अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं देष्टि हिनस्ति च।
कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मूढचेतसम्।।
हिन्दी में भावार्थ-जो मनुष्य शत्रु को मित्र बनाता है और मित्र से ही द्वेष कर उसे कष्ट देता है वह सदैव ही बुरे कर्म में लिप्त रहता है। ऐसे मनुष्य को मूढ़ कहा जाता है।
कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मूढचेतसम्।।
हिन्दी में भावार्थ-जो मनुष्य शत्रु को मित्र बनाता है और मित्र से ही द्वेष कर उसे कष्ट देता है वह सदैव ही बुरे कर्म में लिप्त रहता है। ऐसे मनुष्य को मूढ़ कहा जाता है।
अनाहूत प्रविशति अपुष्ठो बहु भाषते।
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः।।
हिन्दी में भावार्थ-मूढ़ चित्तवाला अधर्मी मनुष्य बिना आमंत्रण के ही कहीं भी पहुंच जाता है। बिना कहे ही बोलने लगता है तथा ऐसे लोग पर विश्वास करता है जो अविश्वसनीय होते हैं।
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः।।
हिन्दी में भावार्थ-मूढ़ चित्तवाला अधर्मी मनुष्य बिना आमंत्रण के ही कहीं भी पहुंच जाता है। बिना कहे ही बोलने लगता है तथा ऐसे लोग पर विश्वास करता है जो अविश्वसनीय होते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-कहा जाता है चतुर लोग अपने पत्ते आसानी से नहीं खोलते और न ही अपनी चाल चलने से पहले किसी को उसका पूर्वाभास होने देते हैं। सच तो यह है कि अधिकतर लोग जीवन में इसलिये नाकाम होते हैं क्योंकि वह अपने रहस्य दूसरों के सामने खोल देने के अलावा गैरों की बात पर आकर अपने ही लोगों पर अविश्वास करने लगते हैं। विदुर महाराज ऐसे लोगों को मूढ़ मानते हैं।
भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि यह संसार एक रंगमंच है और हर प्राणी यहां अभिनय करता है। ऐसे गूढ़ संदेशों का मनन करते रहना चाहिये ताकि वह दिमाग में स्थापित हो सकें। फूट डालो राज करो केवल अंग्रेजों की नीति नहीं है बल्कि हर सामान्य सांसरिक व्यक्ति यही करता है। किसी को अपना बनाकर उसका शोषण करने के लिये पहले उसे आत्मीयजनों और मित्र से अलग करने के लिये उसे भड़काया जाता है। यह समझाया जाता है कि उसके आत्मीय जन और मित्र तो गद्दार हैं। अगर कोई नया मित्र या कम परिचित ऐसा करता है तो यह समझ लेना चाहिये कि वह कोई चाल खेल रहा है। अगर ऐसा नहीं करते तो आप मूढ़ ही कहलायेंगे।
दूसरों के कहने में आकर निर्णय लेना या उसकी बताई राह पर चलना मूर्खत है। इसलिये किसी की बात सुनकर तत्काल न तो निर्णय लें और न ही अपनों के प्रति द्वेष पालकर उन्हें दूर होनेे दें। इसके अलावा कहीं भी बिना बुलाय न जायें और न ही बिना किसी की इच्छा के उसके सामने अपना ज्ञान बघारें। इसी में ही चतुराई है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://deepkraj.blogspot.com
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