न स क्षयो महाराज यः क्षयो बुद्धिमावहेत्।
क्षय सत्विह मन्तव्यो यं लब्धवा बहु नाशयेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-वास्तव में जो हानि या क्षय भविष्य में वृद्धि का कारण बने उसे लाभ ही समझना चाहिये। जिस लाभ से भविष्य में अनेक हानियां हों उसे तो हानि ही समझना चाहिये।
समृद्धा गुणतः केचिद् भविन्त धनतोऽपरे।
धनवृद्धान गुणंहीनान् धृतराष्ट्र विसर्जन।।
हिन्दी में भावार्थ-कुछ मनुष्य धनाभाव में जीते हुए भी गुणवान होते हैं और कुछ धन होते हुए भी गुण की दृष्टि से विपन्न होते हैं। इसलिय गुणहीन व्यक्ति का त्याग कर देना चाहिये।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अनेक ऐसे लाभ हैं जो बाद में हानि का कारण बनते हैं। जैसे शराब, सिगरेट तथा अन्य मादक पदार्थ सेवन के समय अच्छे लगते हैं पर बाद में उससे जो शारीरिक और मानसिक हानि होती है उसका आंकलन कोई नहीं करता। उसी तरह जुआ, लाटरी या सट्टा में जब किसी को प्रारंभ में ही लाभ होता है तो समझ लो वह गया काम से! उसके बाद जो तबाही का दौर शुरु होता है तो उसमें व्यसनी लोगों के परिवार तक बर्बाद हो जाते है। अनेक बार गलत ढंग से धन आने पर लोग खुश होते हैं कि ‘चलो आया तो सही’, पर जब उसके कारण ही फंसते हैं तो फिर वहां से निकलना कठिन हो जाता है। यही कारण है कि अपने पास आने वाले धन और समय समय पर होने वाले लाभों पर भी विचार करना चाहिये कि वह कहीं अनुचित मार्ग के अनुसरण से तो नहीं प्राप्त हुए।
दूसरी तरफ अपने साथ संपर्क रखने वाले लोगों पर भी दृष्टि रखना चाहिये। धनी लोगों में अहंकार अधिक होता है और गुण कम और साथ ही उनमें संघर्ष क्षमता का भी अभाव होता इसलिये संकट पड़ने पर वह मैदान छोड़कर भागते हैं यह कहते हुए कि ‘हमारे पास समय नहीं है’ और ‘हमें बहुत सारे दूसरे भी काम है’। अतः हमेशा निर्धन और गुणवान लोगों को अपने साथ रखना चाहिये। समय आने पर वह उपयोगी सिद्ध होते हैं इसलिये उनकी आवश्यकताओं का भी ध्यान रखते हुए यथासंभव उनकी पूर्ति करना चाहिये। गरीब नमक का कर्ज चुकाता है जबकि अमीर तो अधिकार की तरह खाकर भूल जाता है। कुछ अमीरों को तो यह लगता है कि हमारे पास पैसा है इसलिये लोग चमचागिरी कर खिला रहे हैं तो कुछ इसे चालाकी समझते हैं और समय आने पर कहते भी हैं कि ‘हमें पता था कि तुम हमारी मदद कुछ पाने की चाहत में कर रहे थे, पर हम भी चालाक हैं इसलिये नहीं करते तुम्हारा काम!’ इसलिये प्रयास यही करें कि किसी की दौलत, शौहरत या बाहुबल देखकर उसे मित्र न बनायें बल्कि यह देखें कि समय पड़ने पर वह काम आयेगा कि नहीं।
क्षय सत्विह मन्तव्यो यं लब्धवा बहु नाशयेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-वास्तव में जो हानि या क्षय भविष्य में वृद्धि का कारण बने उसे लाभ ही समझना चाहिये। जिस लाभ से भविष्य में अनेक हानियां हों उसे तो हानि ही समझना चाहिये।
समृद्धा गुणतः केचिद् भविन्त धनतोऽपरे।
धनवृद्धान गुणंहीनान् धृतराष्ट्र विसर्जन।।
हिन्दी में भावार्थ-कुछ मनुष्य धनाभाव में जीते हुए भी गुणवान होते हैं और कुछ धन होते हुए भी गुण की दृष्टि से विपन्न होते हैं। इसलिय गुणहीन व्यक्ति का त्याग कर देना चाहिये।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अनेक ऐसे लाभ हैं जो बाद में हानि का कारण बनते हैं। जैसे शराब, सिगरेट तथा अन्य मादक पदार्थ सेवन के समय अच्छे लगते हैं पर बाद में उससे जो शारीरिक और मानसिक हानि होती है उसका आंकलन कोई नहीं करता। उसी तरह जुआ, लाटरी या सट्टा में जब किसी को प्रारंभ में ही लाभ होता है तो समझ लो वह गया काम से! उसके बाद जो तबाही का दौर शुरु होता है तो उसमें व्यसनी लोगों के परिवार तक बर्बाद हो जाते है। अनेक बार गलत ढंग से धन आने पर लोग खुश होते हैं कि ‘चलो आया तो सही’, पर जब उसके कारण ही फंसते हैं तो फिर वहां से निकलना कठिन हो जाता है। यही कारण है कि अपने पास आने वाले धन और समय समय पर होने वाले लाभों पर भी विचार करना चाहिये कि वह कहीं अनुचित मार्ग के अनुसरण से तो नहीं प्राप्त हुए।
दूसरी तरफ अपने साथ संपर्क रखने वाले लोगों पर भी दृष्टि रखना चाहिये। धनी लोगों में अहंकार अधिक होता है और गुण कम और साथ ही उनमें संघर्ष क्षमता का भी अभाव होता इसलिये संकट पड़ने पर वह मैदान छोड़कर भागते हैं यह कहते हुए कि ‘हमारे पास समय नहीं है’ और ‘हमें बहुत सारे दूसरे भी काम है’। अतः हमेशा निर्धन और गुणवान लोगों को अपने साथ रखना चाहिये। समय आने पर वह उपयोगी सिद्ध होते हैं इसलिये उनकी आवश्यकताओं का भी ध्यान रखते हुए यथासंभव उनकी पूर्ति करना चाहिये। गरीब नमक का कर्ज चुकाता है जबकि अमीर तो अधिकार की तरह खाकर भूल जाता है। कुछ अमीरों को तो यह लगता है कि हमारे पास पैसा है इसलिये लोग चमचागिरी कर खिला रहे हैं तो कुछ इसे चालाकी समझते हैं और समय आने पर कहते भी हैं कि ‘हमें पता था कि तुम हमारी मदद कुछ पाने की चाहत में कर रहे थे, पर हम भी चालाक हैं इसलिये नहीं करते तुम्हारा काम!’ इसलिये प्रयास यही करें कि किसी की दौलत, शौहरत या बाहुबल देखकर उसे मित्र न बनायें बल्कि यह देखें कि समय पड़ने पर वह काम आयेगा कि नहीं।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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