21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर मनाने की जिस तरह तैयारी चल रही है उससे तो यह लगता है कि इसमें केवल आसन तथा प्राणायाम को ही योग का पर्याय मान लिया गया है। पतंजलि योग विज्ञान के अनुसार यम, नियम, प्रत्याहार, आसन, प्राणायाम, ध्यान, धारण तथा समाधि आठ भाग है पर भारत के पेशेवर धार्मिक विद्वान हर भाग का अलग प्रचार करते हैं। यहां तक कि समाधि की चर्चा इस तरह की जाती है जैसे कि वह येाग से इतर कोई कारनामा हो। हमारी दृष्टि से भारतीय योग विद्या आठों भागों पर व्यापक चर्चा किया जाना जरूरी है। देखा यह जा रहा है कि आष्टांग योग के मात्र दो भागों आसन और प्राणायाम पर ही चर्चा कर लोगों को संकीर्ण जानकारी दी जा रही है। । हमारा मानना है कि 21 जून विश्व अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर पतंजलि योग सूत्रों के साथ ही श्रीमद्भागवत गीता के ज्ञान तथा विज्ञान के सूत्रों की भी चर्चा करना आवश्यक है। हमने अनेक नाम सुने हैं-राजयोग, विद्या योग और ज्ञान योग आदि-पर इनमें सहज योग ही इसका मूल रूप है। श्रीमद्भागवत इसका सबसे प्रमाणिक ग्रंथ है।
जब मनुष्य योग साधना से सहज भाव प्राप्त कर लेता है तब वह सांसरिक विषयों में शक्ति, आत्मविश्वास तथा नैतिकता के साथ जुड़ता है। वह सहजता से उपलब्धियां प्राप्त करता है पर उसे अहंकार नहीं आता। कोई उसे अपने नैतिक और धर्म पथ से विचलित नहीं कर सकता। आसनों के समय आंतरिक रूप से देह की आंतरिक गतिविधियों पर ध्यान रखना चाहिये। प्राणायाम के समय भी अपने प्राणों को भृकुटि पर केंद्रित कर पूरी देह पर दृष्टिपात करने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। यह सही है कि आसन तथा प्राणायाम से देह में विशेष प्रकार की स्फूर्ति का संचार होता है पर उसके स्थाई लाभ के लिये आठों भागों का ज्ञान होना आवश्यक है।
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