राम नाम जाना नहीं, जमा न अजपा जाप।
स्वामिपना माथे पड़ा, कोइ पुरबले पाप।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं परमात्मा के नाम महत्व और लाभ जाने बिना जपना और न जपना बराबर है। अपने अंदर अहंकार होने पर हर इंसान अनेक तरह के पाप कर बैठता है।
स्वामिपना माथे पड़ा, कोइ पुरबले पाप।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं परमात्मा के नाम महत्व और लाभ जाने बिना जपना और न जपना बराबर है। अपने अंदर अहंकार होने पर हर इंसान अनेक तरह के पाप कर बैठता है।
कबीर स्वामी कोय नहिं, स्वामी सिरजन हार।
स्वामी ह्ये करि बैठही, बहुत सहेगा मार।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी का कहना है कि इस संसार में कोई किसी का स्वामी नहीं है बल्कि सबका रचयिता और पालनहार परमात्मा ही सभी का स्वामी है। अगर यहां किसी को स्वामी माना तो सिवाय कष्ट और मार झेलने के कुछ नहीं मिलता।
स्वामी ह्ये करि बैठही, बहुत सहेगा मार।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी का कहना है कि इस संसार में कोई किसी का स्वामी नहीं है बल्कि सबका रचयिता और पालनहार परमात्मा ही सभी का स्वामी है। अगर यहां किसी को स्वामी माना तो सिवाय कष्ट और मार झेलने के कुछ नहीं मिलता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-पाश्चात्य शैक्षणिक प्रणाली ने इस देश के लोगों की मानसिकता ही गुलाम बना दी दी है और यही कारण है कि चाटुकारों की एक बहुत बड़ी फौज दिखाई देती है जो शिखर पुरुषों की जीहुजूरी में अपना जीवन गुजार देती है। यहां आदमी परमात्मा की बजाय इन शिखर पुरुषों को स्वामी मानकर पूजने लगता है। संभव है कुछ चाटुकारों को कुछ उपलिब्धयां मिलती हों पर सभी के लिये ऐसा करना सौभाग्यपूर्ण नहीं होता।
धन, पद, और बाहुबल की वजह से जिन लोगों को स्वामित्व मिलता है वह किसी दूसरे को स्वामी योग्य बनने नहीं देते। उनकी चाहे कितनी भी चाटुकारिता करें वह अपने स्वार्थ की पूर्ति से कम ही दाम चुकाते हैं। कभी कभी तो बहुत निर्दयता से व्यवहार करने लगते हैं। ऐसे में अच्छा यही है कि बजाय यहां किसी को स्वामी मानन के उस परमात्मा को ही सर्वस्व माने जो सबके जीवन सृष्टा और कर्म का दृष्टा होने के कारण वास्तव में स्वामित्व धारण किये हुए है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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