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Thursday, May 13, 2010

संत कबीर के दोहे-बियावन वन के फूल बिना काम किसी के काम आये मुरझा जाते हैं

हाथी चढि के जो फिरै, ऊपर चंवर ढुराय
लोग कहैं सुख भोगवे, सीधे दोजख जाय

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि तो हाथी पर चढ़कर अपने ऊपर चंवर डुलवाते हैं और लोग समझते हैं कि वह सुख भोग रहे तो यह उनका भ्रम है वह तो अपने अभिमान के कारण सीधे नरक में जाते हैं।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जोरे बड़ मति नांहि
जैसे फूल उजाड़ को, मिथ्या हो झड़ जांहि

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि आदमी धन, पद और सम्मान पाकर बड़ा हुआ तो भी क्या अगर उसके पास अपनी मति नहीं है। वह ऐसे ही है जैसे बियावन उजड़े जंगल में फूल खिल कर बिना किसी के काम आये मुरझा जाता है।
वर्तमान संदर्भ में सम्पादकीय व्याख्या-समय ने ऐसी करवट ली है कि इस समय धर्म और जनकल्याण के नाम पर भी व्यवसाय करने का चलन   हो गया है। इस मायावी दुनियां में यह पता ही नहीं लगता कि सत्य और माया है क्या? जिसे देखो भौतिकता की तरफ भाग रहा है। क्या साधु और क्या भक्त सब दिखावे की भक्ति में लगे हैं। राजा तो क्या संत भी अपने ऊपर चंवर डुलवाते हैं। उनको देखकर लोग वाह-वाह करते हैं। सोचते हैं हां, राजा और संत को इस तरह रहना चाहिये। सत्य तो यह है कि इस तरह तो  इस तरह लोग भी भ्रम में हो जाते हैं जिनके पास थोड़ी भी शक्ति और पद है। साथ ही  उनमें अहंकार आ जाता है और दिखावे के लिये सभी धर्म के कर्मकांडों का निर्वहन  करते हैं और फिर अपनी मायावी दुनियां में अपना रंग भी दिखाते हैं। ऐसे लोग पुण्य नहीं पाप में लिप्त है और उन्हें भगवान भक्ति से मिलने वाला सुख नहीं मिलता और वह अपने किये का दंड भोगते हैं।
यह शाश्वत सत्य है कि भक्ति का आनंद त्याग में है और मोह अनेक पापों को जन्म देता है। सच्ची भक्ति तो एकांत में होती है न कि ढोल नगाड़े बजाकर उसका प्रचार किया जाता है। हम जिन्हें बड़ा व्यक्ति या भक्त कहते हैं उनके पास अपना ज्ञान और बुद्धि कैसी है यह नहीं देखते। बड़ा आदमी वही है जो अपनी संपत्ति से वास्तव में छोटे लोगों का भला करता है न कि उसका दिखावा। आपने देखा होगा कि कई बड़े लोग अनेक कार्यक्रम गरीबों की भलाई के लिये करते हैं और फिर उसकी आय किन्हीं कल्याण संस्थाओं को देते हैं। यह सिर्फ नाटकबाजी है। वह लोग अपने को बड़ा आदमी सबित करने के लिये ही ऐसा करते हैं उनका और कोई इसके पीछे जनकल्याण करने का भाव नहीं होता। सच बात है कि जो परोपकार या दान करते हैं वह उसका प्रचार नहीं करते।
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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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