तन को जोगी सब करै , मन को करै न कोय
सह्जै सब सिधि पाइये, जो मन जोगी होय
सह्जै सब सिधि पाइये, जो मन जोगी होय
वेश धारण कर शरीर को योगी जैसा बनाते हैं पर मन को वश कर कोई योगी नहीं बनता। यदी कोई मन से भी योगी हो जाये तो साज़-भाव से सब कल्याण मयी सिद्धियाँ प्राप्त कर सकता है
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