समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Tuesday, April 7, 2009

चाणक्य नीतिः पेट खराब होने पर भोजन विष जैसा लगता है

अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्।।

हिंदी में भावार्थ-अगर शास्त्र का निंरतर अभ्यास न करना, पेट खराब होने पर भोजन करना, दरिद्र व्यक्ति के लिये सभा में जाना और वृद्ध पुरुष के लिये युवा स्त्री विष की तरह होती है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जीवन में हर व्यक्ति किसी किसी प्रकार की पुस्तकों से शिक्षा प्राप्त करता है। शिक्षा प्राप्त करने का उसका उद्देश्य ज्ञान और रोजगार प्राप्त करना-दोनों ही या दोनों में से कोई एक-हो सकता है। ऐसे में उसे अपनी पुस्तकों या शास्त्रों का नियमित अभ्यास करते रहना चाहिये। अगर वह ऐसा नहीं करता तो उसके लिये अलाभकर स्थिति हो जाती है। एक तो वह पूर्ण रूप से अपने विषय या ज्ञान में पारंगत नहीं हो पाता जिसकी वजह से उसे सफलता नहीं मिलती और मन अशांत रहता है दूसरा यह कि उसे पहले पढ़े हुए विषय दिमाग में घूमते रहते हैं और कुछ नया सोच ही नहीं सकता। इस तरह उसके जीवन के विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। वैसे आजकल इंसान के लिये स्वतंत्र रूप से अपने व्यवसाय करना कठिन हो गया है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद अगर आदमी को उससे संबंधित रोजगार न मिले तो उसका अभ्यास नहीं रह जाता। आजकल रोजगार की जो स्थिति है उससे तकनीकी, विज्ञान, वाणिज्य तथा साहित्य विषयों में उपाधियां प्राप्त करने वाले सभी लोगों को उससे संबंधित काम नहीं मिल पाता और अनेक लोगों को जीवन यापन के लिये जब उसे कोई अन्य नौकरी या व्यवसाय करना पड़ता है पर अपनी पूर्व शिक्षा के कारण उनको बहुत मानसिक कष्ट होता है। तब उन्हें अपना जीवन ही विषैला लगता है।
उसी तरह अगर कोई ज्ञान जीवन के लिये प्राप्त किया है तो उसका निंरतर अभ्यास करना चाहिये ताकि वह याद रहे और समय आने पर उस ज्ञान से हम अपनी रक्षा कर सकें।
यही स्थिति भोजन की है। जब हमारा पेट खराब हो तब भोजन नहीं करना चाहिये। ऐसे में अगर जबरन भोजन किया तो अपना स्वास्थ्य अधिक बिगड़ जाता है। वैसे भी कहते हैं कि भूख से कम, खाने से लोग अधिक बीमार पड़ते हैं। शरीर की बीमारियों का मुख्य कारण पेट का खराब होना ही है।
..............................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्द योग
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

No comments:

विशिष्ट पत्रिकायें