हम कहते हैं कि देश में राजकीय क्षेत्र में बहुत भ्रष्टाचार व्याप्त है।
कुछ लोग तो अपने देश इस प्रकार के भ्रष्टाचार से इतने निराश होते हैं कि वह देश के
पिछड़ेपन को इसके लिये जिम्मेदार मानते हैं। इतना ही नहीं कुछ लोग तो दूसरे देशों
में ईमानदारी होने को लेकर आत्ममुग्ध तक हो जाते हैं। उन्हें शायद यह पता नहीं कि कथित रूप से
पश्चिमी देशों में बहुत सारा भ्रष्टाचार तो कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है
इसलिये उसकी गिनती नहीं की जाती वरना भ्रष्टाचार
तो वहां भी बहुत है। हमारा अध्यात्मिक
दर्शन मानता है कि जिन लोगों के पास राज्यकर्म करने का जिम्मा है उनमें भी सामान्य
मनुष्यों की तरह अधिक धन कमाने की प्रवृत्ति होती है और राजकीय अधिकार होने से वह
उसका गलत इस्तेमाल करने लगते हैं। यह स्वाभाविक है पर राज्य प्रमुख को इसके प्रति
सजग रहना चाहिये। उसका यह कर्तव्य है कि
वह अपने कर्मचारियों की गुप्त जांच कराता रहे और उनको दंड देने के साथ ही अन्य
कर्मचारियों को अपना काम ईमानदारी से काम करने के लिये प्रेरित करे।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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राज्ञो हि रक्षाधिकृताः परस्वादायिनः शठाः।
भृत्याः भवन्ति प्रायेण तेभ्योरक्षेदिमाः प्रजाः।।
हिन्दी में भावार्थ-प्रजा के लिये राज्य कर्मचारी अधिकतर अपने वेतन के
अलावा भी कमाई क्रने के इच्छुक रहते हैं अर्थात उनमें दूसरे का माल हड़पने की
प्रवृत्ति होती है। ऐसे राज्य कर्मचारियों से प्रजा की रक्षा के लिये राज्य प्रमुख
को तत्पर रहना चाहिये।
ये कार्यिकेभ्योऽर्थमेव गृह्यीयु: पापचेतसः।
तेषां सर्वस्वामदाय राजा कुर्यात्प्रवासनम्।।
हिन्दी में भावार्थ-प्रजा से किसी कार्य के लिये अनाधिकार धन लेने वाले
राज्य कर्मचारियों को घर से निकाल देना चाहिये।
उनकी सारी संपत्ति छीनकर उन्हें देश से निकाल देना चाहिये।
हम आज के युग में जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था को देख रहे हैं उसमें
राज्यप्रमुख स्थाई रूप पद पर नहीं रहता। उसका कार्यकाल पांच या छह वर्ष से अधिक
नही होता। ऐसे में पद पर आने पर उसके पास
राजकाज को समझने में एक दो वर्ष तो वैसे ही निकल जाते हैं फिर बाकी समय उसे यह
प्रयास करना होता है कि वह स्वयं एक बेहतर राज्य प्रमुख कहलाये। दूसरी बात यह भी है कि राज्य कर्मचारियेां के
विरुद्ध कार्यवाही सहज नहीं रही। हालांकि छोटे कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है पर राज्य के
उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को स्वयं भी
तो ईमानदार होना चाहिये। उच्च पदों पर
बैठे राज्य कर्मचारियों की शक्ति इतनी होती है कि वह राज्य प्रमुख को भी नियंत्रित
करते हैं। राज्य प्रमुख अस्थाई होता है जबकि उच्च पदों पर बैठे अधिकारी स्थाई होते
हैं। स्थिति यह है कि अनेक देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था के रहते वहां के
बुद्धिजीवी इन्हीं स्थाई उच्च अधिकारियों
को आज का स्थाई राजा मानते हैं। राज्य
प्रमुख बदलते हैं पर ऐसे उच्च अधिकारी
स्थाई रहते हैं। कार्य का अनुभव होने से वह राज्य प्रमुख के पद का पर्दे के पीछे
से संचालन करते हैं।
एक स्थिति यह भी है कि आज के लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव की प्रक्रिया
अपनायी जाती है। जिसमें विजय प्राप्त करने वाला ही राज्य प्रमुख बनता है। चुनाव जीतने वालों में राजनीति शास्त्र का
ज्ञान हो यह अनिवार्य नहीं है। यही कारण
है कि येनकेन प्रकरेण सत्ता सुख लेने की चाहत वाले लोग राजनीति क्षेत्र में आ जाते
हैं। इनमें से कई लोग बड़े पद पर बैठकर भी अपनी इच्छा का काम नहीं कर पाते। आधुनिक
लोकतंत्र में राजकीय अधिकारी का पद सुरक्षित है जबकि चुनाव के माध्यम से चुने गये
लोकतांत्रिक प्रतिनिधि की वर्ष सीमा तय होती है। इस कारण कुछ ही लोकतांत्रिक प्रतिनिधि ऐसे होते
हैं जो मुखर होकर काम करते हैं जबकि सामान्यतः तो केवल अपने पद पर बने रहने से ही
संतुष्ट रहते हैं। इस स्थिति ने उन
राज्यकर्मियों को आत्मविश्वास दिया है कि वह चाहे जो करें। अनेक राज्यकर्मी तो प्रजा को काम न कर चाहे जो
करने की धमकी तक देते हैं। यही कारण है कि
अनेक देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था के होते भी उस प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है।
हमारे देश में अध्यात्मिक दर्शन राजस कर्म की मर्यादा और शक्ति बखान करता
है। मनुष्य स्वयं सात्विक भले हो पर अगर
उसके जिम्मे राजस कर्म है तो वह उसे भी दृढ़ता पूर्व निभाये यही बात हमारा
अध्यात्मिक दर्शन कहता है। हमारे
अध्यात्मिक दर्शन को शायद इसलिये ही शैक्षणिक पाठ्यक्रम से दूर रखा गया है क्योंकि
उसके अपराधियों के साथ ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध भी कड़े दंड का प्रावधान किया
गया। हालांकि अब देश में चेतना आ रही है
और अनेक जगह भ्रष्ट राज्यकर्मियों के विरुद्ध कार्यवाही होने लगी है। अनेक जगह तो
भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों की संपत्ति जब्त की जाने लगी है पर अभी भी देश
में भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक बड़े अभियान की आवश्यकता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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