समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Thursday, February 11, 2010

पतंजलि योग दर्शन-अनुष्ठान की तरह है योग साधना (patanjali yog darshan-yog ek anushthan)

योगांगनुष्ठानादशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्तिराविवेकख्यातेः।।
हिन्दी में भावार्थ-
योग साधना के द्वारा अंगों का अनुष्ठान करने से अशुद्धि का नाश होने पर जो विवेक का प्रकाश फैलता है उससे निश्चित रूप से ख्याति मिलती है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-पतंजलि योग शास्त्र में न केवल योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान की व्याख्या है बल्कि उसका महत्व भी दिया गया है।  अक्सर लोग योगासनों को सामान्य व्यायाम कहकर प्रचारित करते हैं जबकि इसे पतंजलि वैसा ही अनुष्ठान मानते हैं जैसे कि द्रव्य द्वारा किये जाने वाले यज्ञ और हवन।
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण भी योग साधना को एक तरह से यज्ञ मानने का संदेश देते हैं। अगर उनका आशय समझा जाये तो एक तरह से वह अपने भक्तों से इसी यज्ञ की अपेक्षा करते हुए कहते हों कि ‘मुझे योग यज्ञ से उत्पन्न ऊर्जा ही समर्पित करें।’
भगवान श्रीकृष्ण का आशय समझा जाये तो वह  यज्ञ से उत्पन्न अग्नि से ही संतुष्ट होते हैं।  यह यज्ञ सामग्री एक तरह से हमारा पसीना है जिससे देह के विकार निकलकर बाहर आकर नष्ट होते हैं और फिर प्राणयाम तथा ध्यान के संयोग से  उत्पन्न अमृत से  संपन्न हृदय के भाव  हम मंत्रोच्चार के द्वारा परमात्मा को प्रसाद की तरह चढ़ाते हैं।  सर्वशक्तिमान की इच्छा यही होती है कि उसका हर बंदा प्रसन्न और शुद्ध भाव से युक्त हो। योगसाधना उसका एक मार्ग है।  जो लोग योग साधना करते हैं उनको किसी अन्य प्रकार के अनुष्ठान की तो आवश्यकता ही नहीं रह जाती क्योंकि अपने मन, विचार, और बुद्धि की शुद्धि करने से स्वयं ही भक्ति का भाव पैदा होता है।  यह प्रक्रिया इतनी स्वाभाविक होती है कि मनुष्य को फिर किसी अन्य प्रकार से भक्ति करना सुहाता ही नहीं है क्योंकि पूरा दिन उसका मन और शरीर प्रफुल्लित भाव से विचरण करता है और रात्रि को विश्रामकाल प्रतिदिन मोक्ष प्राप्त करते हुए व्यतीत हो जाता है।
सबसे बड़ा लाभ यह है कि योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान से हमारी शरीर और मन की अशुद्धि दूर होने के बाद हमारे कर्म व्यवहार में जो आकर्षण उत्पन्न होता है उससे ख्याति फैलती है। इतना ही नहीं चेहरे पर तेजस्वी भाव देखकर दूसरे लोग प्रभावित भी होते हैं।  
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

No comments:

विशिष्ट पत्रिकायें