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Tuesday, January 26, 2010

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-कार्य के संयोग का लाभ उठायें (chance of work-hindu dharma sandesh)

न कार्यकालं मतिमानतिक्रामेत्कदाचन।
कथञ्चिदेव भवित कार्ये योगःसुदुल्र्लभः।।
हिन्दी में भावार्थ-
बुद्धिमान को चाहिए कि वह कार्य का समय सामने आने पर उसे व्यर्थ न जाने दे क्योंकि कार्य में मन लगाना अत्यंत कठिन होता है। फिर संयोग सदैव सामने नहीं आते।
सतां मार्गेण मतिमान् को कम्र्म समाचरेत्।
काले समाचरन्साधु रसवत्लमश्नुते।।
हिन्दी में भावार्थ-
बुद्धिमान सत्पुरुषों के मार्ग का अनुसरण करते हुए निश्चित समय पर कार्य आरंभ करें। जो मनुष्य समय पर कार्य करता है उसे रसयुक्त फल की प्राप्ति अवश्य होती है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-आलस्य मनुष्य का स्वाभाविक दुर्गुण है। अनेक लोग इसलिये ही सफलता से वंचित रहते हैं क्योंकि वह अपना काम समय पर प्रारंभ नहीं करते। अनेक बार मन में आता है कि ‘थोड़ी देर बाद यह काम करूंगा, ‘कल करूंगा’, या फिर ‘यह काम तो बाद में भी हो सकता है’-यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। जीवन में आगे बढ़ने के अवसर हमेशा ही उपलब्ध नहीं होते। जब कोई उन्नति का विशेष अवसर सामने आये तो लपक लेना चाहिये। अगर हम सफल और उन्नत पुरुषों के जीवन को देखें तो वह भी हमारी तरह ही होते हैं पर वह शिखर पर इसलिये पहुंचते हैं क्योंकि उन्होंने समय आने पर उसका उपयोग किया होता हे। जब भी कोई काम प्रारंभ करने का अवसर सामने उपस्थित हो तो तुरंत शुरू करना चाहिये।
कबीरदास जी भी कह गये हैं कि ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में प्रलय हो जायेगी बहुरि करेगा कब’। यह समय किसी का दास नहीं होता अतः उसका सम्मान करते हुए अपना काम का अवसर आने पर उसे प्रारंभ कर देना चाहिए।

संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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