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Monday, November 14, 2011

मनुस्मृति-नियमों की अपेक्षा यम का पालन करें (manu smruti-yam aur niyan)

         भारतीय आध्यात्मिक दर्शन में यम और नियम का बहुत महत्व है। योग शास्त्र के आठ अंगों में यम पहले तथा नियम बाद में आता है। यम के अंतर्गत अहिंसा, सत्य अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह आता है। यम का संबंध हमारे आत्मिक संकल्प से है। हमें अपने अंदर अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य तथा त्याग का भाव इस तरह स्थापित कर लेना चाहिए कि उनका विरोधी विचार तो कभी मस्तिष्क में ही न आये। जिस तरह यह संसार परमात्मा के संकल्प से स्थित है वैसे ही हमारा संसार भी शुद्ध संकल्प पर स्थित होने से सुखमय हो जाता है। शौच, संतोष तप, स्वाध्याय तथा प्राणिधान जैसे नियम भी अपनाये जाने चाहिए पर इसका यह आशय कतई नहीं है कि यम से परे होकर संसार में विचरें। कुछ लोग दिखावे के लिये कर्मकांड करते हैं पर उनका हृदय शुद्ध नहीं होता। ऐसे लोग धार्मिक दिखने का पाखंड करते हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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यमान्सेवेत सततं न नित्यं नियमान्बुधः।
यमान्यतत्यकुर्वाणो नियमन्केवलान्भजन्।।
              ‘‘मनुष्य को नियमों की अपेक्षा यमों का पालन करना चाहिए। यमों की उपेक्षा कर नियमों को अपनाने वाला शीघ्र पतन को प्राप्त होता है।’’
              देखा जाये तो यह संसार ही संकल्प का खेल है। जैसा संकल्प जो मन में करता है वैसा ही संसार उसके सामने आता है। यहां अपनी गलतियों से सीखने वाले लोग कम ही है मगर अपनी असफलता के लिये दूसरों को दोष दे के लिये सभी तत्पर रहते हैं। अने लोग तो ऐसे हैं जो सकाम भाव से भक्ति करते हैं पर जब फल नहीं मिलता तो अपने ही इष्ट  को कोसने लगते हैं। कुछ लोग तो रोज इधर से उधर अपने सांसरिक कर्म में फल की इच्छा के लिये सिद्धों के द्वार पर जाकर हाजिरी लगाते हैं। नतीजा यह है कि पूरे विश्व में अशांति का दौर चल रहा है। भौतिक साधनों की उपलब्धि के लिये लोगों ने संकल्प धारण कर रखा है पर चाहते यही हैं कि समाज संवेदनशील हो। यह संभव नहीं है। हमारा यम के प्रति झुकाव होना चाहिए। अपने अंदर शुद्ध विचार और संकल्प होने पर यह संसार अत्यंत सुखानुभूति करा सकता है पर इसके लिये यह जरूरी है योगसाधना के माध्यम से उसे समझा जाये।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Friday, September 16, 2011

भर्तृहरि नीति शतक-जितना धन भाग्य में है उससे ज्यादा नहीं मिलता (bhritrihari neeti shatak-bhagya aur dhan, luck and money)

            मनुष्य के जीवन में धन का होना अनिवार्य है पर उसके लिये उसे पागलों की तरह इधर उधर भागकर अपना समय बर्बाद करना व्यर्थ है। यह सही है कि मनुष्य को अपनी जीविका के लिये प्रयास करना चाहिए। त्रिगुणमयी माया उसे     इस बात के लिये बाध्य भी करती है कि वह सांसरिक कर्म में लिप्त होकर समय बिताये। सामान्य मनुष्य माया के जाल में फंसकर केवल उसे इर्दगिर्द चक्कर काटते हुए जीवन बर्बाद कर देते हैं। जिनके पास पैसा अधिक नहीं होता वह अधिक पाने के चक्कर में रहते हैं तो जिनके पास अधिक धन आ गया वह अपने कर्मफल का प्रतीक बताते हुए मदांध हो जाते हैं। खेलती माया है पर आदमी सोचता है कि मैं खेल रहा हूं।
भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि
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यद्धात्रा निजभालपट्ट लिखित स्तोकं महद्वा धनं तत्प्राप्तनोति मरुस्थलेऽपि नितरां मेरी ततोनाधिकम्।
तद्धीरो भव वित्तवत्सु कृपणां वृत्ति वुथा सा कृथाः कृपे पश्य पयोनिधावपि घटो गृह्णाति तुल्यं जलम्।।
            ‘परमात्मा ने जिस मनुष्य के हाथ में थोड़ा धन भी लिखा है तो वही प्राप्त होता है। उससे अधिक की प्राप्ति तो सोने के सुमेरु पर्वत पर जाने से भी नहीं होती। इसलिये जितना मिले उसी में संतोष करते हुए कभी धनिकों में सामने दीन नहीं बनना चाहिए। याद रखो कुंऐं में डालो अथवा समंदर में, जितना घड़ा होता है उतना ही पानी उसमें मिलता है।’’
             आदमी के पास जब धन अल्प मात्रा में होता है तो वह धनिकों के मुख की तरफ ताकता है। इतना ही नहीं कोई धनी कुछ देता हो या नहीं वह उसकी तरफ ऐसे देखता है जैसे कि वह समाज का मालिक हो और कभी न कभी उसका भला करेगा। सच बात तो यह है कि अल्प धनिक कभी यह बात नहीं सोचते कि जिन लोगों ने धन कमाया ही इसलिये है कि वह समाज पर राज्य कर सकें वह कभी स्वयं व्यय कर प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं करते क्योंकि उनको लगता है कि धन कम होगा तो उनकी सम्मान कम होगा या फिर लोग उनको लाचार समझेंगे। जहां तक किसी का भला करने का सवाल है तो समय पर पड़ने पर कुछ लोग अनेपक्षित रूप से मदद कर जातेम हैं और जिनसे अपेक्षा होती है वह मुंह फेर कर चल देते हैं। परोपकार करना एक ऐसी प्रवृत्ति है जो अल्पधनिकों में अधिक पाई जाती है जिनसे समान वर्ग वाले लोग कभी अपेक्षा नहीं करते।
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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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