भारतीय योग विधा के बारे में अनेक लोग अनेक तरह के प्रचार करते हैं पर यह बात कम ही लोग बताते हैं कि योग साधना के अभ्यास से मनुष्य को अपनी देह और आत्मा के बीच के अंतर का आभास स्वतः होने लगता है। अज्ञानी मनुष्य देह को सर्वस्व मानकर पूरा जीवन नष्ट कर देता है जबकि ज्ञानी योग साधक अपने अभ्यास से देह और आत्मा के साथ ही परमात्मा के तत्व का भी आभास कर जीवन मजे से गुजारते हैं
सामान्य मनुष्य आंखों से देखते हैं पर दृश्य के संपूर्ण तत्व उनमें प्रविष्ट नहीं होते। अच्छे दृश्य का जहां वह पूरा आनंद नहीं उठा पाते वही बुरे दृश्य उनको अंदर तक हिला देते हैं। उसी तरह हर आदमी कान से अपनी प्रशंसा के साथ ही अपने को अच्छी बातें सुनना चाहता है। तत्व ज्ञान की बात सुनने की बजाय वह अपनी वाणी से सांसरिक बातों की बखान करता है।
इस विषय पर संत कबीर कहते हैं कि
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आंखि न देखि बावरा, शब्द सुनै नहिं कान।
सिर के केस उज्वल भये, अबहुं निपट अज्ञान।।
‘‘संसार के लोगों को अपनी देह के संचालन का ही ज्ञान नहीं है। इन पगली आंखों से बावला नहीं देखता और न ही कानों से अच्छी बात सुनता है। सिर के बाल भी सफेद हो जाने पर भी लोग अज्ञानी बने रहते हैं।’’
नर नारायन रूप हैं तू मति जानै देह।
जो समझे तो समझ ले, खलक पलक में खेह।।
‘हे मनुष्य! तुम साक्षात नारायण हो इसलिये अपने को केवल देह मत जान। समझना है अपनी देह से प्रथक उस परमात्मा को समझ जो तेरी आत्मा का आधार है।’’
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आंखि न देखि बावरा, शब्द सुनै नहिं कान।
सिर के केस उज्वल भये, अबहुं निपट अज्ञान।।
‘‘संसार के लोगों को अपनी देह के संचालन का ही ज्ञान नहीं है। इन पगली आंखों से बावला नहीं देखता और न ही कानों से अच्छी बात सुनता है। सिर के बाल भी सफेद हो जाने पर भी लोग अज्ञानी बने रहते हैं।’’
नर नारायन रूप हैं तू मति जानै देह।
जो समझे तो समझ ले, खलक पलक में खेह।।
‘हे मनुष्य! तुम साक्षात नारायण हो इसलिये अपने को केवल देह मत जान। समझना है अपनी देह से प्रथक उस परमात्मा को समझ जो तेरी आत्मा का आधार है।’’
कहने का अभिप्राय है कि देह से अलग आत्मा और आत्मा के अस्तित्व का ज्ञान होने पर जीवन का आनंद कम होने की बजाय बढ़ जाता है। जिन लोगों के पास अध्यात्मिक ज्ञान नहीं है वह अपने बाल सफेद हो जाने पर भी अज्ञानी बने रहते हैं। कुछ लोगो को लगता है कि तत्वज्ञान से आदमी जीवन से विरक्त हो जाता है यह बात गलत है। दरअसल तत्वज्ञानी जीवन में व्यर्थ चेष्टा, प्रमाद और निंदा से परे रहते हैं तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि वह असांसरिक लोग हैं।
लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप',ग्वालियर
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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