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Saturday, February 20, 2010

भर्तृहरि शतक-सदाचार आभूषणों का भी आभूषण (sadachar hai abhushan-bhartrihari shataka)

ऐश्वर्यस्य विभूषणं सुजनता शौर्यस्य वाक्संयमो ज्ञानस्योपशमः श्रुतस्य वित्तस्य पात्रे व्ययः।
अक्रोधस्तपसः क्षमा प्रभवितुर्धर्मस् निव्र्याजता सर्वेषमपि सर्वकारणमिद्र शीलं परं भूषणम्
हिन्दी में भावार्थ-
सज्जनता ऐश्वर्य का, संयम शौर्य का, ज्ञान शांति का, शास्त्र का विनय भाव आभूषण है। उसी धन का सदुपयोग करने से है। तपस्या का महत्व अक्रोध से तो प्रभुत्व की शोभा क्षमादान से है। धर्म की शोभा निष्कपटता से प्रदर्शित होती है। इनमें भी सदाचार सभी आभूषणो का आभूषण है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-कहते हैं कि धन गया तो समझ लो कुछ नहीं गया। अगर स्वास्थ्य गया तो समझो कि बहुत कुछ चला गया। अगर चरित्र गया तो समझ लो सभी कुछ चला गया। जीवन में अध्यात्मिक संदेशों को धारण करने से अपनी विचार शक्ति दृढ़ होती है। जरा जरा सी बात पर उत्तेजित होना या हमेशा ही अपनी प्रशंसा करना या किसी के मुख से सुनने के लिये व्यर्थ के उपाय कर आदमी अपने ही अज्ञान का परिचय देता है।
जिस व्यक्ति में शक्ति होती है उसमें संयम भी होता है। जब आदमी जरा जरा बात पर क्रोध करता है तो समझिये कि उसमें शक्ति का अभाव है। उसी तरह जिसमें ज्ञान है वह उसे बघारता नहीं है। कहा जाता है ‘विद्या ददाति विनयम्’। इसके विपरीत हम देख रहे हैं कि आजकल शिक्षित व्यक्ति अधिक अहंकार का शिकार है बनिस्बत अशिक्षित के। यकीनन यह हमारी शिक्षा पद्धति के निरर्थक होने का प्रमाण है।
इससे ज्यादा बुरी बात यह है कि लोग दादा, गुंडों और मवालियों से मित्रता करने में गौरव अनुभव करते हैं। धनी, पदारूढ़ तथा बाहूबलियों को सम्मान देकर समाज अपने लिये ही संकट के बीज बोता है। हालत यह है कि सज्जन व्यक्ति को सीधासाधा या मूर्ख समझा जाता है। मगर यह सोच कृत्रिम है। सज्जन व्यक्ति ही सबसे अधिक सुरक्षित होता है और कालांतर में उसे औपचारिक रूप से कोई उपाधि भले ही न मिले पर वह सम्मानित होता है। धन के पीछे सभी इसलिये भाग रहे हैं क्योंकि लोग अपने को उससे प्रतिष्ठा पाने का एक सहज तरीका मानते हैं पर धन की भूख भला कभी मिट सकती है? धन तो आती जाती चीज है पर चरित्र पर एक बार दाग लगा तो फिर आदमी की छबि हमेशा के लिये खराब हो जाती है।

संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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