश्नवितर्थ ब्रूयात्पृष्ठः सनधर्मनिश्चये।।
हिन्दी में भावार्थ-धर्म के विषय पर पूछे जाने पर उसका उत्तर झूठा देने वाला भयानक अंधेरे से भरे नरक में गिरता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-कुछ लोगों की आदत होती है कि वह धर्म के नाम पवित्र ग्रंथों में लिखी गयी सामग्री की झूठी मूठी व्याख्या कर लोगों को बहकाते हैं। अनेक लोग इसका आर्थिक लाभ उठाते हैं तो अनेक सामजिक रूप से सम्मानीय बनने के लिये धर्मग्रंथों के संदेशों को तोड़ मरोड़कर लोगों भ्रमित करते हैं। सच बात तो यह है कि हमारे अध्यात्मिक ग्रंथों में अनेक बातें व्यंजना विद्या में लिखी गयी है और उसके लिये भाषा, व्याकरण और साहित्य की समझ होना जरूरी है केवल शाब्दिक अर्थ से ही उनकी व्याख्यान करना अल्पज्ञान का प्रमाण देना ही है। इसके अलावा इन प्राचीन ग्रंथों में अनेक बार उसमें कही गयी बातों में विरोधाभास भी लगता है क्योंकि धार्मिक पुस्तकों में अलग अलग प्रसंगों में विद्वानों ने समय के अनुसार अपने विचार व्यक्त किये हैं। इसका लाभ कुछ अल्पज्ञानी अपने आपको ज्ञानवान प्रमाणिक करने के लिये उनकी गलत व्याख्या कर उठाते हैं। ऐसे लोग बहुत बड़े अपराध के भागी बनते हैं क्योंकि उनका यह दुष्कृत्य झूठी गवाही देने के समान है।
अनेक बार विवादों में लोग झूठे गवाह बन जाते हैं। तब वह सोचते हैं कि कोई उनको देख नहीं रहा पर यह उनका भ्रम है। हमारी देह में रहने वाला आत्मा तो परमात्मा का ही अंश है जो सब देखता है और कहीं न कहीं अपने अपराध के लिये धिक्कारता है यह अलग बात है कि कुछ लोग उसे समझ पाते हैं कुछ नहीं।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://deepkraj.blogspot.com
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