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Saturday, May 21, 2011

रिश्वत लेना नर का मांस खाने के समान-श्रीगुरुवाणी साहिब से संदेश (corruption anti religion work and crime-acording shri gurubani)

        वैसे राजकाज से जुड़े लोगों का भ्रष्टाचार हमारे देश के लिये नयी बात नहीं है पर पहले यह कम था। अब तो यह स्थिति यह है कि राजकाज से जुड़े लोग जनहित की बात सोचने से अधिक अपने स्वार्थ पर अधिक ध्यान देते हैं। रिश्वत लेना उनके लिये कमाई है। कहने को तो हमारे देश में धर्मभीरु लोगों की कमी नहीं है पर सवाल यह उठता है कि उसके अनुसार आचरण कितने लोग करते हैं?
       स्थिति यह है कि दो नंबर की कमाई तथा रिश्वत से उगाही करने वाले लोग भी धर्म के कार्यक्रम आयोजित करते दिखते हैं। समाज सेवा का आडम्बर करते हुए अनेक लोग तो महान मायापति हो गये हैं। जहां धर्म की बात आये तो वहां ऐसे संवदेनशील हो जाते हैं जैसे कि हमेशा ही अपनी आस्था के साथ जीते हों पर सच यह है कि धर्म का दिखावा और समाज की रक्षा की बात वही लोग अधिक करते हैं जिनका इसमें अपना व्यवसायिक लाभ होता है।
      श्रीगुरुग्रंथ साहिब में रिश्वत और भ्रष्टाचार की निंदा करते हुए कहा गया है कि
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   ‘माणसखाणे करहि निवाज।
    छुरी बगाइन तिन गलि नाग।।'
       ‘‘रिश्वत खाने वाला मनुष्य नरभक्षी एवं दूसरे के गले पर छुरी चलाने वाला कसाई जैसे होता है।’’
            देश में अनेक लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन कर रहे हैं पर सवाल यह है कि उनका स्वयं का आचरण कितना प्रमाणिक है? कई बार तो ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार से तंग लोगों का मन बहलाने के लिये इस तरह के आंदोलन प्रयोजित वही लोग कर रहे हैं जिनकी कमाई के स्त्रोत अपवित्र होने के साथ अज्ञात हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि धर्म के नाम पर दिये जा रहे दान को आस्था के कारण पवित्र माना जाता है जबकि हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार धर्म के लिये व्यय होने वाले धन के स्त्रोत भी पवित्र होना चाहिए। एक मजेदार बात यह है कि धर्म के ठेकेदारों से जब उनके धन का स्त्रोत पूछा जाता है तो कहते हैं कि ‘यह तो भगवान के भक्तों का दिया हुआ है?’’
        पहली बात तो उस धन का स्त्रोत धर्म के ठेकेदारों को स्वयं नहीं पता दूसरा यह कि वह उस धन से अर्जित संपत्ति के स्वामीपन का अहंकार भी पालते हैं। इसी कारण धर्म के नाम पर अनेक ट्रस्ट बन गये हैं जबकि कहीं न कहीं उनका स्वामित्व निजी होने के साथ ही उनके कार्यक्रम भी व्यवसाय के सिद्धांतों पर आधारित हैं। इतना ही नहीं इन ट्रस्टों के भक्ति स्थलों में प्रवेश के लिये भी पैसा लिया जाता है जो कि रिश्वत का ही रूप है। यही कारण है कि हम अपने देश में इस समय धर्म के नाम पर शोरशराबा खूब देख रहे हैं जबकि आचरण की दृष्टि से पूरा समाज ही विपरीत मार्ग पर जाता दिखता है।
लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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