दाग जू लागा नील का, सौ मन साबुन धोय
कोटि जतन परमोघिये, कागा हंस न होय
नील का दाग लग जाने पर, उसे सौ मन साबुन से धोने पर भी वह साफ नहीं किया जा सकता इसी प्रकार कौवा
करोडों प्रयास कर ले वह हंस नहीं बन सकता।
संकलक,लेखक संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर(मध्यप्रदेश) Writer and Editor-Deepak Raj Kukreja, BharatDeep, Gwalior (Madhya Pradesh)
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