सरकारी अस्पताल में जब चिकित्सक हड़ताल करते हैं तो सबसे अधिक कमजोर आयवर्ग
के लोग प्रभावित होते हैं। उसी तरह जब सरकारी विद्यालयों में शिक्षक हड़ताल करते
हैं तब इसी वर्ग के छात्र परेशान होते हैं।
यह आर्थिक वैश्वीकरण का परिणाम है कि जिन गरीबों के कल्याण के लिये धनवादी
नीतियां लायी गयीं वही उनकी शत्रु हो गयी हैं।
एक समय था जब सरकारी अस्पताल और विद्यालय जनमानस की दृष्टि में प्रतिष्ठित
थे पर समय के साथ बढ़ती आर्थिक असमानता ने समाज में गरीब तथा अमीर के बीच विभाजन कर
दिया है । यह विभाजन अमीरों का निजी तथा गरीबों का सरकारी क्षेत्र के प्रति मजबूरी
वश झुकाव के रूप में स्पष्टतः दिखाई देता है। हमें याद है जब पहले बच्चों को
शासकीय विद्यालयों में भर्ती इस विचार से कराया जाता था कि वहां पढ़ाई अच्छी होती
है। उसी तरह इलाज भी सरकारी अस्पतालों में वहां के चिकित्सक तथा नर्सों के प्रति
विश्वास के साथ कराया जाता था। अब अल्प धनी
सरकार और अधिक धनी निजी क्षेत्र पर निर्भर रहने लगा है। सरकारी अस्पतालों में कभी जाना हो तो वहां इतनी
गंदगी मिलती है कि लाचार गरीब का रहना तो सहज माना जा सकता है पर वेतनभोगी नर्स, कंपाउंडर और डाक्टर किस
तरह वहां दिन निकालते होंगे यह प्रश्न मन में उठता ही है। कहा जाता है कि जिस
वातावरण में आदमी रहता है उसका उस पर प्रभाव पड़ता ही है। ऐसे गंदे वातावरण में चिकित्सा कर्मी अपना मन
अच्छा रख पायें यह आशा करना व्यर्थ है। यही स्थिति सरकारी विद्यालयों में है। देश
में स्वच्छता अभियान चल रहा है पर अभी हमें अस्पतालों और विद्यालयों में उसके आगमन
की प्रतीक्षा है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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