वैश्विक उदारीकरण के चलते विश्व में उधार लेकर उपभोग की वस्तुऐं क्रय करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। हमारे देश में तो वैसे ही रोजगार की कमी रहती है उस पर आजकल आधुनिक सुख सुविधाओं की वस्तुऐं जुटाने के लोग इतने आतुर हो जाते हैं कि अपने आय के साधनों की परवाह ही नहीं करते जिससे उनके यहां घरेलु आर्थिक संकट बिना बुलाये मेहमान की तरह हमेशा विराजमान रहता है। इसके अलावा कामकाज के आधुनिक साधनों की वजह से वैसे भी श्रम का उपयोग कम होने से बेरोजगारी बढ़ रही है जिसकी वजह से हमारे यहां युवाओं के लिये विकास का मार्ग अवरुद्ध हो रहा है। मगर उनको भी मोबाइल, कंप्यूटर, गाड़ी और अन्य सामान चाहिए जिससे उनमें से अनेक लोग अपराध की तरफ चले जाते हैं।
इस विषय पर चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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अनालोक्य व्ययं कर्ता ह्मनाथ‘ कलहप्रियः।
आतुरः सर्वक्षेत्रेषु नरः शीघ्रं विनश्यति।।
‘‘बिना विचार किये अपनी आय से अधिक व्यय करने वाला, साथियों के बिना ही अपना सामूहिक अभियान या युद्ध प्रारंभ करने वाला तथा अनेक स्त्रियों में रुचि रखने वाला व्यक्ति शीघ्र ही प्राप्त होता है।’’
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अनालोक्य व्ययं कर्ता ह्मनाथ‘ कलहप्रियः।
आतुरः सर्वक्षेत्रेषु नरः शीघ्रं विनश्यति।।
‘‘बिना विचार किये अपनी आय से अधिक व्यय करने वाला, साथियों के बिना ही अपना सामूहिक अभियान या युद्ध प्रारंभ करने वाला तथा अनेक स्त्रियों में रुचि रखने वाला व्यक्ति शीघ्र ही प्राप्त होता है।’’
हम अगर आज अपने समाज की स्थिति पर नज़र डालें तो ऐसा लगता है कि वह एक पतनशील समाज हो गया है। लोभ, लालच और अहंकार के वश लोग एक दूसरे से भावनात्मक रूप से कट गये हैं और रिश्ते केवल नाम के रह गये हैं। उससे भी बदतर हालत यह है कि आजकल कोई आदमी संकट पड़ने पर किसी पर भरोसा नहंी करता। यही कारण है कि लोग कर्ज लेकर पहले तो घी पी लेते हैं पर जब मर्ज बढ़ जाता है तो उनको अपने आर्थिक संकट से उबरने का कोई मार्ग नहीं दिखता। इसी कारण हमारे देश में आत्महत्या की घटनायें बढ़ गयी हैं। कहीं कहीं तो ऐसा भी होता है कि परिवार का मुखिया अपने पूरे परिवार को जहर देकर बाद में स्वयं भी खा लेता है। वैसे भी आजकल प्रचार माध्यमों ने आम आदमी की चिंत्तन क्षमता को हर लिया है। एक तरफ वह उपभोग की वस्तुऐं के लिये प्रेरित करते है तो दूसरी तरफ ऋण मार्ग का पता भी बताते हैं। ऐसे में जो ज्ञानी और व्यवहारिक लोग हैं वही अपना मानसिक संतुलन रख पाते हैं वरना तो पतन के मार्ग पर चलने को सभी आतुर दिखते हैं।
लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप',Gwalior
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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