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Friday, April 9, 2010

पतंजलि योग दर्शन-अभ्यास से ही चित्त दृढ़ होता है (patanjali yog darshan-abhyas

अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः।
हिन्दी में भावार्थ-
चित्तवृतियों पर नियंत्रण अभ्यास तथा वैराग्य से होता है।
तन्न स्थितो यत्नोऽभ्यासः।
हिन्दी में भावार्थ-
चित्त की स्थिरता के लिये जो प्रयास किया जाता है उसे अभ्यास कहा जाता है।
स तु दीर्घकालनैरन्तर्यसत्काराऽसेवितो दृएभूमिः।।
हिन्दी में भावार्थ-
अपने लक्ष्य का सम्मान करते हुए अभ्यास अगर निंरतर किया जाये तो चित्त को दृढ़ कर उसे प्राप्त किया जा सकता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मन की स्थिति पर नियंत्रण होना जरूरी है। अक्सर लोग योग साधना के समय आसनों के पूरी तरह न लग पाने तथा ध्यान में चित्त के अस्थिर होने की चर्चा करते हैं। जिनको योगाभ्यास, प्राणायाम तथा ध्यान में पारंगत होना है उनको किसी योग्य गुरु से ज्ञान प्राप्त कर अपने अभ्यास में लगे रहना चाहिये। जैसे जैसे वह अभ्यास करते जायेंगे उनको नित नित नई अनुभूतियां तथा ज्ञान मिलता जायेगा। एक दिन में न तो ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है और किसी कला में पारंगता मिल सकती है। प्रत्येक मनुष्य सांसरिक कार्यों में लिप्त होकर बहुत सरलता से मानसिक, दैहिक तथा वैचारिक रोगों का शिकार हो जाता है। सच तो यह है कि मानव मन असहजता के भाव को जल्दी प्राप्त हो जाता है जहां से निकलना उसे नरक में जाने जैसा लगता है। ऐसे में सहज योग की धारा उसको एकदम अपने लक्ष्य से विपरीत दिशा में जाना लगता है।
सांसरिक वस्तुओं और व्यक्तियों के संपर्क में रहकर उनके प्रति उपजे मोह से जो असहजता का भाव है उसे कोई आदमी तक तक नहीं समझ सकता जब तक वह सहजता का स्वरूप नहीं देख लेता। इसलिये जब कोई व्यक्ति योगासन, प्राणायाम, ध्यान तथा मंत्रोच्चार करता है तो उसकी प्रवृत्तियां उसे रोकती हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि बिना किसी विचार के अपना अभ्यास निरंतर जारी रखा जाये। इस तरह धीरे धीरे अपने कार्य में दक्षता प्राप्त होती जायेगी। एक दिन ऐसा भी आयेगा जब सहजता की अनुभूति होने पर हमें यह पता चलता है कि अभी तक हम वाकई बिना किसी कारण असहज जीवन व्यतीत कर रहे थे।
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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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