भारतीय आध्यात्मिक दर्शन में यम और नियम का बहुत महत्व है। योग शास्त्र के आठ अंगों में यम पहले तथा नियम बाद में आता है। यम के अंतर्गत अहिंसा, सत्य अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह आता है। यम का संबंध हमारे आत्मिक संकल्प से है। हमें अपने अंदर अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य तथा त्याग का भाव इस तरह स्थापित कर लेना चाहिए कि उनका विरोधी विचार तो कभी मस्तिष्क में ही न आये। जिस तरह यह संसार परमात्मा के संकल्प से स्थित है वैसे ही हमारा संसार भी शुद्ध संकल्प पर स्थित होने से सुखमय हो जाता है। शौच, संतोष तप, स्वाध्याय तथा प्राणिधान जैसे नियम भी अपनाये जाने चाहिए पर इसका यह आशय कतई नहीं है कि यम से परे होकर संसार में विचरें। कुछ लोग दिखावे के लिये कर्मकांड करते हैं पर उनका हृदय शुद्ध नहीं होता। ऐसे लोग धार्मिक दिखने का पाखंड करते हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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यमान्सेवेत सततं न नित्यं नियमान्बुधः।
यमान्यतत्यकुर्वाणो नियमन्केवलान्भजन्।।
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यमान्सेवेत सततं न नित्यं नियमान्बुधः।
यमान्यतत्यकुर्वाणो नियमन्केवलान्भजन्।।
‘‘मनुष्य को नियमों की अपेक्षा यमों का पालन करना चाहिए। यमों की उपेक्षा कर नियमों को अपनाने वाला शीघ्र पतन को प्राप्त होता है।’’
देखा जाये तो यह संसार ही संकल्प का खेल है। जैसा संकल्प जो मन में करता है वैसा ही संसार उसके सामने आता है। यहां अपनी गलतियों से सीखने वाले लोग कम ही है मगर अपनी असफलता के लिये दूसरों को दोष दे के लिये सभी तत्पर रहते हैं। अने लोग तो ऐसे हैं जो सकाम भाव से भक्ति करते हैं पर जब फल नहीं मिलता तो अपने ही इष्ट को कोसने लगते हैं। कुछ लोग तो रोज इधर से उधर अपने सांसरिक कर्म में फल की इच्छा के लिये सिद्धों के द्वार पर जाकर हाजिरी लगाते हैं। नतीजा यह है कि पूरे विश्व में अशांति का दौर चल रहा है। भौतिक साधनों की उपलब्धि के लिये लोगों ने संकल्प धारण कर रखा है पर चाहते यही हैं कि समाज संवेदनशील हो। यह संभव नहीं है। हमारा यम के प्रति झुकाव होना चाहिए। अपने अंदर शुद्ध विचार और संकल्प होने पर यह संसार अत्यंत सुखानुभूति करा सकता है पर इसके लिये यह जरूरी है योगसाधना के माध्यम से उसे समझा जाये।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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