जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय
संत शिरोमणि कबीरदास कहते हैं कि जैसा भोजन करोगे, वैसा ही मन का निर्माण होगा और जैसा जल पियोगे वैसी ही वाणी होगी अर्थात शुद्ध-सात्विक आहार तथा पवित्र जल से मन और वाणी पवित्र होते हैं इसी प्रकार जो जैसी संगति करता है वैसा ही बन जाता है।
साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं
धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं
धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं
कबीर दास जीं कहते हैं कि संतजन तो भाव के भूखे होते हैं, और धन का लोभ उनको नहीं होता । जो धन का भूखा बनकर घूमता है वह तो साधू हो ही नहीं सकता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-श्रीमद्भागवत गीता के संदेश के अनुसार गुण ही गुणों में बरतते हैं। जिस तरह का मनुष्य भोजन ग्रहण करता है और जिस वातावरण में रहता है उसका प्रभाव उस पर पड़ता ही है। अगर हम यह मान लें कि हम तो आत्मा हैं और पंच तत्वों से बनी यह देह इस संसार के पदार्थों के अनुसार ही आचरण करती है तब इस बात को समझा जा सकता है। अनेक बार हम कोई ऐसा पदार्थ खा लेते हैं जो मनुष्य के लिये अभक्ष्य है तो उसके तत्व हमारे रक्त कणों में मिल जाते हैं और उसी के अनुसार व्यवहार हो जाता है।
आज जो हम समाज में तनाव और बीमारियों की बाहुलता देख रहे हैं वह सभी इसी खान पान के कारण उपजी हैं। कहते हैं कि स्वस्था शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है, इसका आशय यही है कि सात्विक भोजन से जहां मन प्रसन्न रहता है वहीं तामस प्रकार का भोजन शरीर और मन के लिये कष्टकारक होता है।
----------------संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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