समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Wednesday, April 8, 2009

रहीम के दोहे- मिलने पर दूरी बनाये रखें, ऐसे लोगों से संबंध का क्या लाभ?

कहु रहीम कैसे बनै, अनहोनी हो जाय
मिला रहै और ना मिलै, तासों कहा बसाय

कविवर रहीम कहते हैं कि जब कोई हम कार्य करना चाहें और उसके विपरीत अनहोनी हो जाये तो क्या किया जा सकता है? उसी तरह जो व्यक्ति ऐसा हो जो मिलकर भी दूरी बनाये रखे उसे निर्वाह नहीं हो सकता।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जिंदगी में अनेक लोग मिलते हैं। कुछ तो पास ही रहते हैं पर वह एक मानसिक दूरी बनाये रखते हैं ऐसे भला उनसे आत्मीयता का भाव कैसे स्थापित हो सकता है। अपने शैक्षणिक, व्यवसायिक और आवासीय स्थानों में ऐसे अनेक लोग प्रतिदिन मिलते हैं जिनके प्रति हमारा झुकाव इसलिये हो जाता है कि क्योंकि उनसे नियमित संपर्क रहता है। ऐसे में यह वहम भी हो जाता है कि वह हमारे अपने हैं और समय पर काम आयेंगे-पर ऐसा होता नहीं है। दरअसल अपने स्वार्थ की वजह से हम और वह पास होते हैं पर हमारे अपने स्वार्थ ही होते हैं जो जोड़े रहते हैं इससे मानसिक एकात्मकता का पता नहीं लगता। अगर हम उनके साथ अपने संबंधों का विश्लेषण करें तो एक दूरी अनुभव होगी और तब लगेगा कि उनके अपने होने का वहम है।

इसके अलावा अपने नियमित संपर्क में आने वाले व्यक्ति को केवल इसलिये ही अच्छा नहीं मान लेना चाहिये कि हम उसे जानते हैं और वह मीठा बोलता है। उसके घरेलू इतिहास, संस्कार और आस्था का भी पता करना चाहिये क्योंकि अगर मानसिक धरातल पर कोई व्यक्ति हम जैसा और हम उस जैसे नहीं है तो आत्मीयता का भाव स्थापित नहीं किया जा सकता। अगर जबरन यह प्रयास किया जाता है तो बाद में पछतावा होता है। जब तक संस्कार, विचार, लक्ष्य और कार्यशैली में साम्यता नहीं है तब तक संबंध स्थाई नहीं हो पाते। तत्कालिक आकर्षण में स्थापित संबंध बाद में दुःखदायी साबित होते हैं।
.....................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्द योग
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

No comments:

विशिष्ट पत्रिकायें